अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)रोग परिचय-

भोजन के प्रति अरुचि होना ही अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)है। इसी को अरोचक(anorexia nervosa definition) कहा गया है। इस रोग में स्वादिष्ट भोजन होने पर भी एक ग्रास खाते ही रोगी को अच्छा नहीं लगता और वह खाना छोड़ देता है। रोगी की खाना खाने की चाह (रुचि) न होने को ही अरुचि कहते(anorexia in hindi) हैं।
अरुचि अर्थात् भोजन के प्रति रुचि या इच्छा का अभाव ही जिस रोग का प्रधान लक्षण हो उसे आरोचक या अरुचि कहते हैं। सचमुच में भूख होने पर भोजन ग्रहण में असमर्थता (अनिच्छा) ही अरुचि है। रोगी को ऐसा अनुभव होता है जैसे कि उसे खाद्यों से घृणा हो गई हो।
संक्षेप में कहना हो तो यही कहा जा सकता है कि भोजन को मुख में डालने पर उसका रुचिकर (स्वादिष्ट) न लगना ही अरुचि(anorexia meaning) अरोचक (Anorexia meaning in Hindi) है। यह एक ऐसा विशेष रोग है कि जिसका लक्षण विशेष एवं दोष विशेष दोनों ही रूपों में मिलता है। आधुनिक विज्ञान में एनोरेक्सिया (Anorexia) नाम से अरुचि का वर्णन मिलता है, जो शारीरिक रोगों के उपद्रव रूप में लक्षण स्वरूप में होता है। मानसिक कारणवश होने वाली अरुचि को एनोरे क्सिया नर्वोसा (Anorexia Nervosa) कहते हैं।

अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)के कारण –
इस रोग के प्रमुख कारणों के अंतर्गत मुख्य रूप से आमाशय की गड़बड़ी अथवा आमाशय के विकारों से उत्पन्न समस्त परिस्थितियों को दोषी मानना ही उचित है, दृष्टिसंगत है। इसके साथ ही जिह्वा मुख, गला, लाला ग्रंथियों (Salivary glands) एवं अन्न नलिका को प्रभावित करने वाले कोई भी हेतु या हेतुस्वरूपक रोग अरोचक/अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) के भी कारण माने जायेंगे।
अरुचि कारण भेद से दो प्रकार का हो सकता है-
1.शारीरिक हेतु जन्य (Organic)— इसमें गैस्ट्राइटिस, कैंसर तथा हेपेटाइटिस, अनीमिया इत्यादि प्रमुख है।
- मानसिक हेतु जन्य (Psychogenic) – इसके अंतर्गत शोक, भय, लोभ, क्रोध, मन का अभिघात भाव आदि प्रमुख हैं।
- आधुनिक दृष्टि से विचार करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) की उत्पत्ति का स्थान आमाशय है
- उसके द्वारा ही क्षुधानाश और क्षुधावृद्धि होती है। आमाशय में वात-वित्त-कफ दोषों का प्रकोप या आमाशयिक कलाशोथ (गैस्ट्राइटिस), आमाशयिक कर्कटाबुर्द (आमाशय कैंसर), आमाशयिक उपाम्लता (हाइपोक्लोरहाइड्रिया) तथा रक्तल्पता (अनीमिया) ये सभी शारीरिक कारण हैं, जिसके कारण भोजन में अरुचि होती है।
- साधारण अरुचि प्रथम यौवन की व्याधि है, जो अधिक आहार, स्वास्थ्य भंग, अनाहार आदि अनेक कारणों से संभव है। लेकिन वास्तव में इसके वैज्ञानिक विश्लेषण से ही पेट की इस व्याधि का पूरा पता लग सकता है। अत्यधिक चिंता, भय तथा क्रोध भी इस रोग को उत्पन्न करते है देखे गए हैं।
- अरुचि कुछ विशेष प्रकार के रोगों के कारण भी आ घेरती है; यथा-न्यूमोनिया, हिस्टीरिया, सर्दी, खाँसी, ज्वर, जुकाम, फ्लू, मलेरिया, खसरा, आंत्रिक ज्वर, चेचक आदि रोग प्रमुखता से रखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अनिद्रा/नीद न आना, आमाशय प्रदाह, आमाशय के घाव/गैस्ट्रिक अल्सर,
- कैंसर जैसे प्राणघातक रोगों के कारण से भी अरुचि रोग उत्पन्न होता है।
- कभी-कभी युवा वर्ग में प्रणय निष्फलता या परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना आदि प्रसंगों से अरुचि जैसा सामान्य लक्षण लम्बे समय तक बना रहता है, जिससे शरीर के मांस-मेदादि धातु तथा मानसिक उच्चतम भावों का भी ह्रास होते देखा जाता है। आधुनिक विज्ञान इसे एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia nervosa) कहते हैं।
- व्यापार आदि में अचानक घाटा पड़ना, अकाल में ही किसी कारणवश बेकार हो जाना या प्रिय पात्र का वियोगादि प्रसंगों में अरुचि जैसा शारीरिक लक्षण मानसिक कारणों से उत्पन्न होता है। बड़ी अफसरी में व्यस्त आदमी रिटायर्ड होने के खालीपन तथा एक प्रकार का रूखापन महसूस करता है।
- अपनी निष्क्रियता डसने लगती है, ग्लानि तथा हताशा के साथ अरुचि का भी वह शिकार बन जाता है। कभी-कभी इससे उलटा अधिक व्यस्त लोग अपने खान-पान के प्रति ध्यान न देकर अनियमितता के कारण अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) से ग्रस्त रहते पाए जाते हैं। उनके मन की लोभवृत्ति, चिंताग्रस्तता तथा तनाव इनके कारण होते हैं।
- सीजोफ्रेनिया जैसे मानस रोगों में रूग्ण कभी-कभी बिलकुल खाना-पीना छोड़ देता है तथा धातुक्षय आदि होकर मृत्यु तक हो सकती है।
- आधुनिक विज्ञान के मतानुसार ‘अरुचि’ रोग अनेक रोग के उपद्रव या सहलक्षण के रूप में होता बताया गया है। अन्नवह, पुरीषवह, रसवह एवं प्राणवह स्रोतस की अनेक जीर्ण व्याधियों में अरुचि उपद्रव रूप में मिल सकता है। आमाशय का घातक अर्बुद या कामला जैसे रोग की पूर्वावस्था में एक मात्र ‘अरुचि’ जैसा सामान्य लक्षण, निदान करने हेतु उपयोगी होता है।
- आधुनिक विज्ञान के मतानुसार ‘अरुचि’ रोग अनेक रोग के उपद्रव या सहलक्षण के में होता बताया गया है। अन्नवह, पुरीषवह, रसवह एवं प्राणवह स्रोतस की अनेक जीर्ण व्याधियों में में एक मात्र ‘अरुचि’ जैसा सामान्य लक्षण, निदान करने हेतु उपयोगी होता है। अधिक चायपान, अरुचि उपद्रव रूप में मिल सकता है। आमाशय का घातक अर्बुद या कामला जैसे रोग की पूर्वावस्थे तमाकू, मद्यपान आदि व्यसन से आमाशय, यकृत आदि अवयव पर अनिष्ट प्रभाव होकर ‘अरुचि'(Anorexia meaning in Hindi) जीर्णरूप में (Inchronic form) हो जाती है।
- प्रतिश्याय/जुकाम जैसे नासारोग में गंध तथा हृदय रोग के हेतु से क्षुधानाश होकर अनियमित रूप से अरुचि की प्राप्ति होती है एवं सब प्रकार के ज्वर, में अरुचि लक्षण सहअस्तित्व रूप से होता है।
- सर्वांग व्याधियों तथा आमाशय और आंत्र के विकारों शारीरिक तथा मानसिक थकावट, मानसिक संताप, अफीम और शराब का अति सेवन, कोष्ठबद्धता उदरकृमि (Ankylostomiasis), हिस्टीरिया, क्षय (T.B.), आमाशय प्रसारण, फक्करोग (Coeliac disease), कालाजार (Kalazar), आमाशय के मुद्रिकाद्वार में अवरोध, पांडु, घातक पांडु, आमाशय और आंत्र कैंसर, वृद्धावस्थाजन्य निर्बलता, नष्टार्तव, मलावरोध, क्षयात्मक व्याधियों, शुक्रक्षय, अति मद्यपान आदि रोगों में क्षुधा का लोप होकर अरुचि की व्याधि पैदा हो जाती है।
- शरीर में बी. कॉपलैक्स (B. Complex) जीवतत्त्व की न्यूनता (Vitamin “B” Complex deficiancy) तथा अधिक कार्बोहाइड्रेट के सेवन से अरुचि उत्पन्न हो सकती है। आधुनिक औषधियों के कुप्रभाव से अरुचि उत्पन्न होती देखी जाती है जैसे-एंटीबायोटिक्स दवाइयाँ आदि।
- अधिक चायपान, तमाकू, मद्यपान आदि व्यसन से आमाशय, यकृत आदि अवयवों पर अनिष्ट प्रभाव होकर अरुचि जीर्ण रूप में हो जाती है।
- वृक्क रोग, यकृत रोग तथा हृदय रोग में अरुचि लक्षण सहअस्तित्व रूप में होता है
- क्रोध, शोक, चिंता, हर्ष, साहस, भय, इत्यादि परिस्थितियों के उपस्थित होने पर भोजन की रुचि जाती रहती है। पर ऐसी अवस्था में हठात् मन को इन वेगों (Emotions) से दूर रहकर किसी शांत विचार की ओर ले जाने से भोजन में रुचि होने लगती है।
- विशिष्ट-सार्वदैहिक अर्थात् शारीरिक दृष्टि से प्रायः वृद्धावस्था में जब आमाशय, अग्न्याशय, यकृत इत्यादि अकर्मण्य हो जाता है और सहसा रुचि पर कोई आघात होता है, तो अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) उत्पन्न होती है। बहुत दिनो तक बीमार रहने वालों की भी पाचनग्रंथियाँ कर्महीन होती हैं।
- कभी-कभी शरीर के किसी अंग (मसूड़ा, गला आदि) में ऐसा विष उत्पन्न होता रहता है, जो रुचि को बिल्कुल नष्ट कर देता है।
- सुश्रुत के अनुसार वातादि शारीरिक कारण तथा भय, शोक, लोभ, क्रोध आदि मानसिक कारणों से अन्नवह स्रोतस तथा हृदय में दोष वृद्धि होने अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) की उत्पत्ति होती है।
- अधिक पौष्टिक आहार लेने तथा सारे दिन कार्य न करने से भी अरुचि हो जाती है।
एडीसंस, मिक्सीडीमा आदि ऐसे रोग हैं, जिनमें शरीर के अंतर्गत संपादित होने वाली चयापचयी क्रियाएँ बहुत मंद हो हाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अरुचि हो जाती है। - ज्वर, कब्ज, निमोनिया, चेचक, खसरा, मलेरिया आदि संक्रामक ज्वर में अरुचि एक प्रमुख लक्षण है।
- कब्ज, ज्वर, निमोनिया, चेचक, खसरा, मलेरिया, आदि संक्रमण ज्वर ।
आँत तथा आमाशय (आमाशयिक कलाशोथ, आमाशय कैंसर, आमाशयिक उपाम्लता) के
विभिन्न रोग । - यक्ष्मा तथा अन्य चिरकारी रोगों में रोगी को प्रायः अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) हो जाती है।
- मानसिक अथवा आगतुक कारण-
शोक, भय, क्रोध, अतिलोभ एवं गंध के सेवन से भोजन में अरुचि हो जाती है।
हिस्टीरिया, अनिद्रा तथा अन्य मानसिक स्थितियों में।
इस प्रकार का रोग अधिकतर यकृत और आमाशय की खराबी के कारण होता है। इसके अतिरिक्त कब्ज चिंता, डर, गुस्सा, घबराहट, हिस्टीरिया, कुछ संक्रामक ज्वर रोग, कैंसर, प्रदाह आदि के कारण अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)हो जाया करती है। - अरुचि में शारीरिक कारणों की अपेक्षा मानसिक कारणों का अधिक महत्त्व है।

अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) के लक्षण (anorexia nervosa symptoms) –

इस अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) व्याधि में कोई विशेष लक्षण नहीं देखे जाते। हाजमे की कोई भयानक अवनति नहीं देखी जाती, क्षुद्रांत्र की क्रिया ठीक रहती है। खाद्य द्रव का पाचन नहीं होता है। रोगी को खाने में कोई रुचि नहीं होती है। यदि वह खाने के लिए बैठ भी जाए, तो एक दो कौर अथवा एक दो रोटी खाकर उठ बैठता है और आगे खाने की अनिच्छा प्रकट करता है।
मुँह का स्वाद कसैला हो जाता है, थोड़ा खाने के बाद पेट भरा-सा प्रतीत होता है। आहार गले के नीचे नहीं उतरता है। मुख में उष्णता तथा दुर्गंध रहती है। रोगी को खट्टी-खट्टी या सूखी डकारें आती हैं। रोगी रक्तहीन, शीर्ण, शुष्क तथा मनहूश हो जाता है। पेशाब की मात्रा बहुत कम हो जाती है
अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)के लक्षण(anorexia nervosa symptoms)-
अरुचि (Anorexia meaning in Hindi)के लक्षण सारांश में इस प्रकार बताए हैं-
- भूख लगने पर भी खाने में असमर्थता।
- अभिलाषित आहार देने पर भी न खा सकना ।
- भोजन के स्मरण, दर्शन, गंध, स्पर्श मात्र से होने वाली उद्विग्नता ।
- कैंसर तथा क्रानिक गैस्ट्राइटिस (जीर्ण आमाशयशोथ) में कभी-कभी भोजन करने से पूर्व
भूख बिलकुल नहीं लगती या 2-4 ग्रास खाने पर ही पेट भरा महसूस होने लगता है। यदि आमाशय
में अल्सर (गैस्ट्रिक अल्सर) हो तो भोजन लेने में कभी-कभी डर लगता है। - अरुचि(Anorexia meaning in Hindi), जिसे ‘एनोरेक्सिया नर्वोसो’ भी कहते हैं, की लाक्षणिक स्थिति निम्न प्रकार है- साधारणतया भूख नहीं लगती या रोगी खाने से मना कर देता है।
- शरीर का भार लगातार गिरता जाता है।
- मलावरोध बना रहता है।
- नाड़ी मंद रहती है।
- शाखाओं व चेहरे पर रोमों की उत्पत्ति बंद हो जाती है।
- अधिकतर यह उन युवतियों में देखने को मिलता है, जिनको खासकर अनार्त्तव हो तथा रुग्णता, बेचैनी व गिरावट (Depression) महसूस करती हो।
- ध्यानपूर्वक खोज करने से कोई विशेष कारण दिखाई नहीं देता है।
यदि रोगी भोजन की सूक्ष्म मात्रा भी खा लेता है तो ऐसा लगता है जैसे उसने कितना अधिक भोजन खा लिया हो। व्यर्थ ही पेट फूलना, खट्टी-खट्टी डकारें, हर चीज से दिल भरा लगना, मुँह में पानी भर आना, कमजोरी, आलस्य, थकावट, खाना खाते ही मिलती के लक्षण, तबियत भारी, लंबी बीमारी की दशा में भार में कमी आदि लक्षण रोगी में पाए जाते हैं। - अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) रोग बिगड़ने का प्रमुख कारण तथा ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह व्याधि मल संचय की प्रवृत्ति/मलावरोध से ही बिगड़कर उग्र रूप धारण करता है। साथ ही रोगी को गंभीर परिणाम तक ले जाकर खड़ा कर देता है, यहाँ तक कि जान तक ले लेता है। यदि समय रहते मल संचय की प्रवृत्ति को रोक लिया जाए, तो यह व्याधि साधारण रोगों की भाँति जल्दी ही पीछा छोड़ देती है।
- इस रोग की अंतिम अवस्था भयावह तथा प्राणघातक होती है। इस अवस्था में रोगी का शरीर शीतल (ठंडा) पड़ जाता है और वह धीरे-धीरे नीला पड़ने लगता है। विशेषकर रोगी की आँखें नीली दिखाई देने लगती है। नाड़ी परीक्षा करने पर नाड़ी समझ से बाहर हो जाती है। नाड़ी कभी धीमी तो कभी प्रबल हो जाती है अथवा क्षीण। ऐसी स्थिति में नाड़ी पकड़ में ही नहीं आती है। चिकित्सक जब तक रोगी के रोग को समझ पाता है, तब तक रोगी परलोक सिधार जाता है।
- आमतौर पर ऐसी स्थिति निमोनिया/फुफ्फुसशोथ तथा आंत्रिक ज्वर जैसे रोगों के उपसगों में देखने को मिलती है। चिकित्सा-अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) के क्षोभक (Counter irritants) पदार्थों का मुख द्वारा प्रयोग सफल होता है। इसमें भी रोगी की इच्छा के अनुसार औषधि का चयन करना चाहिए।
- कटु, तीता, कसैला, खारा इत्यादि रस भी खाने में रुचि उत्पन्न करते हैं। इनमें आमतौर पर हरीमिर्च, लालमिर्च, कालीमिर्च, अदरक, नींबू, काला नमक, पुदीना, धनियाँ आदि नित्य प्रयोग में आने वाले भोज्य पदार्थ बड़े उपकारी होते हैं।
अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) की चिकित्सा(anorexia nervosa treatment) –
- पाचन संस्थान को प्रभावित करने वाले ज्वर, अग्निमांद्य आदि प्रमुख कारणों का निवारण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दोषज अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) में मुख आदि को प्रत्यक्षत: प्रभावित करने वाली चिकित्सा तथा आगंतुज में शोकादि के निवारण के साथ-साथ सच्वाजय चिकित्सा करनी चाहिए।
- सामान्यतया अरुचि में अग्नि ठीक ही रहती है, फिर भी अग्निमांद्य एवं उदर रोग में उपयोगी औषधि का प्रयोग करना चाहिए। रोगी को हलका और रुचिकर आहार देना चाहिए। अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) के अधिकांश रोगी मानसिक विषमयता से ग्रसित रहते हैं। मानसिक कारणों से रोग हो, तो शामक औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
- पके नींबू का रस 1 भाग, शकर 6 भाग और जल आवश्यकतानुसार मिला लें। तत्पश्चात् गुनगुना कर लौंग और कालीमिर्च का चूर्ण डालकर सेवन कराएँ। इससे अग्नि प्रदीप्त होता है ।
- भोजन से पूर्व अदरक की छोटी-छोटी कतरनें लवण (सेंधा नमक या काला नमक) के साथ रखकर खाने से भोजन में रुचि तथा भूख में वृद्धि होती है।
- अदरक व अनार के रस में भुना जीरा व शकर डालकर पिलाने से रुचिकारक होता है। अनेकों •बार का अनुभूत है।
- पके नींबू का रस 1 भाग, शकर 6 भाग और जल आवश्यकतानुसार मिला लें। तत्पश्चात् गुनगुना कर लौंग और कालीमिर्च का चूर्ण डालकर सेवन कराएँ। इससे अग्नि प्रदीप्त होकर रुचि की उत्पत्ति होती है। साथ ही समस्त आहार का पाचन हो जाता है।
- खट्टा अनारदाना 80 ग्राम, दालचीनी 40 ग्राम, छोटी इलायची 40 ग्राम, तेजपाल 4 ग्राम, मिश्री
- काला जीरा, भुना जीरा, कालीमिर्च, मुनक्का, अमचूर, अनार दाने, काला नमक और गुंड को बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 ग्राम की गोलियाँ बना लें। इसमें से 1-1 गोली प्रायः सायं सेवन करने से सब प्रकार की अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) दूर होती है।
- 120 ग्राम, इन सबको अलग-अलग कूट-पीस छानकर चूर्ण करके सबको आपस में मिला लें। इस चूर्ण की 3 से 6 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से अरुचि दूर होती है।
- रसकेसरी 250 मि. ग्रा. सुधानिधि रस 250 मि. ग्रा.. सुलोचनाभ्र 125 मि. ग्रा. की मात्रा दिन में 2 बार लेने से अरुचि (Anorexia meaning in Hindi) अति शीघ्र नष्ट होती है।
- भुना सफेद जीरा 250 ग्रा., सेंधा नमक 125 ग्रा., भुनी हींग 3 ग्रा… चीनी 250 ग्रा., कालीमिर्च 125 मि. ग्रा., पीपल 6 ग्रा.. टाटरी 20 ग्रा. इन सबको कूट-पीस छानकर रख लें। 3-3 की मात्रा 4-4 बार प्रतिदिन लें, अरुचि की औषधि अनुभूत है।
- कालीमिर्च 500 ग्रा.. सेंधा नमक 500 ग्रा., टाटरी 100 ग्रा., सौफ (गरम की हुई) 500 ग्रा., जीरा 500 ग्रा.. चीनी 700 ग्रा.. भुनी हींग 60 ग्रा. सबको चूर्ण कर आपस में मिला लें। 2-3 ग्राम की मात्रा दिन में 4-5 बार चूसकर खाएँ पूर्ण अनुभूत है। यह योग हर तरह से अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) तथा क्षुधा की कमी में उपयोगी है।
- हिंग्वष्टक चूर्ण, हरड़ बड़ी, शंख भस्म, सेंधा नमक, एलुआ, पिप्पली, कपर्द भस्म, काला नमक, शुद्ध कुचला, यवक्षार, सभी बराबर लें।
निर्माण-एलुआ (अलो वेरा )को गर्म पानी में घोलकर सभी अन्य द्रव्य मिलाकर मशीन से अथवा हाथ से 200 मि.ग्रा. की गोलियाँ बना लें। - मात्रा-1-2 गोली प्रायः सायं या आवश्यकतानुसार गर्म जल के साथ सेवन कराएँ ।
विशेष उपयोग-आधुनिक समय में बहुप्रचलित गैस रोग के लिए यह लक्षानुभूत सफल प्रयोग है। उदरशूल को तुरन्त दूर करता है। अरुचि, (Anorexia meaning in Hindi)अजीर्ण, आध्यमान में लाभकर है। पाठक इस योग का प्रयोग निर्भीकतापूर्वक कर सकते हैं।- - नोट- • यह योग कविराज डॉ. गिरिधारी लाल मिश्र एम. डी. ने निर्देशित किया है, जिसे हजारों चिकित्सकों ने अपने अनुभवों के आधार पर सफल पाया है।
- जीरा सफेद भुना 200 ग्रा., अनारदाना 200 ग्रा., नौसादर 200 ग्रा.. काला नमक 200 ग्रा.. पिसी खटाई 200 ग्रा., बड़ी इलाचयी का दाना 100 ग्रा., कालीमिर्च 50 ग्रा., सफेद मिर्च 50 ग्रा.. टाटरी 50 ग्रा., भुनी उत्तम हींग 50 ग्रा..सबको बारीक पीस कर 3 ग्राम भोजन से पहेले इस योग का प्रयोग करे
- घी में भुनी हीरा हींग 0.5% (10 ग्राम), नींबू सत्वाम्ल (साइट्रिक एसिड) 2.5% (50 ग्राम), भुना पत्रज का कपड़छन चूर्ण 5% (100 ग्राम), चित्रकमूल की छाल का कपड़छन चूर्ण 5% (100 ग्राम), आक की मुँह बंद कली शुष्क का कपड़छन चूर्ण 5% (100 ग्राम), श्वेत जीरे का भुना चूर्ण 5% (100 ग्राम), कालीमिर्च का कपड़छन चूर्ण 12.5% (250 ग्राम), जौहर नौसादर (सत्व नृसार) 25% (500 ग्राम), संचल लवण का बारीक कपड़छन चूर्ण 39.5% (190 ग्राम) ।
- निर्माण विधि-सबको एक-एक करके ठीक से घुटाई करके एक समकर एअरटाइट शीशियों में सुरक्षित रख लें।
उपयोग-यह बहुत ही स्वादिष्ट उत्तम योग है। इसे छोटे-बड़े सभी बड़े चाब से खाते हैं। यह अरुचि को तत्काल नष्ट करता है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ यह मंदाग्नि, अरुचि(Anorexia meaning in Hindi), अजीर्ण, भूख न लगना, पेट फूलना इत्यादि उदर विकारों को दूर करता है।
मात्रा-3-3 ग्राम दवा भोजन के बाद चूसकर खाएँ । - सोंठ 100 ग्रा., कालीमिर्च 100 ग्रा., पीपर 50 ग्रा., कालानमक 100 ग्रा., सैधव नमक 100 ग्रा. जीरा 100 ग्रा., अमृतक्षार 100 ग्रा., शंखभस्म 100 ग्रा., नींबू सत्व 30 ग्रा. यवक्षार 20 ग्रा., वसाक्षार 20 ग्रा., तिलक्षार 20 ग्रा., अपार्मागक्षार 20 ग्रा., कटेरीक्षार 20 ग्रा., हींग 20 ग्रा., सबका कपड़छन चूर्णकर शीशियों में भर लें।
मात्रा-1-2 चम्मच भोजनोपरांत जल से लें ।यह अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) तथा उदर रोगों का उत्तम अनुभूत योग है। - एक उत्तम स्वादिष्ट चूर्ण-
घटक-अनारदाना 60 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, कालीमिर्च 30 ग्राम पोदीना 60 ग्राम, कालाजीरा 20 ग्राम, सफेद जीरा 20 ग्राम, छोटी पीपर 20 ग्राम, इलायची 20 ग्राम, नींबू सत्व 30 ग्राम, काला नमक 150 ग्राम, पिपरमैंट 6 ग्राम, चीनी 100 ग्राम।
विधि – कूट-पीसकर चूर्ण बना लें।
मात्रा-आवश्यकतानुसार थोड़ा-थोड़ा चाटें । - उपयोग-यह एक अत्यंत स्वादिष्ट चूर्ण है। यह अरुचि, मंदाग्नि, आध्यमान आदि को दूर करता है। यह एक पूर्ण अनुभूत योग है।
- एक उत्तम रुचिवर्द्धक पेय-
घटक-खट्टी दही 1.5 किलो, सफेद चीनी 750 ग्राम, गोघृत और मधु 50-50 ग्राम, कालीमिर्च और सोंठ का चूर्ण 25-25 ग्राम, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपाल और नागकेसर प्रत्येक 5-5 ग्राम लेकर चूर्ण कर लें। पहले दही को कपड़े में बाँधकर खूँटी में टाँग दें, जिससे दही का पानी निथर जावे, तत्पश्चात् किसी स्वच्छ कपड़े पर दही को रखकर साफ हाथों से घिसकर छान लें। फिर चूर्ण किए द्रव्यों को मिलकर किसी पात्र में सुरक्षित रख दें। - मलावरोध की स्थिति में जैतून का तेल प्रयोग करने से पर्याप्त लाभ मिलता है। इस तेल को गुदा मार्ग से भी चढ़ाया जा सकता है। इस रोग में एनीमा देना हितकर होता है, चाहे तेल का अथवा नर्म साबुन पानी का । यदि तेल गुदा से चढ़ाया जाए, तो साबुन के पानी का प्रयोग 12 घंटे बाद करना हितकर होता है। इससे मल की गाँठे नरम पड़ जाती हैं। यदि फिर भी गाँठें रह जाएँ, तो एनीमा दोहराया जा सकता है।
- रोगी को मुख से कैस्टर ऑयल भी पिलाया जा सकता है। सप्ताह में एक बार उपवास रखना आवश्यक होता है। खान-पान व व्यवसाय की अनियमितता तथा दिमागी परेशानी से बचना चाहिए।
- इसमें द्रोणपुष्पी , इसके पौधे की पत्तियों का शक अमृत सदृश्य लाभ पहुँचाता है।
- विटामिन ‘बी’ कंपलेक्स (Vit. ‘B’ Complex), यीस्ट तथा उड़नशील तैल आदि भी प्रयोग किए जाते हैं। मल्टीविटामिन युक्तमल्टीविटामिन युक्त टॉनिक्स का प्रयोग आजकल प्रशस्त है ।
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अरुचि(Anorexia meaning in Hindi) के लिए कुछ आयुर्वेदिक कल्प इस प्रकार है –
- हिंगुवचादी चूर्ण 5 gm दिन मे दो बार
- शंख वटी 2 गोली दिन मे दो बार
- चित्रकादी वटी 2 गोली दिन मे दो बार
- अष्ट चूर्णम 5 gm दिन मे दो बार
- लवनभास्कर चूर्ण 5 gm दिन मे दो बार
- आंम पाचक वटी 2 गोली दिन मे दो बार
- cap अन्न भेदी सिंदूरम (कोट्टकल) 2 cap दिन मे दो बार
- हिंगुवचादी वटी 2 गोली दिन मे दो बार
- वैश्वानर चूर्णम 5 gm दिन मे दो बार
- हिंगवाष्टक चूर्णम 5 gm दिन मे दो बार