
Colitis meaning in Hindi रोग परिचय – परामर्श के लिए आने वाले पेट रोगियों का एक बड़ा प्रतिशत कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) से पीड़ित होता . है । ऐसे बहुत से रोगी ‘पुरानी पेचिश’ जिसे हम कोलैटीस colitis कहेते है उस ही की शिकायत करते हैं, तो कुछ रोगी कुछ दिनों या हफ्तों से पेचिश की शिकायत करते हैं। कुछ रोगी अत्यधिक ऑव जाने की शिकायत करते हैं।
कुछ रोगी ‘सफेद ऑव’ की शिकायत करते हैं, तो कुछ अन्य लाल ऑव की शिकायत करते हैं। कुछ रोगी मल के साथ खून आने की शिकायत करते हैं, तो कुछ पतले दस्तों की। बहुत से रोगी पाखाना साफ न होने या पेट साफ न होने की शिकायत करते हैं। कुछ रोगी कब्ज रहने या कभी कब्ज तो कभी पतले दस्त भी बताते हैं ।
इस रोग में बड़ी आँत में शोथ हो जाती है। नाभि के चारों ओर दर्द, अरुचि, वमन, मितली, हलका ज्वर, पेट में अफारा, पहले पतले हरे, पीले बदबूदार दस्त आना, बाद में ऑव एवं रक्त के दस्त, दुर्बलता, कूथन, पेट में दर्द (Colitis meaning in Hindi)आदि लक्षण पैदा होते हैं।
Colitis meaning in Hindi पेशिच के कारण (colitis causes)-
- टाइफायड का रोग।
- पुराना कष्टप्रद कब्ज ।
- जीर्ण ज्वर (Chronic Pyrexia) |
- बार-बार लौट आने वाला अतिसार ।
- अपचन , अजीर्ण एवं पेट में गैस बनने की पुरानी बीमारी ।
- चिंता, क्रोध, शोक आदि मानस भावों से ।
- मानसिक विकार क्षोभशीलता को इस रोग का प्रधान कारण कहा जाता है।
- स्ट्रेप्टोकोकस या बी कोलाई आदि इस रोग के सहायक कारण माने जाते हैं। पर इन्हें प्रधान कारण नहीं माना जाता है।
- आंत्रशोथ (Colitis meaning in Hindi)से बच्चे, युवक तथा वृद्ध कोई भी पीड़ित हो सकता है। यह रोग, पुरुषों तथा महिलाओं दोनों को हो सकता है।
- बहुत से रोगी तो पैंतीस चालीस वर्षों से इस रोग से ग्रस्त होने की शिकायत करते हैं और अपने इस जीवनकाल में विभिन्न प्रकार की एलोपैथिक, होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करते रहते हैं। साथ ही यह भी बताते हैं कि जब तक इनको लेते रहते हैं, तो ठीक रहते हैं, लेकिन बंद करने पर लक्षण फिर उभर आते हैं।
- बहुत से रोगी ईसबगोल या चूर्ण लेते रहते हैं। ईसबगोल से बहुत से रोगी ठीक रहते हैं, लेकिन कुछ रोगियों के लक्षण बढ़ जाते हैं। परामर्श के लिए आने वाले अधिकांश रोगी बताते हैं कि चूर्ण से पेट तो साफ हो जाता है, लेकिन फिर कई पतले दस्त लग जाते हैं।
- बहुत से रोगी शौच के वक्त सिगरेट, बीड़ी पीते हैं, कुछ पेट को दबाते हैं, कुछ कॉखकर जोर लगाते हैं। तो कुछ रोगी नियमित रूप से एनीमा लेते रहते हैं।
- कोलाइटिस के कुछ रोगी अत्यधिक कमजोरी, खून की कमी, तेज बुखार, नाड़ी की गति तेज व लो ब्लड प्रेशर की शिकायत भी करते हैं।
- विशिष्ट कारण भी-यह जानना जरूरी है कि कोलाइटिस या बड़ी आँत की सूजन कई प्रकार् की होती है, जिसके कारण लक्षण व उपचार भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ – अमीबा जनित कोलाइटिस, बैक्टीरिया से कोलाइटिस, अल्सरेटिव कोलाइटिस, टी. बी. से कोलाइटिस इत्यादि । कुछ दवाओं से भी कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)हो जाती है।
पेशिच(Colitis meaning in Hindi) के प्रकार –
1) अमीबाजनित कोलाइटिस-
यह अमीबा नामक परजीवी से फैलने वाला एक संक्रमण रोग है, जो मुख्यतः प्रदूषित जल, अन्य पेय पदार्थ या भोजन के ग्रहण कर लेने से स्वस्थ व्यक्ति को भी रोगी बना देता है। अमीबा (ई.एच.) इतना सूक्ष्म होता है कि इसे केवल सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही पहचाना जा सकता है। ये परजीवी रोगी के पाखाने के साथ बाहर निकलते हैं।
यदि रोगी पीने के पानी के स्रोत के पास या खेतों में शौच करता है, तो यह पानी द्वारा या बिना धुली तरकारियों का सेवन करने से स्वस्थ व्यक्ति की आँतों में पहुँचकर तथा पनपकर अपनी संख्या में बढ़ोत्तरी करके स्वस्थ व्यक्ति को भी रोगी बना देता है।
यदि अमीबिक कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) का रोगी शौच से आने के बाद हाथ भलीभाँति धोए बिना खाने-पीने के वस्तु को छूता है, तो इसके जरिए भी अमीबा परजीवी स्वस्थ व्यक्ति की आँत में पहुँचकर सूजन उत्पन्न कर देते हैं। धूल, मक्खियाँ, कॉकरोच तथा चूहे भी इस रोग को फैलाने में जिम्मेदार होते हैं।
लक्षण-पतले दस्तों या ढीले पाखानों का बार-बार होना इस कोलैटीस (colitis in hindi) रोग का मुख्य लक्षण है। अधिकांश रोगी पाखाने में ऑव आने की शिकायत करते हैं। अमीबा परिजीवी आँत में सूजन, घाव या अल्सर, गाँठ (अमीबोमा) तथा रुकावट भी उत्पन्न कर देते हैं। कुछ रोगियों को पाखाने में खून तथा ऑव आने लगता है तथा तेज बुखार भी हो सकता है।
कभी-कभी रक्तनली के फट जाने से अत्यधिक खून भी निकल सकता है। तब रोगी की नाड़ी की गति तेज तथा ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। रोगी के माथे पर पसीना आने लगता है और हाथ पैर ठंडे मालूम होते हैं। कुछ रोगियों की आँत फट भी सकती है, जो एक खतरनाक दशा मानी जाती है।
अमीबिक कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)के कुछ रोगी पेट फूलना, अत्यधिक गैस बनना तथा पेट दर्द की शिकायत करते हैं। ऐसे लक्षणों को आँत की टी.बी., अल्सर, आँत कैंसर, महिलाओं में गर्भाशय से निकलने वाली नलियों की सूजन, पेट के कीड़े, एपेंडिक्स की सूजन, गॉल ब्लेडर में पथरी का दर्द इत्यादि रोगों से पहचानना जरूरी होता है।
बहुत से रोग विशेषज्ञों के मतानुसार अमीबा परजीवी से उत्पन्न पेटरोग पेट के अन्य किसी भी रोग से मिलते-जुलते हो सकते हैं। इसलिए पेट के अधिकांश रोगियों में जाँच का विशेष महत्त्व है। अमीबिक कोलाइटिस के कुछ रोगियों में पेट के निचले दाएँ भाग में एक गाँठ-सी बन जाती है, जिसकी पहचान ऐपेंडिक्स, टी.बी. कैंसर की गाँठ, लिंफ ग्लैंड्स इत्यादि से करना जरूरी होता है।
2)जीवाणुजनित कोलाइटिस (Bacterial Colitis)—
मुख्य रूप से शिगैला नामक बैक्टीरिया से होने वाली यह संक्रमण कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) भी रोगी के पाखाने द्वारा फैलती है। रोगी के पाखाने से निकले बैक्टीरिया से प्रदूषित भोजन या पानी ग्रहण कर लेने पर ये जीवाणु स्वस्थ व्यक्ति की आँत में पहुँचकर शीघ्र ही अत्यंत तीव्र सूजन व घाव बना देते हैं।
जब एक ही स्थान पर बहुत अधिक लोग एक साथ रह रहे हों और साफ पानी तथा भोजन का प्रबंध न हो, भोजन बनाने या परोसने वाला व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त हो, सफाई का उचित प्रबन्ध न हो और व्यक्ति कुपोषण का शिकार हो, मौसम गर्म हो तो यह रोग तेजी से फैलता है। मविखयाँ तथा कॉकरोच भी इस रोग के प्रसार में जिम्मेदार होते हैं।
लक्षण-पतले दस्त बार-बार जाना, पाखाने में ऑव, मवाद तथा खून आना, पेट में मरोड़ के साथ दर्द उठना, इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। कुछ रोगी बुखार आने, जी मिचलाने, भूख न लगने, उलटी होने, चक्कर आने, सिरदर्द तथा जोड़ों में भी दर्द की शिकायत करते हैं।
कुछ रोगी शरीर में खनिज लवणों, जल तथा खून की कमी हो जाने के कारण अत्यधिक कमजोरी की शिकायत करते हैं।प्रायः इनकी नाड़ी की गति तेज और ब्लैड प्रेशर तथा मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। इस दशा में चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
3)म्यूकस कोलाइटिस (Mucous colitis)
इस प्रकार की कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) में बड़ी आँत में सूजन आ जाती है. जिसके परिणामस्वरूप बड़ी आँत में अन्दर की म्यूकस मेंब्रेन (मखमल जैसी पतली चिकनी परत) अधिक जमने लगती है और अधिक म्यूकस बनने लगता है। यह अतिरिक्त मवाद के जैसा बहुत म्यूकस मल के रास्ते से बाहर निकलता है।
इसलिए इस रोग को म्यूकस कोलाइटिसकोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) कहते हैं। म्यूकस कोलाइटिस को आयुर्वेद में जीर्ण प्रवाहिका – पुरानी पेचिस भी कहते हैं, क्योंकि पेचिश के रोग पर ध्यान न देने से यह रोग होता है।
म्यूकस कोलाइटिस/वातिक प्रवाहिका के सामान्य कारण-
इस प्रकार की कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) का निश्चित कारण अभी तक ज्ञात नहीं हैं। जीवाणु या परजीवी इसके लिए जिम्मेदार नहीं माने जाते हैं, लेकिन इतना अवश्य मालूम है कि इसमें रोगी की आँतों की गति अवश्य प्रभावित हो जाती है तथा रोगी के पाखाने के साथ प्रायः ऑव या म्यूकस अधिक मात्रा में निकलता है। कुछ संभावित कारण कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के निम्न प्रकार हैं-

- कब्जियत / मलावरोध इस रोग का प्रमुख कारण है।
- बड़ी आँत के अत्यधिक चौड़ी या संकरी होने से।
- अपक्व मल में रेशे, अपक्व पदार्थ और उसकी चिकनाहट से बड़ी आँत में उनके सीमेंट की तरह जमने से ।
- एपेंडिक्स/ आंत्रपुच्छ के ऑपरेशन के बाद बड़ी आँत के लटककर झूल जाने से उसमें सूजन कर रोग पैदा होता है।
- विरोधी आहार के सेवन से । गलत ढंग से पकाये गये आहार को लम्बे समय तक (विषैला होने की दशा में) सेवन करने से।
- बार-बार पेचिश, उलटियाँ और हमेशा कब्ज के बने रहने से ।
- वृद्ध पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि होने पर या आंत्र वृद्धि होने पर बड़ी आँत में सूजन आ जाती है ।
- कुछ गर्म, तेज, विषाक्त और नुकसानदेह औषधियों के अत्यधिक सेवन से ।
- किसी रोग में तेज औषधि का अत्यधिक प्रयोग करने से।
- बार-बार पेचिश, उलटियाँ और हमेशा कब्ज के बने रहने से।
- वृद्ध पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि होने पर या आंत्र वृद्धि होने पर बड़ी आँत में सूजन आ जाती है।
- कुछ गर्म, तेज, विषाक्त और नुकसानदेह औषधियों के अत्यधिक सेवन से। किसी रोग में तेज औषधि का अत्यधिक प्रयोग करने से।
- पेट में अल्सर की स्थिति में ।
- बार-बार मलेरिया होने पर क्विनाइन तथा टाइफॉइड में क्लोरोमाइसेटिन के सेवन से।
- टाइफायड, टी.बी., अर्श, गैस की बीमारी आदि की तकलीफ लम्बे समय तक चलती रहें, तो सूजन आ सकती है।
- बड़ी आँत में कैंसर होने पर ।
- हिस्टीरिया के रोगियों तथा मन से निर्बल मनुष्यों में ।
- मानसिक तनाव तथा मस्तिष्क पर निरर्थक बोझ पड़ने से ।
यह सब कारण है कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के

नोट– • उपरोक्त कारणों से बड़ी आँत में सूजन आकर वृहत आंत्रशोथ कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) का रोग हो जाता है। लक्षण-इस प्रकार की कोलाइटिस में अधिकांश रोगी पतले दस्त होने की शिकायत करते हैं, जो मुख्यतः प्रातःकाल के समय होते हैं। दिन में बाकी समय में रोगी स्वस्थ महसूस करता है। रात में दस्त कभी नहीं लगते।
मल के साथ अत्यधिक मात्रा में ऑव निकलना मुख्य शिकायत होती है। पतले दस्तों का यह सिलसिला कई हफ्तों या महीनों तक चलता है और कुछ समय के लिए बंद होकर फिर शुरू हो जाता है। बहुत से रोगी बताते हैं कि पूर्व में एक बार उनको डिसेंट्री हो गई थी उसके बाद ही यह रोग कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) बन गया है।
कुछ रोगी दस्तों के स्थान पर कब्ज रहने अथवा कभी कब्ज और कभी पतले दस्त होने की शिकायत करते हैं। कुछ रोगी खाना खाते ही शौच जाने की इच्छा बताते हैं। इस प्रकार की कोलाइटिस के अन्य लक्षण-पेटदर्द, पेट में भारीपन, पेट फूलना, अत्यधिक गैस का अनुभव होना, छाती में जलन, कमरदर्द, कमजोरी, घबराहट एवं उलझन इत्यादि लक्षण कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) मे दिखाई देते हैं।
शारीरिक जाँच करने पर ये रोगी चिंतित और काफी परेशान से नजर आते हैं और प्रायः एक से दूसरा चिकित्सक बदलते रहते हैं। पेट फूला-फूला नजर आता है और जीभ पर सफेद पर्त भी जमी दिखाई देती है।
इस बीमारी कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi)के बहुत से रोगी बताते हैं कि उनको यह लक्षण प्राय:
- कई-कई वर्षा से होते हैं, लेकिन लम्बे समय तक रोगग्रस्त रहने के बाबजूद उनके स्वास्थ्य में गिरावट देखने को नहीं मिलती। यह जानना जरूरी है कि इस प्रकार की कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) में मल के साथ खून नहीं आता और यदि ऐसा है तो कोई अन्य रोग की आशंका रहती है।
- इस रोग में प्रायः पुरानी पेचिश के लक्षण मिलते हैं।
- उदाहरण के रूप मे बँधा हुआ, एक जैसा, खुलकर और संतोषप्रद ढंग से मलत्याग नहीं होता ।
- मलत्याग की बार-बार हाजत होती है। कभी-कभी तो बार-बार शौच के लिए जाना पड़ता है। रोगी का मल ढीला कच्चा और दुर्गंधित होता है।
- मल के साथ अत्यधिक चिकनाहट जाती है। कई बार लम्बे-लम्बे तन्तु या लम्बी नली जैसे आकार के टुकड़े भी टपकते हैं। दस्त इतना चिकना होता है कि वह मलद्वार को भी गंदा कर देता है, जिसे साफ करने में भी तकलीफ होती है। इतना ही नहीं, शौचालय से भी मल को साफ करने के लिए बहुत अधिक पानी डालना पड़ता है, तब जाकर वह साफ होता है।
- मलत्याग के समय पेट में दर्द होता है।
- भूख कम हो जाती है, खाने की रुचि नहीं रहती और जो कुछ खाया जाता है उसका पाचन नहीं होता। रोगी का वजन तेजी से कम होने लगता है। यदि रोग लम्बे समय तक बना रहे, तो रोगी के शरीर से उसके वजन में आई कमी का पता चल जाता है।
- रोगी लगातार कमजोरी का अनुभव करता है।
- कब्जियत बनी रहती है, जिससे रोगी जुलाब लेने के लिए प्रेरित होता है।
- भोजन के तत्काल बाद मलत्याग के लिए शौच जाने की शिकायत भी देखने में आती है।
- किसी युवक या युवती को वर्षों तक मलावरोध, मल के कष्ट तथा ऑव के साथ आते रहने, पेट के निचले भाग में विशेषकर बाईं ओर दर्द या बेचैनी या उद्वेष्टन के रहने, मलत्याग या हवा के निकल जाने के बाद चैन महेसुस होता है
नोट– इसमें रक्तातिसार नहीं होते, इसीलिए वैसी पाडुंता और निर्बलता नहीं होती । विशेष—इस बीमारी के बहुत से रोगी परामर्श के लिए आते हैं, जिनको यह लक्षण प्रायः कई-कई वर्षों से होते हैं, लेकिन लम्बे समय तक रोगग्रस्त रहने के बावजूद उनके स्वास्थ्य में गिरावट देखने को नहीं मिलती।
यह जानना जरूरी है कि इस प्रकार की कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi) में मल के साथ खून नहीं आता और यदि ऐसा है तो कोई अन्य रोग की आशंका रहती है।
4)अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) |
व्रण युक्त वृहदंत्रशोथ – इसे आयुर्वेद में रक्तातिसार कहा जाता है। बड़ी आँत में गैस्ट्रिक अल्सर की भाँति ही अल्सर हो जाते हैं। इसको अल्सरेटिव कोलाइटिस कहते हैं। मल में जब लाल रक्त या पुराना काला रक्त मिला हुआ दिखाई दे, अल्सरेटिव कोलाइटिस का ही लक्षण होता है। अर्थात् रक्तमिश्रित मल का निकलना अधिकतर अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) होता है।
तब संक्रामक प्रवाहिका से तथा वृद्धों में होने वाले चिरस्थायी वृक्क रोग (Chronic Nephritis) के कारण रक्त में मूत्र – विष यूरिया (Urea) की वृद्धि हो जाती है तथा क्षयजनित (Enterocolitis) से भी बड़ी आँत की श्लेष्मकला में शोथ होकर वृहदंत्रशोथ, तथा व्रण अर्थात् अल्सरेटिव कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)का रोग हो जाया करता है और उसके कारण रक्त और ऑव से मिश्रित पतले दस्त होते रहते हैं
पर इनसे बिलकुल अलग एक इस प्रकार का वृहदंत्रशोथ है, जो किसी विशेष जीवाणु या शरीर में उत्पन्न हुए विष (Metabolite) के द्वारा नहीं होता प्रत्युत्तर वृहदत्र श्लेष्मकला की किसी अपनी निर्बलता या विक्षोभशीलता के कारण होता है इसे नॉन-स्पेसिफिक या (Idiopathic colitis) कहते हैं।
इस रोग के बढ़ने पर वृहदंत्र श्लेष्मकला में उथले व्रण भी हो जाते हैं, इसीलिए इसे व्रणयुक्त वृहदंत्रशोथ (Ulcerative colitis) भी कहते हैं। यह एक दीर्घ रोग है जो ठीक होकर, बार-बार होता जाता है या हल्के-हल्के रूप में वर्षों रहता है, या सहसा तीव्र रूप में प्रकट होकर अतिरक्तस्राव और टॉक्सीमिया के द्वारा घातक हो जाता है।
ulcerative colitis symptoms -इस नीले-लाल या मांस धोवन के समान रंग के या लाल रंग के खून से युक्त दस्त होते हैं, जिसमें ऑव भी होती है। कभी ये वेदना के साथ आते हैं और कभी बिना किसी दर्द के ये पक्व तो कभी अपक्व होते हैं। रोगी की अग्निमंद होती है।
इस प्रकार की कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के रोगी यूरोप तथा अमेरिका में बहुतायत से देखे जाते हैं, लेकिन चिकित्सकों में जागरुकता होने के कारण ऐसे रोगी हमारे देश में भी अधिक संख्या में देखे जा रहे हैं।
यह रोग इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि पेटरोग के सम्मेलनों में इस पर विचार-विमर्श प्रायः होता रहता है। चूँकि इसके उपचार के लिए नई-नई दवाओं का अविष्कार तेजी से हो रहा है। अधिकतर 20 से 40 वर्ष की अवस्था वाले लोगों में यह रोग अक्सर देखने को मिलता है। 60 वर्ष की उम्र के बाद बहुत कम लोग इस रोग से पीड़ित होते हैं।
जब दिन में 10 से 20 बार तक रोगी को शौच के लिए जाना पड़े तो उसका शारीरिक तापमान 99 से 101 डिग्री तक पहुंच जाए, तो समझना चाहिए कि रोग अपनी चरम सीमा में पहुँच जाए, तो समझना चाहिए कि रोग अपनी चरम सीमा में पहुँच गया है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)के प्रमुख कारण-
- यदि अम्लपित्त (एसिडिटी) और गैस्ट्रिक अल्सर का रोगी अपना जीवन-व्यवहार रोजमर्रा की तरह चलाने के लिए बीमारी का उपचार कराता रहे और दवाओं का सेवन करता रहे तो समय बीतने के साथ ही दवा की गर्मी पाचनतंत्र के अंतिम अवयव-बड़ी आँत में पहुँच जाती है और अल्सरेटिव कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)हो जाता है।
- मानसिक तनाव से यह रोग होता है। विद्यार्थियों तथा बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों के एक्जीक्यूटिव अधिकारियों के निरंतर मानसिक तनाव में रहकर कार्य करते हैं। अतः इन लोगों में यह रोग ज्यादातर देखने को मिलता है।
संधिवात या आमवात के रोगी यदि लम्बे समय तक गर्म दवाओं का सेवन करते रहें, तो उससे एक लंबे अरसे के बाद पेट में अल्सर/वृहदंत्र आंत्रशोथ(Colitis meaning in Hindi) का रोग हो जाता है। - सर्दी-जुकाम और दमे के रोगियों को एलोपैथिक गर्म दवाएँ सेवन करते रहने से ।
- यदि अम्ल-पित्त का रोगी (Acidility patient) खट्टा, खमीर वाला तला हुआ तीखा ओर गर्म मसाले वाला आहार लम्बे समय तक लेता रहे, तो भी अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) का रोग हो जाता है।
- आहार में क्षार वाले तथा कैल्शियम वाले पदार्थ कम हो जाने से एसिड की मात्रा बढ़ने से । शराब पीने वालों को इस रोग की अधिक संभावना रहती है ।
- कोलटार (पेट्रोलियम उत्पाद) या उससे बने हुए पदार्थों का सेवन करने से। ऐसे पदार्थों में जुलाब की अंग्रेजी दवाइयाँ, नींद की गोलियाँ, सिंथेटिक विटामिंस, एस्पिरिन आदि का समावेश होता है।
- कॉफी और कोका-कोला जैसे कॉफिन वाले द्रव्यों के सेवन करते रहने से ।
- अतिशय धूम्रपान तथा चाय-काफी का सेवन भी इस व्याधि को आमंत्रित करता है। वैज्ञानिकों के अनुसार अल्सरेटिव कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)का कारण अभी तक निश्चित रूप से पता नहीं चल पाया है। अभी तक जो तथ्य उभरकर आए हैं उनमें से मुख्य “ओटो-इम्यून” थ्योरी है, जिसके अनुसार रोगी में अपने ही शरीर के विभिन्न अंगों के विरुद्ध हानिकारक रोग उत्पन्न करने वाले पदार्थ बनते हैं।

अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi)लक्षण-
25 से 30 वर्ष की आयु के बैठकर कार्य करने वाले स्त्री-पुरुषों में पाया जाने वाला यह एक पुराना रोग है, जो धीरे-धीरे अज्ञात रूप में आरम्भ होता है। पहले बिना अतिसार के ही मल में रक्त और पूय आने लगता है। यह अवस्था महीनों तक जारी रह सकती है। इसके बाद अतिसार का लक्षण होता है, जो महीनों, वर्षों तक रहता है। कभी कम हो जाता है, कभी बढ़ जाता है।
अतिसार इस रोग का प्रधान लक्षण है, जो अर्द्धद्रव (Semi-liquid) होता है। मल की मात्रा बढ़ी नहीं होती है। रोगी को दिन में 2-3 या 5 से 10 बार तक दस्तों के लिए जाना पड़ता है। जब दस्त अधिक होते है, तो रात को भी 1-2 बार जाना पड़ता है। इस रोग में दस्त पीले से रंग का होता है।
ऑव और रक्त पृथक नहीं, मल के साथ आता हैं तथा विशेष मरोड़ और दर्द के साथ नहीं होता , और बहोत दिनों तक जारी दिनों तक जारी रहता हैं। इसलिए इसका बेसलिरी डिसेंट्री से संदेह नहीं होता।
इसमें कभी-कभी दस्त के साथ मिला हुआ रक्त अधिक मात्रा में आता है। रोग पुराना होकर यदि बृहदंत्र के निचले भाग से ऊपर एक बड़े भाग में फैल गया हो, तो उसमें ज्वर भी न्यूनाधिक रहता है तथा रक्त ऑव, मल के साथ एक हुए होते हैं। उतरती हुई आँत पर विशेषकर बाएँ इलियक फोसा पर दबाने से स्पर्शाक्षमता का लक्षण होता है।
इस प्रकार रक्तातिसार और ज्वर के अतिरिक्त रक्त क्षय जनित पांडुता, कमजोरी और कृशता अर्थात् भार के घट जाने के लक्षण भी होते हैं। पांडुता लौह (आयरन) की कमी से होती है। अतिसार के रहने पर भी इस रोग में पेट अफरा हुआ नहीं होता, बल्कि कुछ पिचका हुआ होता है। क्षुधानाश या अन्न के लिए अरुचि का लक्षण नहीं रहता है।
यकृत कुछ बढ़ जाता है (वसा के संचय से) एवं रूग्ण हो जाता है। साथ ही यकृत में दर्द भी रहता है। नेफ्राइटिस के समान इस रोग में भी शोथ का लक्षण हो सकता है। कभी-कभी अतिरिक्त स्राव होने का उपद्रव भी होता है। यदि बड़ी आँत के कोष भर जाते हैं, तो आँत में छिद्र हो जाते हैं। इसे आँत का परफोरेशन कहते हैं, जो कई बार रोगी के लिए घातक सिद्ध होता है।
पुराने रोग में बेरियम का एनीमा देने पर एक्स-रे द्वारा देखने पर बड़ी आँत अधिक सक्रिय दीखती है। आँत पाइप की तरह तथा कुछ अधिक संकुचित हुई दिखती है तथा उसमें व्रणों के अनेकानेक गड्ढे दिखाई पड़ते हैं । ल्यूकोसिटोसिस तथा ई. एस. आर. के बढ़ जाने के लक्षण भी होते हैं। मलाशय के ऊपर के भाग में फाइब्रस स्ट्रक्चर का होना तथा वहाँ किसी व्रण से रक्तस्राव होना आदि इसके उपद्रव हो सकते हैं।
याद रहेअल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) मे –
1. इस रोग में बड़ी आँत के भीतर की वृत्ताकार रचना नष्ट हो जाती है।
2. दस्त के साथ अतिशय मात्रा में चिकनाहट, मवाद या रक्त गिरता है।
3. मल बहुत कम गिरता है ।
4. वजन तेजी से कम होने लगता है।
5. भूख एक दम समाप्त हो जाती है ।
6. शरीर में रक्त की कमी से अनीमिया की स्थिति पैदा हो जाती है।
7. इस रोग का कोई रोगी ही ठीक होता है, अधिकतर चिररोगी रहते हैं।
8. कभी-कभी यह रोग तीव्र रूप से आरंभ होता है । मल के साथ अति रक्तस्राव होता है, ज्वर रहता
है तथा विषसंचार (टॉक्सीमिया) का लक्षण रहता है।
9. कैंसर इसके स्थानिक उपद्रव हैं। हेपेटाइटिस इसका दूसरा उपद्रव है।
रोग की स्थिति के अनुसार इस रोग को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. पहली स्थिति-इस स्थिति में रोगी को रोग का पता ही नहीं चलता। प्रारंभ में रोगी को रोग के किसी लक्षण की भनक तक नहीं होती, पर रोगी को पेट में बेचैनी-सी महसूस होती है।
उसे ऐसा लगता है कि उसके पेट में निरंतर कुछ गड़बड़ -सी है। रोगी उदास रहने लगता है, उसकी मलत्याग की क्रिया अनियमित हो जाती है। इतना होने पर भी अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) होने की शंका नहीं हो सकती ।
2. दूसरी स्थिति-इस स्थिति में रोग मध्यम स्टेज में पहुँच जाता है। पेट भारी-भारी लगने लगता है और उसमें कुछ-कुछ पीड़ा भी होती है। इस स्थिति में बड़ी आँत के अल्सर रिसने लगते हैं। अतः मल में रक्त भी दिखने लगता है। मल में चिकनाहट मालूम होती है।
कई बार तो मल की मात्रा बहुत ही कम होती है, पर चिकनाहट तथा रक्त की अधिकता होती है। यदि अल्सर मलद्वार तक पहुँच गए हो, तो ऐसा लगता है जैसे पीठ की तरफ पीड़ा या मरोड़ उठ रही है।
3. तीसरी स्थिति-यह स्थिति रोग के गंभीर होने की सूचना देती है। यह स्थिति कई बार क्रमणः न आकर पहली बार में ही अचानक उत्पन्न हो जाती है। रोगी को तीव्र ज्वर आता है, उसे दस्त में अत्यधिक रक्त गिरता है। इस स्थिति में भूख मारी जाती है उसका वजन घट जाता है। बड़ी आँत के भाग में हाथ से जरा-सा भी दबाने से दर्द मालूम होता है।
आयुर्वेद के अनुसार- बड़ी आँत की प्राणशक्ति की निर्बलता के कारण रोग हो, तो इसे वात प्रवाहिका कहते हैं। बड़ी आँत में तीव्र शोथ और पाक के कारण रोग हो, तो पित्त प्रवाहिका कहते हैं।
वृहत् आंत्रशोथ/कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) (ulcerative colitis treatment)की चिकित्सा-
- आहार व्यवस्था- कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) की चिकित्सा में आहार व्यवस्था को विशेष महत्त्व दिया गया है-आंत्रशोथ की चिकित्सा के लिए रोगी के आहार-विहार पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। कोलाइटिस की चिकित्सा में बड़ी आँत को पूर्ण आराम देना चाहिए। इसके लिए उपवास करना एक श्रेष्ठ उपाय है। रोगी को आहार लिए बिना केवल गुनगुने पानी पर ही रहना चाहिए।
- इस स्थिति में औषधियों का सेवन भी निषेध माना गया है। उपवास रहकर गुनगुना पानी लेने से आँतों से पुराना, चिपका हुआ और चिकना मल अलग हो जाता है और आँतें स्वच्छ हो जाती हैं। आँत में नया आहार न आने से अपच दूर हो जाता है और आम के कारण आँत में आई हुई सूजन कम हो जाती है, अथवा मिट जाती है।
- रोगी को हलका आहार जैसे-मूँग का पानी, साग-भाजी का सूप, पसाए हुए पुराने चावल या मूँग की दाल की खिचड़ी, मुरमुरे आदि देना चाहिए। मट्ठा एक उपयुक्त आहार है, जो पचने में हलका, पाचक तथा शक्तिवर्द्धक होता है। यह अजीर्ण को रोकता है।
- कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) में मट्ठा या छाछ आहार एवं औषधि दोनों का कार्य करती है। इसमें स्थित लैक्टिक एसिड आँत में जमे हुए मल को साफ करती है, मल की सड़न को रोकती है, वायु प्रकोप नहीं होने देती है । आँत की सूजन मिट जाती है। इससे पाचन तंत्र सुधरता है।
- गरिष्ठ व अम्लीय खाद्य पदार्थों से आंत्रों पर हानिकारक प्रभाव :- होता है और रोग विकसित होता है। इस रोग में रक्तातिसार(Colitis meaning in Hindi) की भाँति रक्त व ऑव का स्राव होता है। इसलिए रक्तातिसार की तरह चिकित्सा करनी चाहिए व्रणशोथ को नष्ट करने वाली औषधियाँ अधिक लाभ पहुँचा सकती हैं।
- कोलाइटिस के रोगी को एकदम फीकी तथा ताजी छाछ यथेष्ट मात्रा में पीनी चाहिए । कुछ उपयोगी औषधियाँ–कोलाइटिस के रोग को नियंत्रित करके उसे बढ़ने से रोककर जड़-मूल मिटाने वाली कुछ उपयोगी औषधियाँ यहाँ दी जा रही हैं।
- म्यूकस कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) में – कुटज का चूर्ण या इंद्र जौ का चूर्ण अथवा दोनों का मिश्रण 3-3 ग्राम दिन में 3 बार पानी के साथ लें। कुटज घनबटी की 2-2 गोली दिन में 3 बार पानी या मट्ठे से लें। भोजन के बाद दोनों समय कुटजारिष्ट 20-30 मि.ली. पानी के साथ सेवन किया जा सकता है।
- उपरोक्त कुटज चूर्ण, घनबटी और अरिष्ट तीनों का उपयोग एक साथ भी किया जा सकता है। अथवा वेल के सूखे फल का चूर्ण दिन में 3 बार 3-3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लिया जा सकता है। अथवा सूखे या हरे बेल को अधकुटा करके उसका काढ़ा बनाएँ। सुबह शाम 2 बार पानी के साथ 30-40 ग्राम काढ़ा लिया जा सकता है।
- कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)में पंचामृत पर्पटी, सप्तामृत पर्पटी या रस पर्पटी-इनमें से किसी एक का भी प्रयोग मटठे के साथ करना उपयोगी है।
- अनुभूत योग-सोंठ, अजवाइन, हर्र, सोया, राल, मोचरस, कुटजछाल, बेल और इंद्र जौ – इन सब को समान मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लें। 3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार पानी या मट्ठे के साथ दें। कोलाइटिस में विशेष लाभ होता है, अनुभूत है ।
- एनीमा- कोलाइटिस (Colitis meaning in Hindi)में एनीमा का प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। माजूफल, कत्था, फिटकरी, रसवंती और त्रिफला- इन सब को समान मात्रा में लेकर उबाल लें। इसका एनीमा दें।
- आधुनिक विज्ञान में तो आँत के सड़े हुए हिस्से को काटकर निकाल देने की ही सलाह दी जाती है। आँत का अधिकांश भाग काटकर निकाल दिया जाता है और मलत्याग के लिए कमर हिस्से में छेद करके पाइप बिठा दी जाती है। इस छेद से लगातार दुर्गंधयुक्त मल टपकता रहता है। ऐसी दशा में रोगी हमेशा के लिए असहाय और पराधीन हो जाता है। बिस्तर पर पड़े-पड़े उसे नारकीय जीवन बिताना पड़ता है।
औषधि व्यवस्था (कोलाइटिस आयुर्वेदिक दवा ) (colitis treatment in hindi)-

- सर्वप्रथम रोगी के मल में टपकने वाला रक्त बंद करना आवश्यक है। इसके लिए शोणितार्गल रस, बोलवद्ध रस, चंदकला रस अत्यंत उपयोगी हैं। इनमें किसी एक का प्रयोग 2-2 गोली की मात्रा में प्रति 4-4 घंटे पर पानी के साथ किया जा सकता है।
- अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के उपचार में शीत संग्राही वल्य गुण औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
- अनुभूत योग नं. 1-दारु हल्दी, पिप्पली, सोंठ, लाक्षा (लाख), इंद्रयव-इन सबको समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। मात्रा 2-3 ग्राम प्रति 4-4 घण्टे पर दें।
- अनुभूत योग नं. 2– लोध, मुलैठी, नीलोफर, सारिवा-इन सबका समान भाग का क्वाथ दूध में मिलाकर दें ।
- आहार व्यवस्था-अल्सरेटिव कोलाइटिस के रोगी के लिए अनाज अपथ्य है। इसलिए उसे बंद कर देना ही चाहिए। रोगी को केवल दूध के सहारे रहना चाहिए। इसमें बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। अभाव में गाय या डेरी का दूध (Dairy milk) दिया जा सकता है।
- भैंस का दूध पानी मिलाकर उसे गर्म करने के बाद ही लेना चाहिए। यदि रोगी को दूध अनुकूल न पड़ रहा हो, तो रोगी ताजा और एकदम फीका दही ले सकता है। पके मीठे फल या उनका रस लिया जा सकता है। जहाँ तक हो मिर्च, मसाला रहित सुपाच्य तथा अल्प मात्रा में यथासंभव तरल आहार ही लेना चाहिए। रोगी को मूँग (दाल) का पानी दिया जा सकता है।
- मिर्च, गर्म मसाला, अदरक, लहसुन, प्याज, अचार, चटनी, तले हुए नमकीन, गरिष्ठ आहार, मिठाइयाँ आदि कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के रोगी के लिए अपथ्य हैं।
- अल्सरेटिव कोलाइटिस(Colitis meaning in Hindi) के रोगी में मलत्याग के समय जब रक्त अधिक टपक रहा हो उस समय निम्न योग लाभकारी होता है-
बेलगिरी 10 ग्राम, सूखा धनियाँ 10 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम-इन सबको लेकर महीन पीस लें। मात्रा- 5 ग्राम चूर्ण ताजे पानी के साथ दिन में 3 बार खिलाने से दस्तों में खून आना बंद होता है। - शुष्क धनियाँ 12 ग्राम पिसा चूर्ण + मिश्री पिसी 12 ग्राम दोनों को मिलाकर आधा कप पानी में घोलकर पीने से दस्त में खून आना बंद होता है।
- कुटज 10 ग्राम, लोहवान 20 ग्राम तथा जावित्री 30 ग्राम को मिलाकर 120-120 मि.ग्रा. की गोली बनाकर रख लें। 1-1 गोली दिन में 3-4 बार जल या मट्ठे से दें। यह रक्तातिसार (Colitis meaning in Hindi)में तुरन्त लाभकारी होता है।
- जब रक्त मिले हुए दस्त बहुत आते हों और रोगी की दुर्बलता अधिक बढ़ रही हो तो यह गोली 1-1 मात्रा से बटदुग्ध बताशा में भरकर उसमें गोली रखकर 3-3 घण्टे के बाद दें। इससे बहुत लाभ होता है।
- हरड़, सौंठ, पीपरामूल, चीते की छाल, कुटकी, इद्र जौ, दूधवच एवं पाठा-इनकी समान मात्रा लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन दिन में 3 बार चूर्ण जल के साथ उपयोग करने से रक्तस्राव बन्द होता है।
- अनार की जड़ की छाल और कुटज की जड़ की छाल का क्वाथ बनाकर उसमें शहद मिलाकर पीने से रक्तातिसार(Colitis meaning in Hindi) बंद होता है। अनार का रस भी इस रोग को शीघ्र नष्ट करता है।
- अतीस, सौंठ, बच, हरड़, नागरमोथा और सहजन की छाल बराबर मात्रा में लेकर क्वाथ बनाकर 2-3 बार पीने से बहुत लाभ होता है।
- रक्तातिसार (अल्सरेटिव कोलाइटिस) (Colitis meaning in Hindi)में एक विशिष्ट अनुभूत योग- —80 ग्राम इंद्र जौ की जड़ की छाल 1 किलो पानी में डालकर उबालें। जब 100 ग्राम पानी रह जाए तब 100 ग्राम बकरी का दूध डालकर फिर पकाएँ। जब केवल दूध रह जाए तब उतार लें और मिश्री मिलाकर पिएँ। ऐसा करने से खूनी दस्त तुरन्त बंद हो जाते हैं।
- 1-2 सप्ताह नियमित सेवन पेशीच (Colitis meaning in Hindi) से रोग समूल नष्ट हो जाता है।
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- वत्सकादी चूर्ण -5 gm दिन मे 3 बार
- बिलवादी चूर्ण-5 gm दिन मे 3 बार
- कुटाजरिष्ट-10 ml दिन मे दो बार
- कुटज कंपोउंड– 2 tab दिन मे दो बार
- चित्रकादी वटी-2 tab दिन मे दो बार
- पंचामृत पर्पटी -1 tab दिन मे दो बार
- Bilagyl – 1 चमच दिन मे दो बार
- MEBERID Cap -2 tab दिन मे दो बार