पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)

पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)

रोग परिचय

जब पेट मे अंतरीय अवयवों के मांस तन्तुओं के सिकुड़ने से ऐंठन पैदा होकर जो पीड़ा उत्पन्न होती है उसे उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) कहते हैं। यह शूल विभिन्न अंगों में ऐंठन उत्पन्न कर स्थान बदलकर भी पीड़ा पहुँचा देता है, जिसका कि अलग-अलग स्थान होता है; जैसे- आंत्रशूल, पित्ताशय, यकृतशूल, वृक्कशूल आदि ।
आयुर्वेद में इसे शूल (वेदना) के नाम से जाना जाता है।

उदर में दर्द के तीव्र आक्रमण या आवेग को इस रोग में शामिल किया गया है। पेटदर्द/उदरशूल के मामले रोज देखने को मिलते हैं। यह एक आम रोग है। भारत में पेटदर्द की समस्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है, पेटदर्द जब बच्चों को होता है, तो बच्चे एकदम संकट की स्थिति में आ जाते हैं। बच्चों को होने वाले उदरशूल को अंग्रेजी में “इनफेंटाइल कॉलिक’ के नाम से जाना जाता है।

परिचय की दृष्टि से देखें तो उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) (पेट का दर्द), आंत्रशूल, आँतों की पीड़ा (Intestinal colic), आमाशयिकशूल, यकृतशूल, गर्भाशय का शूल, तथा पेट में कृमियों की वजह से उत्पन्न होने वाले तमाम सभी शूल (Pain) एक ही श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

आँतों का शूल आँतों की पेशी-तन्तु में होने वाले आक्षेपों की वजह से भी उत्पन्न होता है। दर्द कभी धीमा तो कभी काफी तीव्र रहता है। उदरशूल में ऐंठन, मरोड, शूल तथा पीड़ा के रूप में होता है। दस्त के साथ कभी-कभी खून का ऑव आना कब्ज, वमन आदि लक्षण दिखते हैं।

Colitis meaning in Hindi
Colitis meaning in Hindi

उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) कारण Abdominal pain causes-

  1. चाट, पकौड़े, हलवा, गरिष्ट भोजन, बार-बार भोजन ।
  2. विषाक्तता ।
  3. मिठाइयों के अधिक लेने से ।
  4. अजीर्ण-यह रोग अधिकतर अजीर्ण से पैदा होता है।
  5. मासिक धर्म की अनियमितता ।
  6. शारीरिक निर्बलता ।
  7. वायूगोला ।
  8. गर्भावस्था से आमाशय पर दबाव पड़ने से ।
  9. कब्ज एवं गैस के कारण।
  10. ऐंठन युक्त दर्द (Spasmodic colic)— बर्फ का ठंडा शीतल जल पीना, बाई या गठिया, शरीर में किसी विष का प्रभाव, ठंडी मलाई, बर्फ का खाना, सर्दी लगना, बरसात के पानी में भीगना, भय इत्यादि कारणों से होता है। कभी-कभी हिस्टीरिया और वायुगोला भी कारण होते हैं। •
  11. आंत्रशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) के कारणों में, भारी चीजों का सेवन, संखिया (विष), पारा, नीलाथोथा, तेजाब इत्यादि तीव्र विषों का सेवन, तेज दस्त लाने वाले द्रव्य खाना, तेज दस्तावर दवाएँ लेना, कब्ज, उदर में कृमि पैदा होना, ओस या सर्दी आदि से ठंड लगना इत्यादि कारणों से पेट दर्द होता है। •
  12. उंडुकपुच्छ शोथ (ऐपेंडिसाइटिस)।
  13. पित्त-थैली और गुर्दे में पथरी का पाया जाना ।
  14. ग्रहणी और आमाशय में व्रण (Duodenal & gastric ulcer)।
  15. डिंब ग्रंथि या लिवर में सूजन ।
  16. आँतों में कड़ा या कड़ा-गठीला मल एकत्रित होने से ।
  17. मैदा की रोटी कुछ ज्यादा दिनों तक खाने से उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है ।
  18. इंट्रसस्सेप्सन एवं कार्सीनोमा के कारण।
  19. आँत में आंत्रिक परिवर्तन से; यथा-उपांत्र प्रदाह, आँत रूकना एवं हार्निया से ।
  20. मल रोकने वाले रूक्ष पदार्थ एवं जौ, उड़द, मटर, मूँग, मसूर, आदि कफ कारक पदार्थों के सेवन तथा मल-मूत्रादि वेगों के रोकने से उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) का दर्द होता है।
  21. आँतों में दूषित लेस युक्त श्लेष्मा और पित्त के एकत्रित हो जाने से वायु उत्पन्न करने वाले पदार्थ यथा चने, सेम, लोबिया, मटर जैसे दाल अधिक मात्रा में खाने से पेट में दर्द होता है। ठंडी और वासी भोजन करने और कब्जियत रहने से वायु का अवरोध और उसकी ऊर्ध्वगति होने से भी पेट का दर्द उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है।
  22. याद रहे-अत्यधिक शोक, क्रोध, मोह, मैथुन, मैथुन की रुकावट, अत्यधिक पानी पीना, रूक्ष वस्तुओं का अत्यधिक प्रयोग, अजीर्ण होने के बावजूद ऊपर से आहार लेते रहना, आँतों में चोट लग जाने (साधारण – असाधारण) अथवा तीव्र चोट लग जाने, अधपका मांस खाना, अति मद्यपान, अत्यधिक गन्ने का रस पीना, मैदे से बनी वस्तुओं का प्रयोग, अफारा, वमन आदि कारणों से भी पेट में दर्द उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) उत्पन्न होता है।
  23. लिवर रोगों से पेटदर्द उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
    • अमीबा परजीवी से सूजन ।
    • अमीबा परजीवी से लिवर का फोड़ा
    • लिवर की सूजन ।
    • मद्यपान से हेपेटाइटिस होकर
    • लिवर कैंसर होकर ।
  24. पित्त की थैली के रोगों -पित्ताशय की तीव्र सूजन, पथरियाँ (गॉल स्टोन), मवाद पड़ जाना
  25. कैंसर आदि होकर रोगी के पेट में दर्द उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है।
  26. अत्यधिक भोजन और बिलकुल परिश्रम नहीं करने से पाचन क्रिया पूरी तरह सम्पन्न नहीं होती। ऐसे में उदर में भारीपन और शूल की उत्पत्ति होती है।
  27. सारांश में- उदरशूल का कारण उदर में स्थित विभिन्न अंगों में से किसी एक अंग का विकार हो सकता है। इसका अनुमान लगाना कठिन होता है। क्योंकि दर्द की स्थिति में रोगी के बाह्य शारीरिक निरीक्षण तथा व्याकुलता को देखते हुए उसके कारण का शीघ्र पता लगाना चाहिए। जो सरल नहीं है।
  28. कई बार परीक्षण व अल्ट्रासाउंड आदि की अन्य विधियों से भी इसका कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है। यह आँतों के कृमि, गैस, कब्ज या आब्सट्रक्सन, ऐपेंडीसाइटिस, यकृत शोथ या फोड़ा, आमाशयशोथ, पेप्टिक अल्सर, पेरीटोनाइटिस, स्त्रियों के गर्भाशय, डिंबाशय तथा नलिकाओं में विभिन्न विकारों के कारण भी यह कष्ट हो सकता है। यह सब दर्द की गंभीरता एवं प्रकृति पर आधारित है कि किस प्रकार का उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) है।
  29. इसका अनुमान लगाना कठिन होता है। क्योंकि दर्द की स्थिति में रोगी के बाह्य शारीरिक निरीक्षण तथा व्याकुलता को देखते हुए उसके कारण का शीघ्र पता लगाना चाहिए। जो सरल नहीं है। कई बार परीक्षण व अल्ट्रासाउंड आदि की अन्य विधियों से भी इसका कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है।
  30. यह आँतों के कृमि, गैस, कब्ज या आब्सट्रक्सन, ऐपेंडीसाइटिस, यकृत शोथ या फोड़ा, आमाशयशोथ, पेप्टिक अल्सर, पेरीटोनाइटिस, स्त्रियों के गर्भाशय, डिंबाशय तथा नलिकाओं में विभिन्न विकारों के कारण भी यह कष्ट हो सकता है। यह सब दर्द की गंभीरता एवं प्रकृति पर आधारित है कि किस प्रकार का दर्द है।
  31. बच्चों के पेट में कृमि होने से भी पेट में दर्द होता है।
  32. यदि मधुमेह-डायबिटीज की रोगी की शकर वृद्धि हो जाए, तो भी उदरशूल होता है। •
  33. पेट के दर्द में कुछ लोग पेट की मालिश करवाना पसंद करते हैं, किन्तु कई बार ऐसा करने से शरीर के भीतरी अवयवों पर उलटा असर होता है और गंभीर स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।
  34. पेटदर्द का कोई निश्चित कारण नहीं है। यह सामान्य कारणों, जैसे अधिक भोजन करने, वायु बनने, अपच आदि के कारण भी हो सकता है तथा अल्सर, कब्ज आदि दीर्घकालीन रोगों के फलस्वरूप भी हो सकता है तथा बार-बार पेटदर्द होने पर किसी योग्य चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।
उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
उदरशूल (Abdominal pain causes)

उदरशूल /पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) के सामान्य लक्षण(abdominal pain symptoms)-

  1. यह उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) एकदम या अचानक भी हो सकता है और धीरे-धीरे भी।
  2. इस प्रकार के रोगियों में प्रायः कब्ज देखी जाती है।
  3. उसकी पाचन शक्ति कमजोर और भूख कम हो जाती है।
  4. यह उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) शरीर के दूसरे अंगों में भी फैल सकता है, जैसे-कंधों की ओर या जननांगों की ओर, रोगी को उलटी और जी मिचलाने की शिकायतें हो सकती हैं।
  5. रोग के अन्य लक्षण व विशेषताएँ रोग से प्रभावित अंग या भाग के अनुसार अलग-अलग प्रकट होते हैं।
  6. “पेट में पीड़ा की लहरें उठना इस रोग का प्रमुख लक्षण हैं।”
  7. आँतों और आमाशय में होने वाला उदरशूल नाभि के चारों ओर मरोड़ की भाँति पैदा होता । कभी-कभी यह शूल दर्द रह-रह कर उठता रुकता रहता है। रोगी वेदना से छटपटाता रहता है।
  8. वायु से उत्पन्न दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) में पेट गुड़गुड़ाता रहता है। अधिकांशतः आंत्रशूल के रोगी को कब्ज तथा वायु रुक जाने से शिकायत पूर्व से ही रहती है। रोगी को भोजन की इच्छा नहीं रहती है, वह बेचैनी, घबराहट तथा तनाव अनुभव करता है।
  9. कुछ रोगियों को पीड़ा के साथ उलटियाँ भी होती हैं। यदि रोगी अपने पेट को दबा लेता है अथवा पेट के बल लेट जाता है, तो उसको दर्द मे कुछ राहत मिल जाती है।
  10. पर कुछ रोगियों को दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)इतना तीव्र होता है कि रोगी किसी को पेट पर हाथ भी नहीं रखने देता। रोगी के मूत्र का स्वाभाविक रंग परिवर्तित हो जाता है और उसके शरीर में शीतलता आ जाती है। कुछ रोगी पसीने से तर हो जाते हैं। रोगी की नाड़ी इस समय क्षीण हो जाती है और अस्तव्यस्त-सी चलने लगती है।
  11. यदि पेट फूलने से दर्द हो रहा है, तो पेट गुड़गुड़ाता रहता है। साथ में रोगी को डकार और वायु का निष्कासन होता रहता है। बड़ी आँत का शूल नाभि के निकट दाएँ-बाएँ भागों में होता है जो असहनीय और तीव्र प्रकार का होता है। इसके विपरीत ‘मरोड़ का दर्द’ अधिकांशतः पेचिश अथवा अतिसार के दौरान होता है ।
  12. अक्सर रोगी पेट में भारीपन की शिकायत करता है। उदर की परीक्षा करने पर कुछ रोगियों के पेट में गाँठें-सी प्रतीत होती हैं। रोगी के पेट वायु के गोले से घूमते हुए अनुभव होते हैं।
  13. पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) के मुख्य कारण है-आमाशय में घावों के कारण छिद्र पैदा हो जाना (Perforation), इसमें दर्द का स्थान इपीगैस्ट्रियम है जहाँ से पूरे पेट तथा बाएँ कंधे में दर्द फैलता है। यह तीव्र प्रकार का दर्द होता है, जो रोगी को असहनीय होता है। इसका आक्रमण अचानक हो सकता है।
  14. अथवा पहले से जो थोड़ा-थोड़ा था वह बढ़कर तीव्र हो जाता है। रोगी को वमन तथा बेहोशी हो सकती है। इस प्रकार के दर्द में एपिगैस्ट्रियम का स्थान कठोर, तख्त जैसा हो जाता है।
  15. कुछ दर्द आहार नाल से सीधे संबंधित होते हैं, तो कुछ उदर में स्थित अन्य अवयवों से संबंधित होते हैं।
    • डिंबकोष की सिस्ट के फटने से सिस्ट को दबाने से या सिस्ट के साथ अचानक दर्द होता है।
    • अग्नाशय के तीव्र शोथ में तीव्र वेदना होती है। दर्द अचानक बाईं तरफ अग्नाशय पर होता है।
    • पीड़ा पीठ की तरफ निकलती हुई महसूस होती है। इसमें कब्ज तथा वमन, पेट से भरा हुआ, अतिशय पसीना, तापमान गिरा हुआ, नाभि का रंग भूरा, हृदय प्रदेश पर काठिन्य, दबाने से दर्द तथा रंग नीलिमायुक्त दिखाई देता है।
  16. पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) अचानक प्रारंभ होता है। अधिक एवं तीव्रदर्द के प्रत्यावर्तित प्रभाव से वमन भी होता है। रोगी का चेहरा उदिग्न, पीला, बेचैन, नाड़ी गति तेज व क्षीण, कभी-कभी तापमान अधिक तो कभी-कम ठंडा पसीना आना, रोगी दर्द के कारण घुटने पेट पर मोड़े (दुहरा हुआ) रहता है।
  17. पेटदर्द / उदरशूल उदर में स्थित अन्य अवयवों से संबंधित होते हैं
  18. आंत्रशूल (Intestinal colic) – इस प्रकार का शूल आँतों के फैलाव तथा आंकुचन के कारण होता है। नाभि के चारों ओर ऐंठन महसूस होती है। वृहद आँत का शूल (Abdominal pain meaning in Hindi) नाभि के नीचे महसूस होता है। इसका आक्रमण तीव्र होता है और धीरे-धीरे होता है जो कई दिन तक रहता है।
    • छोटी आँत का शूल-छोटी आँतों में रुकावट के कारण पेटदर्द नाभि के भाग में होता है, जो इधर-उधर कहीं नहीं फैलता। यह दर्द ऐंठन के प्रकार का होता है, जो तीव्र होता है।
    • आक्रमण शीघ्रता से होता है, जो घंटो तथा कई दिनों तक रहता है। ऐसा दर्द किसी भी कारण रोगी के गति करने आदि से नहीं बढ़ता तथा किसी भी उपाय से कम नहीं होता है। उलटी होती है। नाभि के चारों ओर उभार तथा आँतों की आवाज में वृद्धि होती है।
    • रेक्टम गुब्बारे के रूप में फूला तथा रिक्त (Empty) होता है। एक्स-रे में आँतों के तरल का तल दिखाई पड़ सकता है। याद रहे-नाभि के समीप (Umblical) के भाग में तीव्र प्रकार का दर्द, जिसमें ऐंठन होती है,
    • नाभि के पास पेट फूला हुआ तथा आँतों की ध्वनि में वृद्धि होती है जबकि आँतों का निचला भाग रेक्टम रिक्त गुब्बारे के समान होता है, तो यह दर्द छोटी आँतों में किसी भी प्रकार की रुकावट के कारण होता है।
    • बाईं हाइपोकोंड्रियम भाग में भी वृहदांत्र के विकार से दर्द हो सकता है, किन्तु उपरोक्त लक्षण नहीं होंगे। ऐसा दर्द बहुत कम देखने को मिलता है।
  • हाइपोगैस्ट्रियम (प्रजननांग, मूत्राशय) में यदि तीव्र प्रकार का दर्द हैं, जो धीरे-धीरे आरंभ होकर बढ़ गया है, जिससे ऐंठन भी हो, यह कई दिन तक भी हो सकता है।
    • रोगी को कब्ज की शिकायत रहती है तथा फिर वमन होने लगती है। उदर का प्रभावित भाग फूल गया हो, आँतों की ध्वनि में वृद्धि हो गई हो, तो यह दर्द वृहदांत्र में पूर्ण रूकावट के कारण होता है। इसी स्थान में (हाइपोगैस्ट्रियम) जब तनाव तथा पेट फूला हुआ और मूत्र में रुकावट हो रही हो, तो यह मूत्राशय के रोगों के कारण है।
    • ऐसी स्थिति में गर्भाशय एवं वृद्ध पुरुषों (Old aged) में प्रोस्टेट ग्लैंड के बढ़ जाने से भी हो सकती है। इस अवस्था में भी मूत्र की रुकावट होती है।
  • पित्तशूल – प्रायः पित्ताशय या पित्त की नली में पित्त की पथरी के कारण होता है। इसे बिलियरी कोलिक (Biliary colic) भी कहते हैं। जब आँतों में गाढ़ा भारी पित्त अत्यधिक मात्रा में पहुँचकर वहाँ खराश पैदा कर देता है, जिससे आँतों में भयंकर ऐंठन होने लगती है और शूल (Abdominal pain meaning in Hindi) धीरे-धीरे बढ़कर तीव्रता पकड़ लेता है।
    • लक्षण प्रायः मतली से प्रारंभ होते हैं। इसके बाद शूल, पीले रंग का पित्त गिरना, कब्ज होना मिलता है।
    • दर्द यकृत प्रदेश (हाइपोकोंड्रियम) से प्रारंभ होता है, तथा दाएँ, बाएँ कंधे में चुभता दर्द हो सकता है।
    • यह दर्द रोगी के दाहिने कंधे की हड्डी (Scapula) के स्थान पर प्रतीत होता है। ऐंठन जैसा दर्द होता है, जो बहुत तीव्र प्रकार का होता है, जो अचानक प्रारंभ होता है तथा घंटों तक बना रह सकता है जो घी, तेल, चिकनी वस्तुओं के खाने पर बढ़ सकता है, तथा रोगी के गति करने पर भी बढ़ता है।
    • वमन होती हैं। दाहिने ‘हाइपोकोंड्रियम’ में हाथ से छूने, दबाने पर दुखन होती है। रंगीन एक्स-रे (कोलीसिस्टोग्राम) करवाने पर पित्ताशय में पथरी दिखाई दे सकती है।
    • पित्तशल में दर्द के कुछ घंटे या एक दो दिन में पीलिया के लक्षण दिखते हैं।
    • ‘हाइपोकोड्रियम’ में हाथ से छून, दबान पर दुखन होती है।
    • रंगीन एक्स-रे (कोलीसिस्टोग्राम) करवाने पर पित्ताशय में पथरी दिखाई दे सकती है।
    • पित्तशूल में दर्द के कुछ घंटे या एक दो दिन में पीलिया के लक्षण दिखते हैं। पेशाब में पित्त आने लगता है। पीड़ा का दौरा-सा पड़ना जीर्ण होने पर आँतों में सूजन आदि लक्षण पाए जाते हैं। इस प्रकार के दर्द को पहचानना कोई कठिन नहीं होता है।
    • यह दर्द हमेशा दाएँ कंधे और उसके पीछे की ओर जाता प्रतीत होता है। यह दर्द हमेशा पित्ताशय में होता है। ऐसे दर्द में प्रायः अगले कुछ ही दिनों के उपरांत रोगी को पीलिया रोग हो जाता है जबकि ‘आंत्रशूल’ (Intestinal Colic) में ऐसा कुछ नहीं होता है। आंत्रशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) में ज्वर नहीं होता। आंत्रशूल का दर्द कभी-कभी मल के उतर जाने पर शान्त भी हो जाता है।
    • गाल ब्लेडर में स्टोन के अधिकांश रोगी के ऊपरी दाएँ या मध्य भाग में अचानक तीव्र दर्द के अटैक उठने की शिकायत करते हैं। पर बहुत से रोगी ऐसे भी देखे हैं, जिनमें दर्द की शिकायत दाएँ कंधे में, पीछे-पीठ में या चैस्ट के मध्य सामने के भाग में मिलती है।
    • रोगी से लक्षणों की विस्तृत जानकारी के बाद अल्ट्रासाउंड जाँच करने पर पित्ताशय में पथरियाँ पाई जाती हैं। कुछ रोगी ऐसे भी देखने को मिलते हैं, जिनको छाती में दर्द, हृदयरोग एंजाइना तथा पित्ताशय में पथरियाँ दोनों के कारण भी था ।
  • अल्सरजन्य (Abdominal pain meaning in Hindi) पेट का दर्द-वैसे तो पेट के मध्य ऊपरी भाग में दर्द होता है, लेकिन बहुत से रोगी छाती में ऊपर गले तक जलन के साथ दर्द बताते हैं।
    • इस प्रकार के दर्द में डायाफ्राम के नीचे, मध्य या वाम भाग में तीव्र रूप से छेद करने वाला एक ही स्थान पर दर्द, भोजन से दर्द में वृद्धि, वमन से दर्द में शान्ति, रक्त वमन, जी मिचलाना आदि लक्षण हो सकते हैं।उचित निदान के पश्चात् इनमें एंटासिड, रेनिटिडिन या ओमीप्राजोल जैसी दवाएँ दी जाती हैं।
    • इनको आइबूप्रोफेन, डाइक्लोफिनेक, एस्प्रिन, एनालजिन जैसी दर्द निवारक दवाएँ लाभ के स्थान पर अत्यंत हानिकारक सिद्ध होती हैं।
  • वृक्क शूल – प्रायः गुर्दे की सूजन, गुर्दे की पथरी, मूत्रनली के संक्रमण, गर्भाशय के रोग के कारण होता है। दर्द का प्रारंभ कमर या उसके ऊपरी हिस्से में होता है। दर्द नीचे की ओर गति करते हुए अंडकोषों तथा योनि ओष्ठ में प्रतीत होता है, बार-बार पेशाब की प्रवृत्ति, पेशाब में रक्त आना, मूत्र त्याग के समय दर्द, गंदला पेशाब आदि लक्षण दिखते हैं। ऐसा दर्द पुरुषों में अधिक मिलता है।
  • एपेंडिकुलर शूल – एपेंडिक्स में रुकावट, संक्रमण व सूजन के कारण होता है। दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) नाभि के दाई इलियक फोसा में होता है। मितली और वमन होकर रोगी को बेहाल-सा कर देता है। रोगी दर्द से अपना पेडू दबाकर तड़फता फिरता है।
    • दाइ इलियक फोसा में होता है। मितली और वमन होकर रोगी को बेहाल-सा कर देता है। रोगी दर्द से अपना पेट दबाकर तड़फता फिरता है। इस प्रकार का दर्द तब होता है जब रोगी को कब्ज अफारा होकर भी वह बहुत अधिक मेवे आदि खाद्यों को खा लेता है।
    • तब वही अधिक मेवे आदि एपेंडिक्स (उपांत्र) में फँसकर वहाँ पर तीव्र प्रदाह उत्पन्न कर देते हैं। इसके अतिरिक्त गठियावाय, पेट की व्याधियाँ, मलावरोध, गरिष्ठ भोजन, संक्रमण आदि कारणों से ऐसा उदरशूल होता है।
    • रोगी का चेहरा पीला, घबराहट आदि लक्षणों के साथ, वहीं दर्द रोगी के दाहिनी पेट की ओर ठहर जाता है। रोगी को कै, मितली, अरुचि, ज्वर (101-104°F) तक होता है। निरीक्षण करने पर एक उभार दिखाई पड़ता है।
  • यदि नाभि के पास दर्द होता है, जो तीव्र प्रकार का हो, जो तीव्र गति से ऐंठन जैसा आरंभ होकर निरंतर बहुत देर तक या घंटों तक रहे। दाएँ इलियक भाग (Right Iliac fossa) में जाकर ठहर जाए तथा नाभि एवं कूल्हे की अस्थि के सामने के उभार के बीच उँगली से छूने पर तीव्र दुखन का आभास होता है। वमन तथा ज्वर भी हो, रोगी के गति करने से दर्द में वृद्धि हो, तो यह दर्द आंत्र (Abdominal pain meaning in Hindi) के पुच्छप्रदाह के कारण हुआ है।
  • पाइलोरिक आंकुचनजन्य पेट का दर्द-ड्यूडेनल-अल्सर के कारण पाइलोरिक द्वारा सिकड जाता है। इसमें अचानक, किन्तु अति तीव्र दर्द कम समय के लिए होता है।
  • पैंक्रियास के शोथ से उत्पन्न पेटदर्द-इस प्रकार का दर्द दाहिने हाइपोकोंड्रियम में होता है, जो कमर (पीठ) तथा पूरे पेट में फैल जाता है। यह दर्द निरंतर बना रहता है। दर्द बहुत ही अधिक कष्टदायक होता है।
    • इसका आक्रमण अचानक होता है अथवा पहले से चला आ रहा दर्द बढ़ जाता है। वमन तथा कँपकँपी होती है (पर ज्वर आवश्यक नहीं)। पेट आरंभ में कोमल, लचीला तत्पश्चात् कठोर हो जाता है। यदि टैस्ट कराया जाए, तो मूत्र तथा ब्लड सीरम में एमाइलेज की मात्रा में वृद्धि पाई जाती है।
  • आमाशयिक शूल (Stomach Pain)- इस प्रकार के दर्द में भोजन के बाद ऐसी वेदना होती है जैसे कोई नस को कसकर पकड़ रहा हो। खाने की वस्तु पेट में आते ही पीड़ा तेज हो जाती है। यदि वमन होकर खाई हुई वस्तु बाहर निकल जाए तभी दर्द कम होता है।
  • लिवर कैंसर से पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) -इस रोग में लिवर पत्थर की तरह कड़ा हो जाता है और उसका आकार बढ़ जाता है। कुछ रोगी पेटदर्द की शिकायत करते हैं, तो कुछ अन्य बिलकुल भूख नहीं लगने की। रोगी को पीलिया और लगातार बुखार भी हो जाता है। रोगी बेहोश भी हो सकता है।
  • लिवर की सूजन में पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) -बहुत सूक्ष्म जीव ‘हिपेटाइटिस वायरस’ दूषित जल या भोजन ग्रहण करने के लिवर में पहुँचकर पूरे लिवर में सूजन या हिपेटाइटिस कर देती हैं। गंदी सिरिंज तथा नीडिल एवं ब्लड द्वारा भी वायरस शरीर में प्रवेश कर सकती हैं।
    • पेट के दाएँ-ऊपरी भाग में दर्द के अलावा इसके मुख्य लक्षण भूख न लगना, जी मिचलाना, उलटियाँ होना, बुखार, हाथ- पैरों में दर्द और मूत्र, आँखें एवं त्वचा का रंग पीला हो जाता है।
    • वायरल हेपेटाइटिस के अधिकांश रोगी त्वरित एवं समुचित उपचार से स्वस्थ हो जाते हैं। लेकिन कुछ रोगियों में जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
    • उदाहरणार्थ-बेहोशी (हिपेटिक कामा), खून की उलटी तथा पाखाने का रंग कोलतार जैसा, लिवर का सिकुड़कर कड़ा हो जाना (लिवर सिरहोसिस), पेट का फूल जाना, लिवर में कैंसर बन जाना, गर्भवती महिला में पीलिया अपेक्षाकृत खतरनाक रोग माना जाता है।
  • शराब से हिपेटाइटिस और पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) – शराब या मदिरापान का लिवर पर अत्यंत घातक प्रभाव पड़ता है। प्रारंभ में रोगी को विशेष नुकसान नहीं मालूम पड़ता, लेकिन धीरे-धीरे एक स्टेज ऐसी आती है जब जिगर पूर्णतया नष्ट होकर अपनी कार्य क्षमता सदैव के लिए खो देता है।
    • शराब से लिवर में सूजन (अल्कोहल हिपेटाइटिस) हो जाने पर यकृत की कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं और जिगर कड़ा होने लगता है। पेट में दर्द के अतिरिक्त ऐसे रोगी भूख नहीं लगने, जी मिचलाने, उलटियाँ होने, वजन कम होने, पीलिया और बुखार जैसी तकलीफें बताते हैं।
  • लिवर एब्सिसजन्य पेट का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) -अमीबा परजीवी से लिवर का फोड़ा भी लिवर का एक मुख्य रोग है, जिसमें पेटदर्द बहुत तीव्र होता है। इसे ‘अमीबिक लीवर एब्सिस’ भी कहते हैं।
  • जब अमीबा परजीवी लिवर कोशिकाओं को नष्ट करते रहते हैं, तो प्रतिक्रिया के फलस्वरूप लिवर में मवाद बनने लगता है।
    • रोगी दर्द की शिकायत करते हैं कुछ रोगी पेट के ऊपरी भाग को दोनों हाथों से पकड़कर आते हैं और भयंकर दर्द तथा बुखार की भी शिकायत करते हैं।
    • इसका दर्द छाती के निचले दाएँ भाग में भी बहुधा होता है। कुछ रोगी तो कंधे के दर्द की शिकायत के कारण ब्रूफेन या अन्य दर्द निवारक दवाएँ ले रहे होते हैं, जबकि रोग का वास्तविक कारण लिवर में होता है।
    • अमीबा जनित लिवर के फोड़े का निदान यदि प्रारंभिक स्टेज पर न हो, तो यह उपचार के अभाव में आसपास के अंगों में फट सकता है। जब यह फेफड़े में फट जाता है, तो रोगी को तीव्र खाँसी तथा चॉकलेट के रंग जैसा बलगम आने लगता है।
    • अमीबा बहुत सूक्ष्म परजीवी होता है। इसलिए साफ दिखने वाले पानी में भी यह विद्यमान हो सकते हैं।
  • कोलाइटिसजन्य उदर शूल (Abdominal pain meaning in Hindi)-बड़ी आँत की सूजन पेटदर्द का एक मुख्य कारण है, जिसके रोगी कुछ अन्य शिकायतें भी बताते हैं, जैसे मल पतले होना या मल साफ न होना, कब्ज रहना, फूलना, अधिक गैस बनना, टट्टी में ऑव तथा खून आना, मल के रास्ते दर्द होना इत्यादि। उदर पीड़ा के सांकेतिक लक्षण सारांश में-
  • पेप्टिक अल्सर के रोगी का पेटदर्द, पेट के ऊपरी मध्य भाग में पेटदर्द होता है। साथ में जलन, भारीपन, खट्टी डकारें और उलटियों की शिकायत होती है। अल्सर के फट जाने पर रोगी अचानक तीव्र पेटदर्द की शिकायत करते हैं। साथ ही उससे रक्तस्राव होने पर खून की उलटी तथा मल में खून के कारण कोलतार जैसा काला चिकना मल आता है।
  • आमाशय कैंसर के रोगी में पेट के मध्य ऊपरी भाग में लगातार दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है। इसके अलावा भूख न लगना, लगातार वजन कम हो जाना, उलटियाँ और काले रंग का मल होना आदि लक्षण होते हैं।
  • पेंक्रियास के रोग (तीव्र एवं पुरानी सूजन, पथरियाँ (स्टोन) एवं कैंसर के रोगी पेट के मध्य ऊपरी भाग में दर्द के अलावा पीलिया, डायरिया एवं डायबिटीज के लक्षणों की शिकायत करते हैं।
  • आमाशय का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)-आमाशय का दर्द नाभि से कुछ ऊपर पेट में ऊपर बाईं ओर आम स्थान पर होता है ।
  • दिल का दर्द -दिल का दर्द प्रायः 45 वर्ष की आयु के बाद हुआ करता है। इस दर्द की टीस बाएँ बाजू की ओर जाती है और रोगी का शरीर पसीने से भीग जाता है। •
  • आँत की टी.बी. में नाभि के आस-पास दर्द होता है। इसके अलावा ऐसे रोगी को भूख न लगना, पेट में वायुगोला-सा घूमना, पतले दस्त अथवा कब्ज, बुखार, वजन कम होना, पेट फूलना जैसे लक्षणों की शिकायत होती है।
  • आंत्र शूल नाभि के चारों ओर ऐंठन महसूस होती है। बड़ी आँत का शूल नाभि के नीचे महसूस होता है। छोटी आँत का शूल नाभि के समीप के भाग में तीव्र प्रकार का जिसमें ऐंठन होती है, कॉलिक (Abdominal pain meaning in Hindi) की प्रकार का एक ही स्थान पर रहता है।
  • पित्तशूल-यकृत प्रदेश (हाइपोकोंड्रियम) से दर्द प्रारंभ होकर दाएँ-बाएँ कंधे में चुभता है। दर्द महिलाओं में अधिक ।
  • एपेंडिक्स शूल नाभि के दाईं इलियक फोसा में होता है। मेकबर्नीज पाइंट पर दबाने से दर्द, कड़ापन महसूस होता है। बच्चों में यह दर्द नाभि या हृदय प्रदेश पर प्रतीत होता है। साथ में ज्वर तथा वमन भी ।
  • वृक्कशूल दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) का प्रारंभ कमर या उसके ऊपरी हिस्से में होता है। दर्द नीचे की ओर गति करते हुए अंडकोषों तथा ओष्ठ में प्रतीत होता है। दर्द पुरुषों में अधिक ।
  • आमाशयिक पीड़ा भोजन के बाद होती है, जैसे कोई नस को कसकर पकड़ रहा हो 20 की वस्त के पेट में जाने की
  • आंत्रपुष्छ शोथ (Appendicitis) का दर्द दाईं ओर तीव्र शूल के रूप में होता है। रोगी दर्द से अपना पेडू दबाकर तड़फता फिरता है। रोगी मिलती और वमन से बेहाल-सा होता है। •
  • जिगर की सूजन में पसलियों के नीचे दाहिनी ओर तेज पीड़ा होती है। रोगी बाईं करवट लेने में असमर्थ होता है।
  • यकृत वृद्धि में पिंजरे की हड्डी के दाहिनी तरफ नीचे की ओर दर्द होता है। पेट के दाईं ओर रह-रह कर तीव्र तीर लगते जैसी तीव्रता लिए दर्द होना, भूख न लगना, कब्ज या दस्त, जीभ का मैलापन, मुँह का स्वाद बिगड़ना आदि लक्षण भी ।
  • गर्भाशय डिंबाशय का दर्द-गर्भाशय या डिंबाशय में दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) और कष्ट होने पर मासिक धर्म बंद हो जाता है या अनियमित हो जाता है। पेडू में बोझ, कमर, जाँघों और कूल्हों में दर्द रहा करता है।
  • पेट के ऊपरी दाएँ भाग में दर्द प्रायः लिवर या पित्ताशय (गाल ब्लैडर) के रोगों के कारण होता है। पित्ताशय के मुख्य रोग इसकी तीव्र या पुरानी सूजन, इसमें पथरियाँ बन जाना या इसका कैंसर है।
  • लिवर या पित्ताशय के रोगों के कारण दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) पेट के ऊपरी मध्य भाग में भी हो सकता है। पेट के ऊपरी-मध्य भाग में दर्द-प्रायः आमाशय, छोटी आँत का ऊपरी भाग या पेंक्रियास के विभिन्न रोगों से होता है, जिनमें आमाशयशोथ (गैस्ट्राइटिस/आमाशय की म्यूकस झिल्ली की सूजन), एसिडिटी या अधिक अम्लता, पेप्टिक अल्सर या घाव या कैंसर मुख्य हैं।
  • लेकिन ध्यान रखें कि पेट के इस भाग में दर्द हृदय रोग (एंजाइना या हार्ट अटैक) के कारण भी हो सकता है।
  • पेट के बाएँ ऊपरी भाग में दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) -यह प्रायः तिल्ली के रोगों से होता है, जिनमें टायफायड बुखार, हृदय के अंदरूनी भाग में सूजन का बुखार, मलेरिया बुखार, रक्त का कैंसर इत्यादि मुख्य है। नाभि के आस-पास का दर्द-प्राय: छोटी आँत के रोगों के कारण होता है जिनमें आंत्रशोथ, आँत ।
  • नाभि के आस-पास का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) -प्रायः छोटी आँत के रोगों के कारण होता है जिनमें आंत्रशोथ, आँत की टी.बी. तथा अल्सर या घाव मुख्य हैं।
  • नाभि की सीध में कमर की ओर-यह प्रायः गुर्दे के रोगों में होता है, जिनमें स्टोन या पथरी तथा मूत्र का संक्रमण मुख्य है।
  • पेट के निचले दाएँ भाग में दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)-यह प्रायः एपेंडिक्स की सूजन (एपेंडीसाइटिस), छोटी तथा बड़ी आँत की टी. बी., बड़ी आँत में अमीबा परजीवी से संक्रमण या उसका कैंसर, महिलाओं में डिंबग्रंथि (ओवरी) की सिस्ट या ट्यूमर के कारण होता है।
  • पेट के निचले मध्य भाग में दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)-यह प्रायः मूत्राशय की सूजन से या उसमें पथरी से या मूत्र प्रवाह में रुकावट हो जाने के कारण मूत्राशय का आकार बढ़ जाने से अथवा बड़ी आँत में अमीबी परजीवी एवं जीवाणुओं से उत्पन्न सूजन या कोलाइटिस से तथा गर्भाशय या उसकी नलियों की सूजन से होता है। पेट के निचले बाएँ भाग में दर्द-यह प्रायः कोलाइटिस, बड़ी आँत का कैंसर, महिलाओं में डिंबाशय के सिस्ट या ट्यूमर से होता है।
  • दर्द के कुछ अन्य कारण-पेट के कीड़े, गैस का दर्द, गैस्ट्रो इंटराइटिस, आँत में रुकावट या आँत का फट जाना, पेरिटोनियम झिल्ली की सूजन, डायबिटीज तथा कुछ मानसिक रोगों के कारण पेट के किसी भी हिस्से में या पूरे में दर्द हो सकता है।
  • पुराने मरोड़ प्रवाहिका में बड़ी आँत के भीतर की दीवार में घाव व्रण होने पर भी संकुचन होने से पेट में दर्द होता है। ऐसे दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)में व्यक्ति को मलत्याग के लिए जाने की हाजत तो होती है, पर मलत्याग हो नहीं पाता।
  • कई बार सीसा, ताँबा, कलई जैसी धातु की कच्ची भस्म का सेवन करने से, या उनसे निर्मित बर्तनों में भोजन बनाने या खाने से जो मंद विष उत्पन्न होता है, उससे भी पेट में दर्द होता है।
उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
  • आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त, कफ दोषों के अनुसार पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) वातिक, पैत्तिक तथा श्लैष्मिक शूल के रूप में मिलता है।
    • वातिक उदर शूल की उत्पत्ति अधिक परिश्रम, रात्रि को अधिक जागने, वात-विकारक खाद्य पदार्थों तथा शीतल पेय का अधिक सेवन, अधिक उपवास, पेट पर चोट लगने आदि से हो सकती है।
    • पैक्तिक उदर शूल हृदय और नाभि के बीच होता है। यकृत (लिवर), से एक नली पक्वाशय में आती है। उसी नली द्वारा यकृत से पित्त पक्वाशय में गिरकर भोजन को पचाने में सहायता करता रहता है। कभी-कभी यह पित्त सूखकर पत्थर जैसा कठिन हो जाता है और यकृत के मुँह या नली के बीच आकर अटक जाता है जब बड़ा भयानक शूल होता है।
    • इसे पैत्तिक या पित्तशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) कहते हैं। इसकी अरुचि अम्लीय, उष्ण, तेल मिर्च से बने खाद्य पदार्थों के अधिक खाने, अधिक मैथुन करने तथा पित्त दोष के विकृत से होता है।
    • कफ जनित उदरशूल-मांस-मछली खाने, रसायुक्त पदार्थों का अत्यधिक सेवन करने से होता है। इसमें शूल के अतिरिक्त भोजन में अरुचि, खाँसी में कफ और कब्ज के लक्षण दिखाई देते हैं।


• नोट- पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) क्यों हैं? परामर्श के लिये आने वाले पेटदर्द के रोगियों में पेटदर्द का वास्तविक मूल कारण ज्ञात करने के लिये उपरोक्त तीन लक्षण-1. दर्द पेट के किस भाग में है 2. दर्द कितने समय से है, तथा 3. यह किस प्रकार है- विशेष रूप से उपयोगी हैं, जिन पर चिकित्सक तथा रोगी को स्वयं भी ध्यान देना चाहिए।

उदरशूल/पेटदर्द की चिकित्सा (Abdominal pain treatment)(Abdominal pain ayurvedic treatment)


उदर रोगों (पेटदर्द आदि) (Abdominal pain meaning in Hindi) का शमन तभी संभव है जब आमाशय स्वस्थ तथा अपने प्राकृतिक रूप में क्रियाशील हो जाता है। यही कारण है कि अनुभवी चिकित्सक आमाशय को स्वस्थ रखने वाली औषधि-व्यवस्था को सर्वोपरि मानते हैं।
पेटदर्द होने पर उसकी उत्पत्ति का कारण ज्ञात करके चिकित्सा करनी चाहिए।

उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)

प्रायः पेटदर्द होने पर अधिकांश स्त्री-पुरुष एलोपैथिक औषधियों का प्रयोग करते हैं। तीव्र उदरशूल में जब कोई अन्य औषधि उपलब्ध न हो तब तो कोई बात नहीं, अन्यथा उदरशूल को बिलकुल नष्ट करने के लिए किसी कुशल आयुर्वेद चिकित्सक से परीक्षण कराके ही चिकित्सा (abdominal pain treatments )करानी चाहिए।

पेटदर्द(Abdominal pain meaning in Hindi) में कारण को अच्छी तरह जाने बिना चिकित्सा करने से कुछ भी लाभ नहीं होता। किसी भी प्रकार का शूल रोग हो, बोतल में या बर्फ की रबड़ की थैली में गर्म पानी भरकर सेंकना लाभदायक है। दर्द की अवस्था की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि प्राणहर अवस्था न हो, तो जल्दी करने की कोई आवश्यकता नहीं है, दो चार घंटे बाद खुद ही दर्द मिट जाता है।

केवल रोगी के विश्वास के लिए कुछ मामूली दवा देनी चाहिए, किन्तु दर्द फिर पैदा न हो, इसकी चिकित्सा करना आवश्यक है, मूल कारण नष्ट होने से फिर शूल पैदा नहीं होता, इसलिए मूल रोग की ही चिकित्सा विधेय है। दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) को तत्काल शांत करने के लिए आगे लिखी दवाएँ देनी चाहिए।

उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)
  1. हरड़, बहेड़ा, ऑवला और राई-इन चारों का चूर्ण 6 ग्राम गर्म पानी के साथ देने से पेटदर्द शांत होता है। यह कब्जियत के लिए विशेष लाभकारी है।
  2. उदरशल अधिकतर अजीर्ण के कारण होता है। शंख भस्म, काला नमक, भुनी हुई हींग. सोंठ, काली मिर्च और पीपल-प्रत्येक को समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। 3 ग्राम की मात्रा में गर्म जल के साथ लेने से शूल (Abdominal pain meaning in Hindi) का शमन होता है।
  3. सोड़ा बाईकार्ब भी 3 ग्राम को 50 मि.ली. गर्म पानी में मिलाकर खाना लाभदायक है।
  4. सोंठ का चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा-सा काला नमक मिलाकर या फिर थोड़ा-सा लवण भास्कर या हिंगग्वास्टक अथवा दोनों चूर्ण मिलाकर गुनगुने जल से सेवन करने पर पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) शीघ्र नष्ट होता है।
  5. रोग की चिकित्सा करते हुए सबसे पहले रोगी की कब्ज दूर करना आवश्यक है, जिससे वायु शांत हो सके। वायु को शांत करने के लिए मृदुरेचक (पेट साफ करने के लिए हलकी औषधि) का सेवन कराया जा सकता है या एरंड के तेल का एनीमा दिया जा सकता है। शंख भस्म पेटदर्द के लिए एक उत्तम औषधि है। इसे 300 मि.ग्रा. की मात्रा में दिन में 4 बार 1 कप गर्म जल के साथ दे ।
  6. आयुर्वेदिक चिकित्सक महाशंखवटी नामक औषधीय योग का सेवन कराते हैं। उसकी 2-2 गोली दिन में 4 बार जल के साथ दी जाती हैं। सभी प्रकार के शूल को शांत करने के लिए अभ्रक भस्म भी बहुत लाभकारी औषधि है। इसे शहद में मिलाकर 125 मि.ग्रा. की मात्रा में दिन में 4 बार सेवन कराना चाहिए।
  7. उपरोक्त सभी औषधियों के अतिरिक्त यह भी आवश्यक है जिस अंग में विकार के कारण दर्द होता है, उसकी अलग से चिकित्सा (Abdominal pain meaning in Hindi) करके विकार को दूर किया जाए।
  8. रोगी को पेटदर्द की स्थिति में पूरा आराम कराना चाहिए। भोजन लेने के तुरंत बाद व्यायाम नहीं करना चाहिए। चूँकि इस रोग का कारण वायु है, अतः वायु बढ़ाने वाले मानसिक तत्वों-चिंता, व्याकुलता और क्रोध से रोगी को बचाकर रखना चाहिए।
  9. पेट के दर्द के रोगी का सर्वप्रथम पेट का विधिवत् निरीक्षण करके रोग के कारण को ज्ञात करें और उसको दूर करने का मार्ग प्रशस्त करें। तत्पश्चात् लाक्षणिक चिकित्सा प्रारंभ कर दें। यदि रोग का कारण साधारण है, तो औषधि से एवं अन्य व्यवस्थाओं से दूर किया जा सकता है।
  10. यदि शल्य साध्य है, तो ऑपरेशन हेतु रोगी को तुरन्त किसी साधन संपन्न बड़े अस्पताल में भिजवा दें। प्रायः आँतों में मल के अटक जाने, गैस की विकारों (Gas troubles) के परिणामस्वरूप इंटेस्टाइनल कॉलिक, आंत्रशूल होता है।
  11. ऐसी स्थिति में एनीमा देने से मल के निकल जाने अथवा गैस के निकल जाने से रोगी की उदरपीड़ा समाप्त हो जाती है। एनीमा देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेट के दर्द की प्रारंभिक अवस्था में रोगी को दूध नहीं देना चाहिए।
  12. एनीमा के लिए किसी मृदु साबुन का प्रयोग करना चाहिए। कैस्टर ऑयल का एनीमा उपयुक्त रहता है। एनीमा के लिए कैस्टर ऑयल के साथ टिंक्चर ओपियम अथवा क्लोरोडिन आदि मिलाकर रोगी को पिलाया जा सकता है। यदि मल निचली आँत में अटका हुआ है तो एनीमा ही देना चाहिए, जुलाव नहीं। ऐसे में एनीमा ही उचित रहता है।
  13. रोगी को एनीमा के बाद महाशंखवटी, हिंग्वाष्टक चूर्ण आदि दिए जा सकते हैं।
  14. पेटदर्द (Intestinal colic-आंत्रशूल) के रोगी का ब्लड प्रेशर अवश्य देखते रहना चाहिए। यदि रोगी का ब्लड प्रेशर तनाव, उत्तेजना, शॉक आदि से कम या अधिक हो गया हो, तो उसे तत्काल सामान्य अवस्था में लाने का प्रयत्न करना चाहिए।
  15. वायु शूल (Abdominal pain meaning in Hindi) में सोंठ, कालीमिर्च, भुनी हींग, मधुयष्ठी, काला नमक, पिप्पली और इमली का क्षार बराबर मात्रा में लेकर गर्म जल के साथ रोगी को पिलाएँ। साथ ही मैनफल को मट्ठे में घिसकर हलका-सा गरम करके नाभि के आस-पास लेप करने से सब तरह के उदर शूल नष्ट होते हैं।
  16. पानी में सोडा बाईकार्ब (खाने वाला सोडा) व नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेटदर्द निता है।
  17. धात्रीलौह की 1 गोली गिलोय के रस और शहद के साथ सेवन करने से भी उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi)में शीघ्र लाभ मिलता है।
  18. लवणभास्कर चूर्ण और अपामार्ग क्षार समान मात्रा में मिलाकर गुनगुने जल के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।
  19. 5. अजवायन और कालानमक बराबर मात्रा में पीसकर गुनगुने जल से लेने पर उदरशूल शीघ्र नष्ट होता है।
  20. पिप्पलीमूल 60 ग्राम और मिश्री 30 ग्राम लें। इनका महीन चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। मात्रा-1ग्राम जल के साथ आवश्यकतानुसार सेवन करें। यह औषधि योग उत्तम उदरशूल(Abdominal pain meaning in Hindi) हर योग है। यह चूर्ण वातज तथा कफज उदरशूल में तुरन्त लाभकारी है। सैकड़ों बार का अनुभूत है।
  21. वच का चूर्ण 500 मि.ग्रा. खाकर ऊपर से 50 मि.ग्रा. मट्ठा पीने से कृमजन्य उदरशूल में लाभ होता है। यह प्रयोग 3-4 दिन तक निरंतर सेवन करने से कृमि जनित उदरशूल में शांति हो जाती है।
  22. 8. सोंठ 25 ग्राम लेकर 1/2-1 लीटर पानी में औटा लें। जब पानी 25 मि.ली. शेष रह जाए, तब छानकर पिला दें। शूल खत्म हो जावेगा।
  23. भुनी हुई हींग, अजवायन, कालानमक, अमरवेल, पीपल, सेंधा नमक, हरड़ की छाल समान मात्रा में एकत्र करके पीस लें। वातजन्य शूल में 6 ग्राम मद्य के साथ देने से पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) का शमन होता
  24. नींबू का रस 10 ग्राम, जबाखार 3 ग्राम को 6 ग्राम शहद में मिलाकर प्रयोग करने से पेट का दर्द नष्ट होता है।
  25. तुलसी पत्र स्वरस + अदरक स्वरस समभाग मिलाकर गर्म करके रोगी को पिलाएँ तो उदर की वेदना (Abdominal pain meaning in Hindi) शांत होती है।
  26. पके हुए जामुन से घड़ा भरकर 480 ग्राम नमक डालकर अच्छी तरह हिलाकर रख दें। फिर दूसरे दिन उसका रस निकालकर बोतल में भर लें। इन बोतलों का मुँह बंद करके धूप रखें और रोज एक बार मोटा कपड़ा मुँह में रखकर दूसरी बोतल में बदल दें। 15-20 दिन एक उत्तम औषधीय सिरका तैयार हो जाता है।
    • मात्रा-6-12 ग्राम चार गुने जल के साथ मिलाकर देने से पेटदर्द में बहुत लाभ होता है। • नोट-चूने के फर्श पर इसे जरा-सा डालने से जब तेजाब की तरह बुलबुला उठने लगें, तब समझना चाहिए कि औषधीय सिरका तैयार हो गया है।
  27. अदरक का रस और नींबू का रस मिला लें। तत्पश्चात् इसमें कालीमिर्च का चूर्ण 1 ग्राम मिलाकर पिलाएँ। इससे उदरशूल (Abdominal pain meaning in Hindi) शांत होता है।
  28. सोडा बाईकार्ब 20 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, टाटरी 10 ग्राम-इन तीनों को पीसकर एक में मिलाकर रख दें। मात्रा-3 ग्राम की मात्रा में लेकर 150 मि.ली. जल में डालकर रोगी को पिलाएँ, औषधि पिलाते ही उदरशूल में शांति मिलेगी।
  29. नींबू सत्व 3 ग्राम, कल्मीशोरा 6 ग्राम-इन दोनों को बारीक पीस लें और 25 ग्राम मिश्री के शर्बत में मिलाकर (Abdominal pain meaning in Hindi) पिलायें। मात्र-1-2 खुराक पिलाते ही पेटदर्द में पूर्ण लाभ हो जावेगा।
  30. कपूर 60 मि.ग्रा., अफीम 60 मि.ग्रा. खाने का सूखा चूना 484 मि. ग्रा. मिलाकर तरल कर लें और गोली बना लें । अथवा इसे कैप्सूल में भर लें। इसकी एक मात्रा देते ही रोगी को पेटदर्द शांत हो जाता है। यदि 1 घंटे बाद भी पुनः दर्द महसूस हो, तो पुनः 1 मात्रा और सेवन करा दें, रोगी ठीक हो जावेगा।
  31. हिंगवाष्टक चूर्ण 6 ग्राम को गुनगुने जल के साथ सेवन कराने से पेटदर्द में लाभ मिलता है। यदि इसमें 1 ग्राम इलायची बीज चूर्ण तथा 240 मि. ग्रा. शंख भस्म और मिला ली जाए, तो कैसा भी दर्द क्यों न हो 1 घंटे में शान्त हो जाता है।
  32. पेट में जहाँ तीव्र दर्द हो रहा हो उस स्थान पर आक के पत्ते पर पुराना घी चुपड़कर गर्म करके रखें तथा ऊपर से गरम किया हुआ कपड़ा या रुई द्वारा पत्ते के ऊपरी भाग को कसकर एवं दबाकर कुछ समय तक सेंकने से त्वरित लाभ मिलता है।
  33. यह अनुभव में आया है कि कई बार रात्रि को ठंडे, वासी चावल, गोभी की सब्जी, दाल या कोई अन्य वायु-प्रेरक खाद्य लेने पर भी वायु विकार के कारण तीव्र स्वरूप का उदरशूल होता है। ऐसे में वात को नष्ट करने के लिए राई को पीसकर उसमें थोड़ी-सी हींग मिलाकर नाभि के आसपास लेप करके गर्म पानी की बोतल से सेंकने पर बहुत लाभ (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है।
  34. अजवायन और काला नमक बराबर मात्रा में पीसकर गुनगुने जल से लेने पर पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)शीघ्र नष्ट होता है।
  35. धात्रीलौह की 1 गोली गिलोय के रस एवं शहद के साथ सेवन करने से उदरशूल में शीघ्र लाभ होता है।
  36. अजीर्ण जन्य पेटदर्द, अफारा, वायुगोला की स्थिति में अजवायन 4 भाग, नमक काला 1 भाग, आँवले का चूर्ण 2 भाग-सबको कूट-पीस, छानकर रख लें। इसमें से 3 ग्राम औषधि गरम जल के साथ लें, इससे रोगी को पर्याप्त लाभ मिलता है।
  37. हरड़, बहेड़ा, ऑवला तथा राई का चूर्ण बनाकर कपड़े से छानकर रख लें। इसे 3 ग्राम नमक के साथ लें, लाभ होगा।
  38. हैजे की प्रारंभिक स्थिति में भयंकर पेटदर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) होता है। इसके उपचार के लिए प्याज छील कर, कद्दूकस करें और उससे निकले रस में काला नमक मिलाकर रोगी को पिलाएँ, पेट दर्द में तुरन्त लाभ मिलेगा
  39. हींग को गरम पानी में घोलकर और मोटे सूती कपड़े को इस घोल में भिगोकर गरम-गरम सेंक करने से पेटदर्द में आराम मिलता है। इसी प्रकार से बच्चों के पेटदर्द में पेट पर हींग की गरम पट्टी का सेंक देने पर लाभ होता है।
  40. मूली का रस, घीग्वार (घृतकुमारी) का रस, नींबू का रस, अदरक का रस 500-500 ग्राम, कल्मीशोरा, सेंधा नमक, जबाखार 250-250 ग्राम, अजवायन भुनी हुई, जीरा सफेद भुना हुआ, मेथी भुनी हुई, चंदसुर भुना हुआ 200-200 ग्राम, हींग तलाबी भुनी हुई 60 ग्राम-ऊपर के रसों को छोड़कर बाकी दवाएँ कूट छानकर रसों में मिला दें। तत्पश्चात् शीशे के जार में भर कर रख लें। मात्रा – 20-20 मि. ली. प्रातः सायं सेवन कराएँ
    • यह औषधि योग राजवैद्य पं. सुरेंद्रनाथ दीक्षित जी का है, जिसे अनेकों बार अजमाया गया है। यह योग गैस से उत्पन्न पेट फूलने और उदरशूल की अवस्था में विशेष लाभकारी हैं। विशेष- जिन्हें गैस बनने की शिकायत हो और पेट फूल जाता है तथा साथ में पेट दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) रहता है, उन्हें इस योग के सेवन से अति उत्तम लाभ मिलता है।
    • भूख खुलकर लगने लगती है।
  41. काला नमक, हींग तालाबी, कूटमीठा, अजवायन 100-100 ग्राम कूट-छानकर घीग्वार के रस में घोंटकर 500-500 मि. ग्रा. की गोलियाँ बना लें।
    • मात्रा- 1-2 गोली पानी के साथ दें। यह भयंकर शूल को तत्काल शमन करती हैं।
  42. अजवायन का तेल 1 ग्राम, बबूल का गोंद 1 ग्राम पीसकर 2 चम्मच पानी में डालकर पिला देने से पेट का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) जाता रहता है। इसे 2-3 बार दिया जा सकता है।
  43. काला नमक, हींग तालाबी. कूटमीठा, अजवायन 100-100 ग्राम कूट-छानकर घीग्वार के रस में घोंटकर 500-500 मि. ग्रा. की गोलियाँ बना लें।
    • मात्रा-1-2 गोली पानी के साथ दें। यह भयंकर शूल को तत्काल शमन करती हैं।
  44. अजवायन का तेल 1 ग्राम, बबूल का गोंद 1 ग्राम पीसकर 2 चम्मच पानी में डालकर पिला देने से पेट का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi) जाता रहता है। इसे 2-3 बार दिया जा सकता है।
  45. उदर में यकृत का दर्द (Abdominal pain meaning in Hindi)होने पर-बादाम नग 6, मुनक्का नग 6, मगज खरबूजा 4 ग्राम, छोटी इलाचयी 2, मिश्री 10 ग्राम। जब यकृत के नीचे दर्द हो, साथ में वमन होने पर कुछ आराम मिले, पुनः दर्द हो और दर्द बराबर बन रहे । मलावरोध हो तथा यकृत के स्थान पर दबाने से पीड़ा हो तब उपरोक्त योग ठंडाई की तरह घोंटकर 1/2 कप पानी में मिलाकर देने से रोगी को चमत्कार दिखता है। यह योग पित्त स्राव को नियमित करता है।
  46. लहसुन और काला नमक बराबर-बराबर लेकर पीस लें। उसके बाद घी में तल लें। इसमें से 5-5 ग्राम सुबह शाम लेने से कैसा भी दर्द क्यों न हो नष्ट हो जावेगा।
  47. पके हुए अनार का रस 10 ग्राम, भुनी हुई हींग 125 मि.ग्रा., सेंधा नमक और अदरक 250-250 मि. ग्रा. मिलाकर सेवन कराने से पेटदर्द(Abdominal pain meaning in Hindi) नष्ट होता है।

और इसी प्रकार अन्य बीमारियों के बारे मे जानने के लिए – enlightayurveda.com पे क्लिक कीजिए, औरतों के पेटदर्द के बारे मे जानने के लिए –https://enlightayurveda.com/what-causes-lower-abdominal-pain-in-females/ क्लिक कीजिए ।

और कुछ आयुर्वेदिक कल्प (Abdominal pain meaning in Hindi) (abdominal pain medical care )(abdomen pain ayurveda treatment)के बारे जो बहोत असरदार है

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