जलोदर (Ascites meaning in hindi) रोग परिचय

उदर स्थित महाकला में जल संचय होने को जलोदर (Ascites meaning in hindi) रोग कहा जाता है। जनसाधारण में इसे शरीर में पानी भरना भी कहते हैं। ग्रामीण लोग इसे जलंदर या जलंधर कहते हैं।
इस रोग में उदरावरण गुहा में तरल भर जाता है, पर यह तरल डेढ़-दो लीटर से कम हो, तो उसकी उपस्थिति का पता नहीं चल पाता है। इस रोग में पेट अत्यंत ऊँचा तथा चिकना हो जाता है। पेट में पानी की पोटली-सी भरी लगती है। पेट में गुड़-गुड़ शब्द तथा कंप होता है और पाँवों पर सूजन आ जाती है।
जलोदर एक भयंकर बीमारी है। यह रोगी को मौत के घाट उतारकर विराम लेती हैं। इसे आमतौर पर पेट में पानी इकट्ठा होना कहते हैं। इसमें रोगी का पेट बड़ा हो जाता है। यकृत संबंधी रोग की अंतिम अवस्था ही जलोदर (Ascites meaning in hindi) या जलंधर या पेट में पानी भर जाने के रूप में परिलक्षित होती है। इसमें पेट को छूने से पानी की लहरें स्पष्ट दिखती हैं। पेट सूजा हुआ दिखायी देता है। पेट सूजकर मटके/मशक के समान हो जाता है। बस यही जलोदर अंग्रेजी में इस विकृति को एसाइटिस (Ascites) कहते हैं।
जलोदर (Ascites meaning in hindi) कारण –

- सर्वाधिक्य उत्पत्ति उदर्याकला में किसी क्षय या आघात से शोथ (सूजन )होने पर होती है।
- आहार में प्रकृति विरुद्ध अधिक शीतल खाद्य होने या अम्ल रस के अधिक बढ़ने से। विशेषज्ञों के अनुसार तीव्र वृक्कशोथ, ग्रहणी, अत्यधिक रक्ताल्पता, स्त्रियों में गर्भाशय विकृति तथा हृदय रोग होने पर प्रायः जलोदर हो जाता है।
- पोर्टलशिरा के अवरोध से उसके रक्तस्राव का बढ़ना जैसे कि सिरोसिस आफ लिवर, थ्रोंबोसिस आदि में होता है ।
- कंजेस्टिव हार्ट फल्योर, नेफ्रोसिस तथा कुपोषण से ।
- रोगाणु संक्रमण से उत्पन्न उदरावरण शोथ उदा -(टी बी) , यह एक सबसे बड़ी वजह है ।
- बेरी-बेरी, मिक्सीडीमा, डिंबग्रथि के रोगों से ।
- अग्नाशय एवं पित्त के विकार से ।
- मोटापा ।
- स्वरयंत्र रोग, स्वल्प विराम ज्वर तथा रक्त वाहिनियों की अनेक बीमारियों में यह रोग हो जाता है।
- जलोदर की स्थिति में प्यास अधिक लगती है, जब कि इसके विपरीत पेशाब की मात्रा घट जाती है। साथ ही भोजन से अरुचि होती है।
- यह कोई स्वंतत्र रोग नहीं है, बल्कि दूसरी बीमारियों का लक्षण है।
- शारीरिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति जिसकी पाचक-अग्नि मंद हो गई हो और वह मनमाने तरीके से चिकनाई वाले पदार्थों का सेवन करता है और अधिक मात्रा में शीतल जल पीता है, उसे इस रोग होने की पूरी संभावना रहती है।
- यकृत रोग की अंतिम अवस्था में यह रोग होता है।
- तिल्ली तथा हृत्पिंड के रोगों से यह रोग उत्पन्न होता है ।
- इसके अतिरिक्त शास्त्रों में यह भी लिखा है कि अन्य स्थितियों में भी पेट बड़ा होता है, किन्तु हर बार जलोदर ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है।
- उदर में पानी का संचय होना ही जलोदर है। पानी का संचय उदर के सभी अवयवों में नहीं होता है, पर पेट की त्वचा और मांस के बीच पानी इकट्ठा होता है।
जलोदर (Ascites meaning in hindi) के प्रमुख रोग लक्षण-

- इस रोग में उदर का आकार-परिधि बड़ा हो जाता है।
- साथ में शरीर का भार भी बढ़ जाता है। पेट में बेचैनी अनुभव होती है।
- थोड़े ही श्रम से साँस लेने में कठिनाई होती है। हृदय तेजी से धकड़ता है ।
- पेट पर नीली शिराएँ उभरी हुई दिखायी पड़ती हैं।
- उदर की त्वचा पतली और चिकनी मालूम होती है।
- पेट के मध्य में स्थित नाभि का गड्ढा कम गहरा हो जाता है अथवा बिलकुल भर जाता है या नाभि बाहर की ओर निकल आती है।
- हाथ से स्पर्श करने पर पेट पानी भरी हुई चमड़े की मसक जैसा लगता हैं।
- पेट के मध्य में खड़ी हथेली दबाकर एक तरफ ठोंकने पर दूसरी तरफ पानी की तरंग महसूस होती है।
- यदि पेट पर उँगली से जरा-सी चोट की जाए, तो मालूम होती है कि पेट में पानी का संचार हो रहा है।
- रोगी की भूख मारी जाती है उसे प्यास अधिक लगती है।
- रोगी को पेशाब कम लगती है, और दस्त खुलकर नहीं आता है।
- रोगी को हिलने-डुलने में तकलीफ होती है। उसके चेहरे तथा त्वचा में फीकापन आ जाता है। उसका चेहरा निस्तेज लगता है।
- रोगी को कमजोरी महसूस होने लगती है।
- रोगी के पाँवों में शोथ होना जलोदर का सबसे प्रमुख लक्षण है तथा कब्ज भी हो जाता है।
- कामला/जॉडिस रोगी की उत्पत्ति भी जलोदर (Ascites meaning in hindi) में हो सकती हैं।
- लिवर तथा तिल्ली बढ़ जाते हैं।
- दस्त खुलकर नहीं आता है।
- रोगियों को तो जलोदर के कारण अर्श (पाइल्स) भी हो जाते हैं।
- कुछ जलोदर (Ascites meaning in hindi) होने पर प्रारंभ में पेट बढ़ने लगता है। पेट पर स्पर्श करने से ऐसा महसूस होता है मानो जल से भरे हुए मशक को छू रहे हों।
- इस रोग में पेट में पानी एकत्र हो जाने से पहले पेट का सामने वाला अंश बढ़ता जाता है। ज्यों-ज्यों यह पानी पेट में दोनों तरफ और नीचे फैलता जाता है, पेट चपटा दिखाई देने लगता है।
- इस प्रकार बढ़े हुए शोथ से श्वास-प्रश्वास में कष्ट होने लगता है। इस रोग में पेशाब खुलकर नहीं आता है। बल्कि पेशाब की मात्रा बहुत ज्यादा घट जाती है।
- रोगी जिस करवट लेटता है उसी ओर पेट फूल जाता है। तरल पदार्थों का हिलना या घटना, बढ़ना करवट बदलने से मालूम होता है।
- यदि जलोदर (Ascites meaning in hindi) का कारण सिरोसिस हो, तो पैरों पर सूजन जलोदर होने के बाद होती है।
- वृक्क विकार कारण हो, तो सूजन और जलोदर साथ-साथ होते हैं तथा अन्य कोई कारण हो, तो पहले पैरों पर सूजन होती है एवं जलोदर उसके बाद !
- निदानात्मक लक्षण एवं चिह्न-यदि उदर में संचित जल 300-400 मि. ली. तक भी हो, तो उसको जानने के लिए रोगी की जानू और हथैली के आसन (Posture) में करने के उपरांत ताड़न करना जरूरी होता है ।
जलोदर (Ascites meaning in hindi) के प्रमुख रोग चिकित्सा –
- रोग के भलीभाँति निर्णय करने के लिए उदरावरण गुहा से निकाले गए तरल की परीक्षा, बायोप्सी परीक्षा, पेरीटोनी ओस्कोपी, पोर्टलशिरा की रक्तदाब वृद्धि की परीक्षा की जाती है।
- वैसे विस्तार से लिया गया इतिवृत्ति, कामला, यक्ष्मा, रक्तवमन, अर्श आदि के बारे में प्राप्त की गई जानकारी रोग निर्णय में सहायक होती है।
- (Ascites meaning in hindi) जलोदर चिकित्सा-यद्यपि यह रोग अतिशय कष्टदायक है पर आयुर्वेदिक के उपचार से रोगी को स्थायी लाभ मिलता है। यदि रोगी परहेज करते हुए लम्बे समय तक उपचार करता है, तो वह निश्चय ही निरोग हो जाता है। साथ ही रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। ऐसा अन्य पैथियों से संभव नहीं है।
- परहेज के रूप में रोगी को हर प्रकार के आहार लेने बंद कर देने चाहिए। केवल उपवास करना चाहिए। पानी भी अल्प मात्रा में पानी चाहिए। जलोदर में पानी तो विष के समान है। आहार में केवल बकरी का दूध लेना चाहिए। न होने पर गाय का दूध लिया जा सकता है।
- स्वाद बदलने के लिए कभी-कभी ताजा हलकी छाछ/मट्ठा पी सकते हैं, पर पानी नहीं। प्यास लगने पर केवल दूध पीएँ।
- कोई भी औषधि देने से पूर्व रोगी को विरेचन देकर पेट साफ कर लेना चाहिए। रोगी को कब्ज नहीं होने देनी चाहिए। पेट सदैव साफ रखना चाहिए। विरेचन नित्य देना उपयुक्त बताया गया है। साथ ही 1-2 दिन स्निग्ध वस्तुओं का सेवन करना निर्देशित किया गया है।
- स्निग्ध वस्तुओं के देने के पश्चात् ही जयपाल युक्त विरेचक औषधियाँ दें। यदि विरेचक औषधियों की सामान्य मात्रा है तो मात्रा बढाकर प्रयोग कराएँ
- जलोदर (Ascites meaning in hindi) की चिकित्सा के साथ-साथ जलोदर के प्रमुख कारणों की खोज कर कारणों का नाश करना आवश्यक होता है। जलोदर रोग वैसे कोई स्वतंत्र रोग नहीं है। यह रोग जिन बीमारियों के परिणामस्वरूप हो रहा है, उनकी भी यथेष्ट चिकित्सा करनी चाहिए। पहले से मौजूद विकार दूर हो जाने पर चिकित्सा आसान हो जाती है।
- यदि रोग के कारणों का पता किए बिना ही पेट का पानी निकाल दिया गया अथवा पानी कम करके रोगी को राहत दे दी गई तो कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि रोगी के पेट में कुछ ही दिनों के उपरांत पुनः पानी ज्यों का त्यों भर जाता है।
- रोगी की प्रारंभिक अवस्था में पानी निकाल देने के बाद पानी कुछ दिनों के बाद भरता है। पर रोग जैसे-जैसे पुराना होता जाता है, पानी निकालने के कुछ घंटों के बाद ही फिर ज्यों का त्यों हो जाता है।
- यदि जलोदर (Ascites meaning in hindi) का कारण हृदयपात हो तो ‘हृदय बल्लभ रस’ हृत्पथी (डिजिटेलिस, पेटेंट नाम-लेनोक्सिन) तथा पार्थाधरिस्ट के योग प्रयोग कराये योग है तो यक्ष्मानाशक औषधियों का प्रयोग करे
- रोग के कारणों का पता किए बिना ही पेट का पानी निकाल दिया गया अथवा पानी कम करके रोगी को राहत दे दी गई तो कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि रोगी के पेट में कुछ ही दिनों के उपरांत पुनः पानी ज्यों का त्यों भर जाता है।
- (Ascites meaning in hindi) जलोदर के रोगी को विरेचन देर पेट साफ हो जाने के बाद निम्न अनुभव सिद्ध प्रयोग में से सुविधा अनुसार किसी का प्रयोग करें चूँकि रोग दीर्घकाल तक खिंचता हैं, इसलिए चिकित्सा लम्बे समय तक करें।
- इस रोग (Ascites meaning in hindi) में पिप्पली का चूर्ण विशेष लाभकारी पाया गया है। अतएव 5-6 पिप्पली का चूर्ण बनाकर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करायें। इसके सेवन से उदर का बढ़ा हुआ आकार घटने लगता है। साथ ही यकृत और प्लीहा अपने सामान्य आकार में पहुँचते जाते हैं।
- नोट-इस रोग में उदक, रुक्ष, तीक्ष्ण, मूत्रल, कफघ्न एवं दीपन औषधियाँ लाभकारी होती हैं।
- जवाखार, त्रिकुटा तथा सेंधा नमक मिला हुआ मट्ठा पीते रहने से जलोदर (Ascites meaning in hindi) में लाभ की आशा की जा सकती है।
- एक गोल बड़ा बैंगन लेकर उसमें छेद कर दें और डंडे वाला नौसादर उसमें भरके ओस में रात भर रख दें। प्रायः इसे निचोड़ कर उसका रस निकाल लें। तत्पश्चात् इसकी 4-5 बूँदें बताशें में डालकर रोगी को खिलाएँ इससे जलोदर (Ascites meaning in hindi) के रोगी को बहुत अधिक पेशाब (मटका भर) होगा।
- इस औषधि को नियमित रूप से 1 माह तक सेवन करें।
- यह रोग जलोदर तथा तिल्ली में विशेष लाभकारी होता है।
- जलोदर (Ascites meaning in hindi) में बहुत ही प्रभावी औषधि गोमूत्र है, जिसको यह अनुकूल पड़ता हो, तो मात्र गोमूत्र के प्रयोग से ही यह रोग नियंत्रण में आ जाता है।
- पुनर्नवा की जड़ 10 ग्राम को गोमूत्र 20 मि. ली. में पीसकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्र खूब खुलकर आने लगता है, जिससे जलोदर में लाभ होता है। रोगी को केवल बकरी या गाय का पीने के लिए परामर्श दें।
- ताजा अदरक का रस 60 मि.ली., मिश्री 60 ग्राम-दोनों को मिलाकर प्रातःकाल पिलावें । यह पहले दिन करें। तत्पश्चात् दूसरे दिन 30 मि. ली. रस की मात्रा और 30 ग्राम मिश्री बढ़ाकर प्रयोग करें। इसी प्रकार 300 मि. ली. अदरक रस और मिश्री 300 ग्राम तक पहुँच जाए तब इसका अनुपात 300 मि.ली. /300 ग्राम से घटाकर प्रयोग 60 मि.ली./60 ग्राम पर रोक दें।
- इस प्रयोग से जलोदर (Ascites meaning in hindi) में शर्तिया लाभ होता है। रोगी को केवल दूध पर ही रखने का निर्देश दें ।
- वेलपत्र का ताजा स्वरस 25-50 ग्राम तक + छोटी पीपल का चूर्ण 1/2 – 1 ग्राम। यह एक मात्रा है।
- ऐसी 1 मात्रा प्रातः सायं कुछ दिनों तक सेवन कराते रहने पर जलोदर में पर्याप्त लाभ होता है।
- कच्चा प्याज बार-बार खाने से मूत्र अधिक होता है। यह जलोदर (Ascites meaning in hindi) की एक अच्छी औषधि है।
- लाल मिर्च के पौधे की पत्तियाँ 20 ग्राम + काली मिर्च 10 दाने। दोनों को ठंडाई की भाँति पीसकर छान लें।
- 1-1 ग्राम नौसादर और सेंधा नमक मिलाकर नित्य प्रति पिलाने से रोग से मुक्ति मिलती है।
- करेले के 30 मि.ली. रस में 3 मि.ली. या 3 ग्राम शहद मिलाकर प्रातः सायं पिलाएँ। इससे जलोदर में आशातीत लाभ होता है।
- पुनर्नवा का जौ कुट किया हुआ चूर्ण 20 ग्राम को 200 मि. ली. जल में पकावें । मात्र 50 ग्राम शेष रहने पर इसमें चिरायता तथा सोंठ का चूर्ण 2 ग्राम तथा कल्मीशोरा 1 ग्राम मिलाकर पिलाते रहने से जलोदर (Ascites meaning in hindi) में लाभ होता है।
- इंद्रायण की जड़ 6 ग्राम प्रातः सायं पानी में घोंटकर पिलाते रहने से सब दोष दस्तों द्वारा निकल जाते हैं और जलोदर रोग समाप्त हो जाता है।
- शल्य चिकित्सा-जब उदरगुहा में जल संचित हो जाए तो चरक के आदेश के अनुसार जल को निकालते रहना चाहिए। पर उदर पार वेधन (Abdominal paracentesis) कर जल निकालने की आवश्यकता निम्न अवस्थाओं में होती है-
- जलसंचय के कारण बेचैनी बढ़ जाने पर ।
- हृदय और श्वसन कार्यों में बाधा उपस्थित होने पर।
- वृक्क कार्यों में रुकावट आने से अमूत्रता (Oliguria) होने पर।
- सिरहोसिस की अवस्था में रक्तवमन होने पर।
- औषधि उपचार से लाभ न होने पर।
- जल निकालने का कार्य शल्यचिकित्साविदों (सर्जन) का है।

- शल्यचिकित्सा का उद्देश्य प्रतिहारिणी शिरा के अवरोध को दूर कर संस्थानिक (Systemic) शिराओं के मध्य यातायात (Communication) स्थापित करना होता है। इसलिए वपा (Great omentum) को उदरभित्ति से संबंधित कर दिया जाता है। बार-बार जल संचित न हो, हाईपोगैस्ट्रिक प्रदेश के मध्य से उदरावरणगुहा का भेदनकर रबड़नलिका के एक मुख को गुहा में और दूसरे मुँख को मूत्राशय में अल्प छिद्रकर स्थित कर दिया जाता है।
- जलोदर (Ascites meaning in hindi) की आयुर्वेदीय चिकित्सा में भी आयुर्वेद मनीषियों ने एलोपैथिक चिकित्सा की भाँति ट्रोकार और केन्यूला द्वारा पेट की सीवन और नाभि की दाहिनी ओर संज्ञाहीन करके पानी निकालने की पद्धति को उचित बताया है।
- अन्य चिकित्सा योग–यदि रोगी की कब्जियत न मिटे तो हर्र का चूर्ण, इच्छाभेदी रस, जलोदरादि रस का आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए।
- खुलकर पेशाब आती रहे-इसके लिए पुनर्नवा एक उत्तम औषधि है। इसे सांटी भी कहते हैं। इसकी पत्तियों का रस, सूखी हो तो उसका काढ़ा रोगी को पिलाया जाता है। इसके बने बनाये योग भी बाजार में मिलते हैं, यथा-पुनर्नवारिष्ट, पुनर्नवा, क्वाथ, पुनर्नवा मंडूर आदि ।
- इसके अतिरिक्त रोगी को सुबह, दोपहर और शाम को 3 बार आरोग्यवर्द्धनी वटी की 2-2 गोलियाँ दूध के साथ नियमित रूप से 2-3 माह तक सेवन कराते रहना चाहिए।
- लिखा है कि गाय के मूत्र में अजवाइन डालकर रख दें। एक सप्ताह बाद निकालकर सुखा लें और चूर्ण बना लें। प्रतिदिन इस अजवाइन का उपयोग करने से कुछ सप्ताह में ही जलोदर (Ascites meaning in hindi) नष्ट होने लगता है। अथवा पुनर्नवा मंडूर 250 मि. ग्रा. + वारिशोषण रस 250 मि. ग्रा. लेकर दिन में 2 बार मधु के साथ मिलाकर देने से बहुत लाभ होता है।
- इसके साथ ही रोगी को प्रतिदिन भोजन के बाद पुनर्नवासव 20 मि. ली. बराबर जल मिलाकर देते रहना चाहिए ।
- रोगी को सर्दी से हर हालत में बचाना चाहिए। ठंड लगने से फुफ्फुस बिकार न्यूमोनिया आदि होने की आशंका रहती है। नहाने के लिए गरम पानी हितकर होता है । करेला का सेवन उत्तम रहता है। मीठा अनार का रस दे सकते हैं।
- डैंडेलियन चाय (सिंहपर्णी) – प्राकृतिक मूत्रवर्धक (diuretic) है, जो शरीर से अतिरिक्त पानी निकालने में मदद करता है।
- अजमोदा की चाय – गुर्दे को मजबूत कर अतिरिक्त पानी बाहर निकालने में सहायक होती है।
- लहसुन का रस – शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकालने और सूजन को कम करने में सहायक हो सकता है
- पोटैशियम युक्त खाद्य पदार्थ खाएं
- पोटैशियम सोडियम के स्तर को संतुलित करता है और पानी की रोक को कम करता है।
- अच्छे स्रोत: केला, एवोकाडो, पालक, नारियल पानी और शकरकंद।
- हल्की शारीरिक गतिविधि करें-हल्की सैर करने से रक्त संचार बेहतर होता है और शरीर से पानी निकलने की प्रक्रिया तेज हो सकती है।
- पैरों को ऊंचा रखें और आराम करे-पैरों को ऊंचा रखने से सूजन कम हो सकती है और रक्त प्रवाह बेहतर हो सकता है।
- शराब का सेवन बिल्कुल बंद करें-शराब लीवर की समस्या को और बढ़ा सकती है, जिससे एसाइटिस की स्थिति और गंभीर हो सकती है।
- नमक की मात्रा कम करें-
- नमक शरीर में तरल को रोककर रखता है, जिससे सूजन बढ़ सकती है।
- रोजाना 1.5-2 ग्राम से अधिक सोडियम न लें।
- पैकेटबंद, तले हुए और प्रोसेस्ड फूड से बचें।
- प्रोटीन संतुलन बनाए रखें-
- लीवर की बीमारी से जुड़ी एसाइटिस (Ascites meaning in hindi) के मामलों में प्रोटीन की कमी हो सकती है।
- अच्छे स्रोत: मूंग दाल, दही, पनीर, बादाम, बीज और कम वसा वाला मांस।
- पर्याप्त पानी पिएं (लेकिन सीमित मात्रा में)
- बहुत अधिक पानी पीना भी हानिकारक हो सकता है, खासकर अगर सोडियम असंतुलन हो।
- नारियल पानी और लेमन वॉटर से इलेक्ट्रोलाइट्स संतुलित रहेंगी।
- फाइबर युक्त आहार लें-फाइबर पाचन सुधारता है और लीवर पर दबाव कम करता है। अच्छे स्रोत: फल, हरी सब्जियां, साबुत अनाज, ओट्स।
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