अपेन्डिक्स दर्द सम्पूर्ण विवरण और इलाज –

Appendicitis meaning in Hindi
Appendicitis meaning in Hindi

(Appendicitis meaning in Hindi) रोग परिचय
इस रोग को, आंत्रपुच्छ शोथ (Appendicitis meaning in Hindi), अपेंडिक्स, आंत्रपुच्छ शोथ, कृमिरूप उपांत्रशोथ का प्रदाह, तीव्र उपांत्रशोथ, आंत्रगुल्म आदि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे ‘एपेंडिसाइटिस’ कहते हैं।

एपेंडिक्स एक भयंकर पीड़ा देने वाली ग्रंथि है। यह ग्रंथि पेट में बड़ी आँत के नीचे दाईं ओर होती है। एपेंडिक्स बिलकुल छोटी-सी चार-पाँच सेंटीमीटर लम्बी होती है। रक्त संचार की गति अत्यंत कम हो जाने पर इस ग्रंथि पर भोजन द्वारा आमाशय में पहुँचे जीवाणुओं का अधि क संक्रमण होता है। इसी वजह से इस ग्रंथि में सूजन आ जाती है। यही सूजन एपेंडीसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) कहलाती है। सूजन आने से इसमें असह्य दर्द होता है।

इस प्रकार के रोग में उपांत्र में दाईं ओर के पेट में तीव्र शूल होता है। मिलती और वमन होकर रोगी को बेहाल-सा कर देता है। रोगी दर्द से अपना पेडू दबाकर तड़फता फिरता है।
एपेंडिक्स को आयुर्वेद में उडूक तथा इसकी सूजन को एपेंडिसाइटिस, उंडूकशोथ या आंत्रपुच्छशोथ कहते हैं। इस प्रकार से किसी भी तरह एपेंडिक्स का संक्रमित होना ही एपेंडिसाइटिस कहलाता है।

■ एपेंडिसाइटिस(Appendicitis meaning in Hindi) एक समस्या है- हमारे शरीर में कुछ अविशष्ट अंग होते हैं। मानव विकास की श्रृंखला में कभी ये महत्त्वपूर्ण रहे अंग, वर्तमान मानव में निरूपयोगी (useless) हैं, किन्तु इन अंगों के बचे रहने से कभी-कभी समस्या होती है और ऐसा ही एक अंग आँत का टुकड़ा है इसे एपेंडिक्स कहते हैं। निरुपयोगी एपेंडिक्स भी कभी-कभी बेहद दुरुपयोगी सिद्ध होता है।

यूँ तो यह आँत का टुकड़ा ऊँगली भर छोटा होता है, किन्तु जब यह संक्रमित होता है तो बड़ा खोटा हो जाता है। संक्रमित एपेंडिक्स अर्थात् मेडिकल की भाषा में एपेंडिसाइटिस मरीज के लिए ही नहीं चिकित्सक के लिए भी एक समस्या है, क्योंकि इसका निदान आसान नहीं है। चूँकि पेट में कई अंग स्थित होते हैं और इन अंगों की बीमारियों में पेटदर्द, बुखार उलटी आदि के समान लक्षण होते हैं।

भौतिक परीक्षण और पूर्व इतिहास भी पेट के अनेक अंग के रोगों में मिलते-जुलते रहते हैं। अतएव सुनिश्चित एवं अंतिम निदान की समस्या (Problems of diagnosis) बनी रहती है।
आँत के इस अवशिष्ट टुकड़े का एक सिरा खुला है और दूसरा बिलकुल बंद। यही वजह है कि भोजन का कोई कण इसकी छोटी नली में प्रवेश कर जाए तो उसके आगे जाने का रास्ता ही बंद है। परिणामतः संक्रमित हो जाता है।

आँत के इस अवशिष्ट टुकड़े का एक सिरा खुला है और दूसरा बिलकुल बंद। यही वजह है कि भोजन का कोई कण इसकी छोटी नली में प्रवेश कर जाए तो उसके आगे जाने का रास्ता ही बंद है। परिणामतः संक्रमित हो जाता है।
ऐसा कोई परीक्षण अभी भी विकसित नहीं हो सका है, जो संक्रमित एपेंडिक्स (Appendicitis meaning in Hindi) का सुनिश्चित निदान कर सके।

आँत का यह अवशिष्ट अंग प्रायः भारत में पश्चिमी देशों की अपेक्षा कम ही दिक्कत करता है। इस पर भी वास्तविक रोगियों की संख्या से इसके ऑपरेशन होते हैं। कारण वही कि दिक्कत वास्तव में किसी दूसरे अंग की है और तोहमत मढ़ी जाती है अवशिष्ट आँत के टुकड़े पर । वस्तुतः एक तो यह अंग निरुपयोगी है, दूसरा इसे काटकर फेंकना भी सरल शल्यक्रिया है। अतः शल्य चिकित्सक प्रायः इसके ऑपरेशन में अति उत्साह प्रदर्शित करते हैं।

Appendicitis meaning in Hindi कारण (appendicitis causes)-

■ कारण- एपेंडिसाइटिस का रोग निम्न कारणों से होता है-

Appendicitis meaning in Hindi
Appendicitis meaning in Hindi
  • यह रोग अधिकांश रूप से तब होता है जब व्यक्ति को कब्ज, अफारा होकर भी वह बहुत अधिक मेवे आदि खाद्यों को खा लेता है। तब वही अधिक मेवे आदि एपेंडिक्स में फँसकर वहाँ पर तीव्र प्रदाह उत्पन्न कर दिया करते हैं।
  • कथित अभिजात्य वर्ग में जहाँ फास्ट फूड, बेकरी के कंफेक्शनरी उत्पाद, संश्लिष्ट, परिशोधित आहार तथा मांसाहार का प्रचलन ज्यादा है, उनमें अधिक होता है। रूखा-सूखा खाने वाले श्रमिक वर्ग की अपेक्षा एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) होने की संभावना अधिक है।
  • चाय, चीनी, तले, भुने तथा मावे की बनी पकोड़ियाँ, कचौड़िया, समोसे, पूड़िया आदि आहार गर्म मिर्च-मसाले, अण्डा, मछली, मांस, कॉफी, बिस्कुट, ब्रेड, जैम, जैली, टॉफी, साफ्टड्रिंक, अल्कोहल ड्रिंक, धूम्रपान, पान मसाला आदि के अत्यधिक प्रयोग से एपेंडिसाइटिस होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। यही कारण है कि ग्रामीण लोगों की अपेक्षा शहरी लोगों में इस रोग का प्रकोप अधिक है।
  • रेशे सेल्युलोज रहित आहार एपेंडिसाइटिस का मुख्य कारण है। जैसा कि ब्रिटेन तथा अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अपनी खोजबीन से निष्कर्ष निकाला है।
  • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) चिकनी चुपड़ी अमीरी सभ्यता से सीधा संबंध रखता है।
  • किसी-किसी रोगी में वंशानुगत प्रवृत्तियाँ भी देखी जाती हैं। वैसे वंशानुगत एपेंडिसाइटिस के रोगी बहुत कम पाए जाते हैं।
  • नाक-गला आदि में उपस्थित संक्रमण रक्त संचार द्वारा एपेंडिक्स में पहुँचकर शोथ उत्पन्न कर देता है।
  • शुष्क कभी-कभी खाद्य पदार्थों यथा, बेर, नींबू, बेल के फलों के बीज, अनपचे खाद्य तत्त्व, मल के टुकड़े तथा अन्य ठोस पदार्थ जो अकस्मात् गले के नीचे उतर जाता है, वह कभी-कभी बड़ी आँत में नीचे न जाकर एपेंडिक्स में फँस जाता है, ऐसी स्थिति में एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • गठियावाय प्रकृति पेट की व्याधियाँ, मलावरोध, गरिष्ठ भोजन, संक्रमण, रक्त-विष, मूत्र रुकना इत्यादि कारणों से भी रोग हो सकता है।
  • जीर्ण प्रवाहिका से भी यह रोग होता है।
  • मांसाहार के साथ-साथ उच्चस्तर का जीवन व्यतीत करने से भी ।
  • कभी-कभी कोख के स्ट्रिक्चर से भी ।
  • सख्त हो जाने वाला मल आंत्रपुच्छ (Appendicitis meaning in Hindi) के पोषण में अवरोध उत्पन्न करता है, इसलिए उसमें सूजन आ जाती है।
  • अरहर, सेम, चने के सूखे या हरे दानों वाला भोजन खा लेने और उसके अखंड दाने निगल लेने पर छिद्र में फँस जाने से सूजन आ जाती है।
  • महिलाओं के बीजकोष (ओवरी) में सूजन आ जाने पर भी एपेंडिसाइटिस का दर्द हो सकता है।
  • एपेंडिसाइटिस रोग प्रायः 20 से 35 साल की उम्र में ज्यादा होता है, वैसे नवजात शिशुओं को छोड़कर एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) किसी भी उम्र में हो सकता है। 2-3 वर्ष के बच्चे से लेकर 75-80 के, वर्ष वृद्ध भी इससे ग्रस्त हो सकते हैं।
  • बूढ़े तथा बच्चों में यह रोग अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकता है। 3 वर्ष से कम उम्र वाले शिशुओं में एपेंडिसाइटिस पूयमय होने के कारण मृत्यु दर 80% से भी अधिक है। एक वर्ष से कम आयु में इस रोग से होने वाली मृत्यु दर 50% है। इसका एक मात्र कारण सुव्यवस्थित निदान नहीं हो पाना है।
  • ताजी साग-सब्जियाँ, फल आदि, छिलके वाली दाल, कणीयुक्त चावल, चोकरदार मोटे आटे की रोटी अर्थात् जिस आहार में सेल्युलोज काफी मात्रा में होते हैं, उसको खाने से एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) नहीं के बराबर होता है।
  • एपेंडिसाइटिस आधुनिक चिकनी-चुपड़ी सभ्यता की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। एपेंडिसाइटिस अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया आदि पाश्चात्य विकसित देशों में परिशोधित आहार के अत्यधिक व्यवहार के कारण इसके रोगी अधिक मिलते हैं।
  • परिशोधित आहार के कारण कोष्ठबद्धता पैदा होती है। मल की गाँठें बन जाती हैं, उनके अन्दर ही अन्दर सड़ने से अनेक प्रकार के पैथोजेनिक रोगाणुओं की संख्या अतितीव्रता से बढ़ती है। इन रोगाणुओं की कालोनियाँ आँतों में बस जाती हैं। इन्हीं के कारण सीकम तथा बड़ी आँत संक्रमित होती है। अन्त में एपेंडिक्स (Appendicitis meaning in Hindi) भी संक्रमित हो जाता है।
  • उँगलीनुमा एपेंडिक्स का छल्लेदार वलयाकार मुख सूजकर बन्द हो जाता है। एपेंडिक्स के बंद मुख के कारण स्राव अन्दर-अन्दर ही बढ़ता है। फलतः इसका अतिरिक्त दबाव एपेंडिक्स की दीवारों में स्थित लिंफेटिक्स तथा शिराओं पर पड़ता है। अन्दर ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में न मिलने के कारण संक्रमण और बढ़ जाता है। समय पर उपचार न होने पर एपेंडिक्स फट सकता है।
  • कभी-कभी एपेंडिक्स, सीकम अथवा आँतों की आंतरिक बाह्य आवरण तथा भित्तिगत विकृति के कारण भी एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) होता है।
  • इसके अतिरिक्त एपेंडिक्स बिवर छिद्र की वृद्धि, शिरागत रक्त अवरोध, शिरागत रक्त कोशिका विदर व संक्रमण, एपेंडिक्स शिरागत, धमनी थ्रोम्बोसिस, एपेंडिक्स अल्सरेशन-सप्रेशन या फाइब्रोसिस आदि अनेक कारण हैं, जिससे एपेंडिसाइटिस हो सकता है।
  • उपरोक्त सभी कारणों में मुख्य कारण मलावरोध (Constipation) के कारण एपेंडिक्स का संक्रमित होना है।
  • एपेंडिक्स शोध के कारण-दीर्घकालीन कब्ज (Chronic constipation), खाद्य-तंतुहीन आहार, के परजीवी, आँत का क्षयरोग, अर्बुद इत्यादि से एपेंडिक्स की नली में अवरोध हो जाता है। यह अवरोध कुछ दिनों तक रहे, तो संक्रमण होकर इसके फटने की बारी आ सकती है। एपेंडिक्स का फटना एक गंभीर एवं आपात स्थिति है। पाश्चात्य विकसित देशों में यह रोग सामान्य है।
  • जबकि भारत में अपेक्षाकृत कम होता है। भारत में धनी और पश्चात् शैली से जीवनयापन करने वालों में अधिक होता है। इसका कारण खान-पान और दिनचर्या से जोड़ा गया है।
  • आहार में अधिक वसा, मांस, कम खाद्य-तंतु, कम साग-भाजी और कम शारीरिक श्रम करने के कारण कब्ज ज्यादा होता है, जो अंततः एपेडिक्स (Appendicitis meaning in Hindi) को दिक्कत कर सकता है।

Appendicitis meaning in Hindi लक्षण (appendicitis symptoms) –

Appendicitis meaning in Hindi
Appendicitis meaning in Hindi
  • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) का प्रारंभिक लक्षण पेट के बीचो-बीच नाभि या एपिंगेस्ट्रियम के आस-पास दर्द उठना । यह दर्द प्रातः 3 से 7 बजे के बीच उठता है। वेदना इतनी असह्य होती है कि रोगी सोते से एकाएक उठकर बैठ जाता है। वेदना निरंतर तथा तीव्रतर होती है।
  • प्रारंभ में दर्द सारे उदर में होता है। तत्पश्चात् दर्द नाभि से खिसककर पेट के निचले दाहिने भाग (मैकबर्नी पाइंट) पर केंद्रित हो जाता है। यहाँ थोड़ा-सा भी स्पर्श करने पर तीव्र दर्द होता है।
  • शूल उठने के कुछ देर पश्चात् ही मिलती की इच्छा होती है। कुछ देर उलटियाँ भी हो सकती हैं। उलटियों से पेट खाली होने के पश्चात् स्वतः उलटियाँ रूक जाती हैं। प्रायः रोगियों में कब्ज की स्थिति होती है, परन्तु किसी-किसी में विशेष कर बच्चों में अतिसार के लक्षण भी दिखते हैं
  • रोग के आक्रमण के प्रारंभिक 6 घंटे में तापमान तथा नाड़ी में कोई परिवर्तन नहीं होता है। पर 6 घंटे के होते-होते नाड़ी की गति सामान्य से 20 ज्यादा अर्थात् 80 से 100 तक हो जाती हे। तापमान (ज्वर) बढ़कर 100-101 डि. फारेनहाइट (38-38.5°C) तक बढ़ जाता है।
  • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) के कारण पेटदर्द होने पर उसे स्पष्ट पहचान लिया जाता है। यह शूल बहुत तीव्र होता है। दर्द की तीव्र लहर नाभि से उत्पन्न होकर धीरे-धीरे दाहिनी तरफ बढ़ती है तथा कुछ देर में तीव्र दर्द सारे उदर में होने लगता है।
  • दर्द होने पर जी मिचलाता है और वमन होने लगता है। सिर में दर्द भी होता है। तीव्र स्वरूप के रोग (उग्र शूल की दशा) में रोगी को कभी-कभी ज्वर भी हो जाता है। एपेंडिक्स (आंत्रपुच्छ) (Appendicitis meaning in Hindi) में शोथ के अधिक होने पर ऑव की उत्पत्ति भी होती है। ऐसी स्थिति में ज्वर अधिक बढ़ जाता है।
  • इस रोग में जब रोगी की उपांत्र (Appendix) में कोई वस्तु फंसती है या कब्ज से मल अटकता है तब रोगी तीव्र तीर लगने जैसी पीड़ा का आभास करता है और बेचैनी के साथ-साथ इधर-उधर करवटें बदलता है।
  • फिर नाभि को पकड़े रोगी का चेहरा पीला, घबराहट, तीव्र वेदना स्वर आदि लक्षणों के साथ वही दर्द रोगी के दाहिनी पेट की ओर ठहर जाता है। मूत्र की मात्रा कम और जिह्वा मैली रहती है। एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) का दर्द खाँसने व छींकने से बढ़ जाता है। मुँह से दुर्गंध आती है।
  • रोगी दाईं ओर के दर्द के कारण पेट नहीं हिलाता और सिकोड़े रखता है। इस रोग में रोगी दाएँ पैर को सिकोड़कर सीधा एवं सुस्त पड़ा रहता है। क्योंकि पैर को फैलाने से उदर की मांसपेशियाँ थोड़ी अकड़ जाती हैं। एपेंडिसाइटिस का दर्द होने पर (संदेह होने पर) उदर की जाँच करते समय उदर को जोर से न दबायें।
  • दोनों पैरों को मोड़कर, पेट को शिथिल कर अंगुलियों के हलके स्पर्श से जाँच करें। जाँच में नाभि के नीचे उदर भाग में अबुर्द (ट्यूमर) के समान शोथ (सुजन) का आभास, कठोरता एवं स्पर्ष असह्यता की अनुभूत होती है।
  • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) की स्थिति में मूत्र की स्थिति सामान्य होती है। परन्तु किसी-किसी रोगी में एपेंडिक्स का छोर मूत्रवाहक नली या मसाने को स्पर्श करता हुआ होता है। ऐसी स्थिति में रोगी को बार-बार पेशाब जाने की शिकायत हो जाती है।
  • उसी प्रकार उसका छोर पेल्विक की तरफ हो, तो उत्तेजक प्रभाव के कारण दस्त भी लग सकते हैं। जिह्वा जाँच में पित्ताभ मलावृत्त दिखता है। रोगी गहरा साँस लेने के लिए बाध्य हो जाता है।
  • रोगी में इस रोग के पहले भी हुए आक्रमणों का इतिवृत्त मिलता है। रोगी वेदना के कारण रात को या सबेरे के समय नींद से जग उठता है उसे बिबंध रहता है।
  • कुछ रोगियों के दर्द के दो चार दिन के अंतराल में उदर के निचले दाहिने हिस्से में एक गाँठ-सी बन जाती है। दर्द होने के पश्चात् पेट में अफारा होने लगे, तो यह स्थिति अत्यधिक खतरनाक है। इसमें पूरा उदर ही संक्रमित हो जाता है। इसे पेरिटोनाइटिस कहते हैं।
    • इसमें पेरीटोनियम कैविटी सूज जाती है उदर की दीवारें कठोर हो जाती हैं, अचानक तीव्र वेदना होती है। एक्स-रे में पेरीटोनियल कैविटी में वायु भरी हुई होती है। ऐसी स्थिति में रोगी की जीवन रक्षा हेतु किसी कुशल शल्य चिकित्सा का परामर्श लेना ही उचित है।
  • स्थिति के अनुसार रोग लक्षण सारांश में-
    • उग्र एपेंडिक्स शोथ-किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, पर बच्चे, किशोर, युवा, इस की चपेट में ज्यादा आते हैं।
    • नाभि के आस-पास तीव्र दर्द, जी मिचलाना, उलटी, भूख कम लगना, आदि लक्षण होते हैं।
    • दर्द दाएँ पेट में निचली ओर भी हो सकता है। छूने पर दर्द तेज हो जाता है। दायाँ पैर आगे बढ़ाने से दर्द बढ़ सकता है।
    • नब्ज़ तेज तथा बुखार बढ़ा हुआ होता है (High fever) |
    • यदि उचित उपचार न मिले तो दाईं ओर पेट में गोला बन जाता है अथवा सड़ान होकर एपेंडिक्स फट सकता है।
    • पेट का गोला 3-4 सप्ताह में सामान्य हो जाता है, किन्तु एपेंडिक्स के फटने से पेट की झिल्ली संक्रमित हो जाती है। यह आपात स्थिति है।
  • चिरकालिक एपेंडिक्स शोथ (Appendicitis meaning in Hindi)-यह स्थिति पेट के अनेक रोगों से भ्रमित करती हैं। हलका-हलका पेटदर्द जो आहार से संबंधित होता है। जी मिचलाना, कुपच, पेट फूलना, दाएँ पेट के निचले हिस्से में छूने से दर्द ।
  • आपको कैसे पता चले कि आपको एपेंडिसाइटिस की शिकायत हैं?
    • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) एपेंडिक्स का इन्फ्लेमेशन होता है और यह बहुत आम है।
    • अलग-अलग व्यक्तियों में यह अलग-अलग मात्रा में हो सकता है। आमतौर पर इसका दर्द हल्का और शुरू-शुरू में कभी-कभी होता है।
    • किन्तु बाद में तेज और बार-बार होने लगता है। एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) का दर्द नाभि के ऊपर शुरू होता है और नाभि के आस-पास फैल जाता है।
    • लगभग 48 घंटे बाद यह अंतिम रूप से पेट के दाहिनी ओर निचली तरफ स्थित हो जाता है। यह स्थान दाहिने कूल्हे की हड्डी और नाभि के बीच में कहीं स्थित होता है।
    • कभी-कभी उस जगह पर दिए गए दबाव को हटाने से यह दर्द होता है। एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि 40% से अधिक रोगियों में इसके शस्त्रोक्त लक्षण प्रकट नहीं होते हैं ।
  • पुराने मामलों में पेट के निचले दाहिने भाग में हलका दुखने वाला दर्द होता है, जो बार-बार कम ज्यादा हो जाता है। इस रोग में बुखार, जी मिचलाने या उलटी होने की शिकायत नहीं होती है। अनेक डॉक्टर इस रोग का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं और दर्द निवारक दवाओं से करने की कोशिश करते हैं, किन्तु अगर लक्षण बढ़ रहे हो और कोई भी इलाज से कम ना हो रहे हो तो एपेंडिक्स (Appendicitis meaning in Hindi) को आपरेशन करके निकलवा दिया जाए।

Appendicitis meaning in Hindi अपेन्डिक्स निदान –

Appendicitis meaning in Hindi
Appendicitis meaning in Hindi
  • रोग निदान-उग्र एपेंडिक्स शोथ (Appendicitis meaning in Hindi) के निदान के लिए आँत दर्द, बड़ी आँत का तीव्र संक्रमण, गुर्दे-पथरी के दर्द, तीव्र आमाशय शोथ, महिला प्रजननांग रोग, आँत के क्षय रोग, अर्बुद, अमीबा की गाँठ इत्यादि रोगों से पृथक् करना होता है।
  • भौतिक परीक्षण, पूर्व इतिहास, मल-मूत्र रक्त परीक्षण, एक्स-रे तथा आवश्यक होने पर विशेष जाँच परीक्षण सहायक होते हैं।
  • इस रोग की सबसे सटीक जांच सोनोग्राफी (USG) के जरिए से की जा सकती है ।
  • चिरकालीन शोथ (Appendicitis meaning in Hindi) के निदान के लिए अम्ल आधिक्य पित्त की थैली, गुर्दे एवं चिरकालिक बड़ी आँत के रोगों से इसे पृथक् करना होता है।.
  • हाल ही में एपेंडिक्स (Appendicitis meaning in Hindi) के सही निदान के लिए रूस के आयुर्विज्ञानियों ने “क्रोमेटिक थर्मोग्राफी” (रंगीन तापीय आलेख) की खोज की है। इस पद्यति से एपेंडिसाइटिस तथा सभी प्रकार के अंदरूनी संक्रमण या सूजन का सही निदान किया जाता है।
    • इससे रोगी को प्रारंभिक या हर प्रकार की स्थिति का पता चल जाता है। इस तकनीक में रंगीन द्रव रवों की परतें काली फिल्म पर लेप दी जाती हैं।
    • यह काली इलास्टिक फिल्म दर्द या सूजन वाले हिस्से पर चिपकाने के कुछ सेंकड पश्चात् एक डिग्री के दसवें भाग तक तापमान के उतार चढ़ाव का परिणाम प्राप्त कर बहुरंगी धब्बे के रूप में फिल्म पर उतार देती है।
    • इस बहुरंगी धब्बेयुक्त तस्वीर का बारीकी से अध्ययन कर रोग का निदान कर उपचार करने से शीघ्र लाभ होता है।

Appendicitis meaning in Hindi अपेन्डिक्स उपचार (appendicitis treatment ) एवं शल्यक्रिया-

  1. पहली बार हुए दर्द में प्रतिजीवी औषधि, दर्द निवारक, द्रवचिकित्सा पद्धति से इलाज करते हैं।
  2. एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) का अचानक हमला होने पर सबसे पहले आहार लेना बंद कर दें और हिलने-डुलने से बचते हुए बिस्तर पर पूर्ण रूप से आराम करें।
  3. रोगी को बार-बार गुनगुना पानी ही पीना चाहिए। यदि दर्द सामान्य हो, तो दर्द के स्थान पर गर्म-गर्म पानी की थैली का सेंक करकें कपड़े के गोटे को गर्म करके उसका सेंक भी किया जा सकता है। इलेक्ट्रिक हीटर अथवा लेंप से भी सेंक दिया जा सकता है। सेंक करने से दर्द कम होता है और धीरे-धीरे मिट जाता है।
  4. एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) के रोगी को किसी प्रकार की औषधि का सेवन करने के स्थान पर उपवास करना चाहिए। उपवास से पाचनतंत्र को आराम मिलता है और गुनगुने गर्म पानी से आम का पाचन होता है।
  5. चित्रकादि वटी की 2-2 गोलियाँ रोगी को हर आधे घंटे पर गर्म पानी के साथ सेवन करानी चाहिए। यह रोग मिटाने में उपयोगी है
  6. तत्पश्चात् शंखवटी, शिवाक्षार पाचन चूर्ण को सेवन भी किया जा सकता है।
  7. पुनर्नवा मंडूर 500 मि. ग्रा., शंख भस्म, योगराजगुग्गुल और अग्नि तुण्डी 250-250 मि. ग्रा. तथा लौह भस्म 125 मि. ग्रा., आपस में मिलाकर पुनर्नवा के काढ़े के साथ सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।
  8. रोगी को कुछ दिनों तक फलों के रस, ग्लूकोज के पानी तथा चाय-कॉफी जैसे तरल आहार का ही सेवन कराना चाहिए। तीव्र एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) में एरंडस्नेह आदि रेचक द्रव्यों का कभी भी उपयोग नहीं करना चाहिए।
  9. उपरोक्त चिकित्सा से दर्द मिट जाने के बाद पाचनतंत्र को आराम देने के लिए रोगी को 2-3 दिन का उपवास कराना चाहिए। उपवास के दौरान फलों एवं अन्य कोई भी आहार नहीं देने चाहिए। तत्पश्चात् कुछ दिन मूँग की दाल का पानी, मूँग की दाल की खिचड़ी, एक दम पतली सब्जी का सूप अथवा मुरमुरे जैसा हलका आहार देना चाहिए। साथ ही-
  10. चित्रकादि वटी की 2-2 गोली दिन में 3 बार देनी चाहिए, अथवा प्रवाल पंचामृत 1-2 ग्राम दिन में 2 या 3 बार पानी के साथ लिया जा सकता है।
  11. एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) की तीव्र स्थिति में रसाहार दें। उदाहरणस्वरूप गाजर, लौकी, मौसमी, संतरा आदि का रस 3 घंटे के अंतराल पर देते रहें। दर्द की तीव्रता कम होने पर दोपहर के भोजन में घुटा हुआ गेहूँ का दलिया या खिचड़ी दें।
  12. शाम के भोजन में एक दो रोटी तथा लौकी, गाजर, शलगम, परवल, तरोई आदि की उबली सब्जी दें।
  13. नोट- चिकित्सा होने पर कुछ दशा सुधरने पर पतला साबूदाना, जौ का पानी, दूध में सोडा वाटर दे सकते हैं।
  14. सावधान- एपेंडिसाइटिस में कब्ज महसूस होने पर या दस्त साफ न आने पर जुलाब न लें। एनीमा भी न लें। जब कि कुछ प्राकृतिक चिकित्सक बचाव एवं चिकित्सा की दृष्टि से रोगी के पेट की सफाई सर्वप्रथम एनीमा देना बताते हैं। उनके विचार से एपेंडीसाइटिस रोगियों को हमेशा दाईं करवट लिटाकर ही एनीमा दें। एनीमा द्रव के रूप में उबालकर गुनगुना किए गए पानी में 10 ग्राम नमक, एक नींबू का रस मिलाकर काम में लें।
  15. साबुन का एनीमा न दें। एनीमा देते समय एनीमा पौट की ऊँचाई मात्रा – 1-2 फुट ही रखें ताकि पानी धीरे-धीरे डिसेंडिंग कोलन में चढ़े, अन्यथा तेजी से चढ़ने पर एपेंडीसाइटिस फटने का भय रहता है।
  16. जो लोग एनीमा देने का विरोध करते हैं उनका मानना है कि इससे आँत की पेशियों की गति बढ़ जाने के कारण शोथग्रस्त आंत्रपुच्छ पर दबाव पड़ता है और कई बार वह फट भी जाता है। परिणामस्वरूप रोगी की मृत्यु हो जाने का खतरा रहता है।
  17. चिकित्सकों के अनुसार पेट का दर्द कम करने के लिए दर्द के स्थान पर तेल मालिश न करायें और न ही पेट को मसलवायें ऐसा करने से रोग बढ़ता है और एपेंडिक्स के फटने का भय रहता है।
  18. एपेंडिसाइटिस (Appendicitis meaning in Hindi) के दर्द में दर्द से छुटकारा पाने के लिए किसी भी प्रकार की दर्द निवारक औषधि के सेवन से बचना चाहिए। दर्द निवारक औषधि इस रोग में हानिकारक सिद्ध हो सकती है। अफीम युक्त औषधि देना खतरे से खाली नहीं हैं!
  19. रोग की प्रारंभिक अवस्था में यदि स्थिति गंभीर नहीं है, तो निम्नलिखित अनुभूत चिकित्सा लाभकर होती है-
    • सौंफ, पुनर्नवा, काला जीरा, मकोय, सोया, कासनी, गोखरु-इन सभी औषधियों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर अर्क निकाल लें। 60 मि.ली. प्रातः सायं अर्क पीने से एपेंडीसाइटिस का दर्द शांत होता है।
    • सोये के हरे पत्तों का रस निचोड़कर आग पर पकायें। रस फट जाने पर इसे उतार लें और छानकर रख लें। शर्बत दीनार 50 मि.ली. मिलाकर प्रातः सायं दिन में 2 बार सेवन करने से आशातीत लाभ मिलता है।
    • इस रोग में पाचनक्रिया को सरल करना पड़ता है और कब्ज को दूर करना होता है। अतएव दशमूलारिष्ट और पुनर्नवारिष्ट 2-2 चम्मच समान मात्रा में जल मिलाकर प्रतिदिन भोजन के बाद पिलाने से बहुत लाभ मिलता है।
    • साथ ही लवणभास्कर चूर्ण पानी के साथ दें। 4. काला नमक 1 ग्राम लेकर आग पर गरम करें। तत्पश्चात् इसे अर्कगुलाब में बुझा लें। मात्रा-30 मि. ग्रा. हींग के साथ पिलायें ।
  20. स्थानीय प्रयोग (appendicitis home remedies)-
    • ग्वारपाठा, पुनर्नवा, कासनी व काला जीरा को पीसकर तुलसी के पत्ते के रस में मिलाएँ और मामूली-सा गरम करके एपेंडीसाइटिस के दर्द की जगह पर लेप करने से शूल नष्ट होता है। इसके निरंतर प्रयोग से शोथ भी कम होता चला जाता है।
  21. उड़द का आटा 250 ग्राम, बकरी के दूध में गूँथकर उसमें नमक, सोंठ, हींग, सोये के बीज 5-5 ग्राम मिलाकर तवे पर इसकी मोटी रोटी एक ओर पकाकर और दूसरी ओर कच्ची रखें, उस ओर कैस्टर आयल (अंडी का तेल) चुपड़कर गरम-गरम दर्द के स्थान बाँधे ।
  22. एक अन्य साधारण प्रयोग भी-तत्काल आराम के लिए सौंफ, पुनर्नवा, कालाजीरा और गोखरू-इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका अर्क बनाएँ । मात्रा 60-60 मि. ली. अर्क दिन में 2 बार नित्य पिलाने से दर्द में आराम मिलता है ।
  23. नोट- वैद्य की राय में पुनर्नवारिष्ट इस रोग के लिए एक उत्तम औषधि है।
  24. पेट दुखनेपर अजवायन का सेवन हितकारी होता है।
  25. चूँकि शरीर में इस ग्रन्थि की कोई उपयोगिता नहीं है। इसलिए दर्द के अगर ज्यादा हो और कोई चिकित्सा से कम ना हो तो आरंभ (At begining) में इसका ऑपरेशन करा देना चाहिए।
  26. यदि रोगी को उपरोक्त चिकित्सा से आराम न आए, तो तुरन्त किसी बड़े सरकारी अस्पताल में अथवा साधन संपन्न नर्सिंग होम में भिजवा दें, क्योंकि इस रोग में शल्यक्रिया ऑपरेशन की आवश्यकता होती है।
  27. आपरेशन न कराने पर शोथ दूर हो जाने पर भी दुबारा पुनः हो, सकती है या संक्रमित होकर फट सकती हैं, जिसके फलस्वरूप पूय/पीव (Pus) सारे पेट में फैलकर संक्रमण (इंफैक्शन) फैल सकता है, और रोग अत्यंत उग्ररूप धारण कर सकता है।
  28. जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि यदि विशेष कारण न हो, तो एपेंडिसाइटिस की चिकित्सा ऑपरेशन है। इसमें उपयुक्त स्थान पर भेदन कर एपेंडिक्स (अंत्रपुच्छ) को निकाल दिया जाता है (Appendicectomy) ।
Appendicitis meaning in Hindi
Appendicitis meaning in Hindi

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