अतिसार (Dysentery meaning in Hindi)
रोग परिचय
गुदामार्ग से जलबहुल मल का बार-बार परित्याग होना अतिसार कहलाता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस रोग को डायरिया (Diarrhoea) कहते हैं। अतिसार( Dysentery meaning in Hindi) उदर-विकार का ही एक उपसर्ग है। इसका मूल कारण खान-पान की गड़बड़ी है, जिसके फलस्वरूप बार-बार मल निस्सरण होता है। पतले आमयुक्त, झागदार अथवा नितांत पानी जैसे दस्त होने लगते हैं। पेट में गुड़गुड़ाहट बनी रहती है। अतिसार( Dysentery meaning in Hindi)इसे आयुर्वेद मे प्रवाहिका कहा गया है।

भूख नहीं रहती, प्यास कभी अधिक लगती है, कभी नहीं लगती है।
अतिसार एक भयंकर कष्टदायक रोग है, इस रोग के चलते रोगी को जल्दी-जल्दी शौच जाना पड़ता है, जिसके फलस्वरूप वह इतना दुर्बल हो जाता है कि बिस्तर से उठना भी उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। रोग की तीव्रावस्था में अतिसार मे (Dysentery meaning in Hind)उचित समय पर उपचार न करने से रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
अतिसार (Dysentery meaning in Hindi) के कारण –
- दूषित जल, प्रकृति विरुद्ध अर्थात् बासी, दूषित और असंतुलित भोजन करने से।
- प्रातः खाली पेट जल, चाय अथवा बिसकिट आदि लेने से।
- भय एवं शोक आदि मानसिक उद्वेगों के कारण (भय एवं शोकज अतिसार)
- ग्रहणीशोथ तथा वृहदांत्रशोथ आदि मुख रोगों के उपद्रव स्वरूप ।
- अति गुरु, स्निग्ध, अति द्रव सेवन, अति शीतल पदार्थों के सेवन से ।
- स्नेह, स्वेदन, वमन, विरेचन आदि क्रियाओं का अतियोग होने पर अतिसार हो जाता है। • ऋतु परिवर्तन, दूषित हवा से ।
- गर्मी के दिनों में धूप में कहीं बाहर निकलने पर लू लग जाने से, सड़ा हुआ, बासी, औसा हुआ या बहुत अधिक पका हुआ अन्न, फल, मांस, मछली, अथवा साग-भाजी खाने में आ जाने पर । • बिना भूख के खाते रहने से (बार-बार ) ।
- टाइफायड, आंत्रक्षय (आँतों की टी. बी.) तथा हैजा जैसे रोगों में रोग के सूचक लक्षण के रूप में। कुछ अन्य कारण भी-
- कोई अखाद्य पदार्थ खा लेने, आहार के साथ कोई मक्खी या जीव-जन्तु निगल लेने, भोजन के साथ कोई जहरीला तत्त्व पेट में पहुँच जाने पर भी दस्त प्रारंभ हो जाते हैं।
- किसी औषधि का सेवन किया जाए और वह अनुकूल न पड़े तो भी दस्त प्रारंभ हो जाते हैं। 3. कभी-कभी पहाड़ी प्रदेशों में प्रवास के दौरान हिल डायरिया (Hill diarrhoea) भी होते देखे जाता है।
- आंत्र सम्बन्धी संक्रमण (Intestinal infectious disease), वायरल इंटेराइटिस, अमीबियासिस की स्थिति में रोगी को दस्त आने लगते हैं। क्रोनिक अल्सरेटिव कोलाइटिस भी इसका एक कारण माना जाता है।
- पाचन क्रिया की गड़बड़ी, पेट में कृमिविकार (Worms infestation), यकृत की क्रिया ठीक न होना, जुलाब लेना (Purgation) आदि कारणों से भी अतिसार हो जाया करता है। आयुर्वेद में तो वेग विधारण को भी अतिसार का एक कारण माना गया है।
- यूरीमिया, अबटु अतिक्रियता (Hyperthyroidism) ओर पूतिजीवरक्तवा (सेप्टीसीमिया) आदि रोगों में रासायनिक प्रक्रिया से अतिसार होता है।
- आँत के कैंसर में भी अतिसार होता है।
- पैत्तिकनाल व्रण (Fistula between biliary and intestinal tracts) होने पर मल पतला होकर बार-बार होता है।

अतिसार (Dysentery meaning in Hindi )प्रायः आमाशय से संबंधित विकृतियों के परिणामस्वरूप होता है, जैसे- आमाशयिक रसों का कम या बिलकुल न बनना एवं जठर-ग्रहणी सम्मिलन (Gastro-jejunos- tomy) नामक शल्यकर्म के बाद अतिसार होता है। क्योंकि मुक्त आहार भली प्रकार न पचकर शीघ्र ही आँतों में पहुँच जाता है।
नोट- अतिसार उत्पन्न करने वाले कारणों में गुरु, उष्ण, रूक्ष आहार, अतिसार के सबसे बड़े कारण हैं।
याद रहे—नाक, गला, दाँत आदि के संक्रमण से या अल्प तीव्र आंत्रपुच्छशोथ से भी अतिसार हो जाता है, क्योंकि इससे संक्रमण आँतों तक आसानी से पहुँच जाता है।
अतिसार (Dysentery meaning in Hindi) के लक्षण –
लक्षण-प्रायः अतिसार(Dysentery meaning in Hindi ) का प्रमुख लक्षण यही होता है कि रोगी को पतले मल को त्यागने के लिए बार-बार जाना पड़ता है। यह पाचन तंत्रों में गड़बड़ी से उत्पन्न होता है। इस रोग में सर्वप्रथम नाभि के आस-पास दर्द और पेट में मरोड़ होता है। पेट गुड़गुड़ाता है, पाखना थोड़ा और कभी-कभी अधिक परिणाम में पानी की तरह पतला दुर्गंधयुक्त होता है। पाखाना बंधकर नहीं आता।
रोगी को जो बार-बार दस्त आते हैं वह खलबलाहट या गुड़गुड़ाहट की आवाज के साथ होते हैं। दस्त में पानी अधिक और मल कम होता है। कभी-कभी उसमें गठीला मल गिरता है या उसमें अपक्व आहार द्रव्य होते हैं। इन सारे लक्षणों के अतिरिक्त अतिसार का एक विशिष्ट लक्षण यह है कि अपान वायु निकलने के समय उसके साथ मल भी बाहर आ जाता है।
यदि अतिसार( Dysentery meaning in Hindi ) का कारण छोटी आंत्र का कोई विकार होता है, तो वेदना अवश्य होती है। तीव्र अतिसार की स्थिति में उदर के सारे अधोभाग में शौच जाने से कफतीव्र अतिसार की स्थिति में उदर के सारे अधोभाग में शौच जाने से ही समय पूर्व, वेदना और बेचैनी होती है। उदर कठोर तथा स्पर्शासहिष्णु होता है। कभी-कभी उदर में तीव्र वेदना होती है, जो मलत्याग या अधोवायु (फ्लेटस) के निकल जाने के पश्चात् शान्त हो जाती है। बड़ी मात्रा में पानी जैसा पतला दस्त आने पर रोगी को थकान बेहोशी हो सकती है। साथ में पसीना आ जाना, हाथ-पैरों का ठंडा होना एवं कभी-कभी मूर्च्छा भी हो सकती हैं।
अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) के तीव्र आक्रमण में एवं दीर्घ स्थायी जीर्ण अतिसार (Persistent Chronic Diarrhoea) में रोगी के शरीर का भार घट जाता है। कभी-कभी अत्यंत कृशता आ जाती है। रोगी की आँखें धंस जाती हैं। अतिसार में बार-बार शौच (पाखाना) जाने से, शरीर का पानी (जलयांश) मल के रास्ते बाहर निकल जाने या कम हो जाने से शरीर में अशक्ति आ जाती है। पैरों में दर्द होता है, सिर चकराता है, बराबर लेटे रहने को जी चाहता है।
अतिसार (Dysentery meaning in Hindi) की चिकित्सा –
अतिसार (best ayurvedic treatment for dysentery) उपचार- अतिसार ठीक हो जाने वाला रोग है, पर सावधानीपूर्वक पूरे समय तक इलाज कराना चाहिए। अतिसार की असाध्यावस्था होने से पूर्व ही चिकित्सा व्यवस्था कर लेनी चाहिए और चिकित्साक्रम भी यह होना चाहिए कि जिस दोष की प्रधानता हो उसका उपचार सर्वप्रथम करना चाहिए तथा उपशय हेतु एवं दोष आदि की जानकारी भी प्राप्त कर लेना आवश्यक है।
यदि दस्त शुरु हो जाएँ, तो उन्हें एकदम नहीं रोकना चाहिए। मुख्य रूप से दस्त अपच (Indigestion) के कारण हुआ करते हैं। उनसे पाचनतंत्र और शरीर की शुद्धि ही होती है। दस्त होने पर उसे रोकने वाली औषधियाँ लेने के बजाय पाचन को दुरुस्त करने वाली औषधियाँ लेनी चाहिए, ताकि अवशिष्ट आहार पच जाए ओर दस्त बँधकर आने लगे। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि दस्त को रोका ही न जाए।
अत्यधिक दस्त आने से कमजोरी आ जाती है। इसलिए इसके पहले ही उसका उपाय करना चाहिए। अन्यथा डिहाइड्रेशन होने से रोगी की जान जोखिम में पड़ सकती है।
दस्त लगने पर खाना बंद कर देना चाहिए ओर जब तक दस्त बंद न हो जाएँ और भूख खुलकर न लगने लगे, खाने को नहीं देना चाहिए।

यदिअतिसार (Dysentery meaning in Hindi) मे रोगी को प्यास लगे और दुर्बलता का अनुभव हो, उसका मन कुछ खाने को चाहे, तो नमक मिला पानी देने से रोगी को डिहाइड्रेशन से बचायेगा। नींबू और ग्लूकोज वाला पानी भी दिया जा सकता है। पानी में शहद मिलाकर रोगी को देने से उसे आवश्यक पोषण मिल जाता है। इस अवस्था में रोगियों को इलेक्ट्राल पाउडर (Electral powder) और नार्मल सैलाइन की आवश्यकता होती है। डिहाइड्रेशन की अवस्था में रोगी को पर्याप्त मात्रा में इलेक्ट्राल पाउडर मुख द्वारा तथा शिरा द्वारा नार्मल सैलाइन देना चाहिए।
यदि अतिसार (Dysentery meaning in Hindi)भूख लगे और कुछ खाना ही हो तो घी या तेल में छौंके हुए नमकीन मुरमुरे या लाई खाई जा सकती है। दूध में आधा पानी डालकर अदरक, सौठ वाला कम शक्कर का काढ़ा दिया जा सकता है। एक पापड़ जैसी पतली रोटी सिकी हुई ली जा सकती है। दस्त बंद हो जाने के बाद भी थोड़े दिनों तक केवल हलका आहार ही लेना चाहिए, ताकि फिर से दस्त होने की संभावना न रहे।
यदि मौके पर ‘सैलाइन’ उपलब्ध न हो सके तो ‘जीवन रक्षक’ घोल स्वयं बनाकर रोगी को मुख द्वारा पिलाएँ।
इस घोल को निम्न प्रकार से बनाएँ- नमक 1 छोटा चाय का चम्मच, सोडा बाईकार्ब 1 छोटा चाय चम्मच, पोटैशियम साइट्रेट 1 चाय चम्मच, ग्लूकोज 2 बड़े चम्मच, पानी उबालकर ठंडा किया हुआ 1 लीटर लेंमात्रा-100-200 एम. एल. प्रति घण्टे के हिसाब से देते रहे। जब तक रोगी संतोषजनक मूत्रत्याग न करने लगे। मूत्रत्याग के बाद यह मात्रा पिलाते रहना चाहिए। शरीर में पानी की कमी ‘नारियल पानी’ से भी पूरी की जा सकती है।
- ठंडे किए हुए शुद्ध पानी में ‘इलेक्ट्राल पाउडर 2 चम्मच घोलकर आवश्यकतानुसार हर एक घण्टे के पश्चात् पिलाया जा सकता है।
अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) के साथ यदि उलटियाँ भी आने लगें, तो यह एक खतरे की निशानी है। अतः इसकी तुरन्त व्यवस्था करनी चाहिए। इसके लिए नार्मल सैलाइन , RL , 5% ग्लूकोज तब तक अनवरत जारी रखना चाहिए जब तक रोगी के मूत्र की मात्रा सही न हो जाए ।
यदि रोगी की आँखें अन्दर को धँस गई हों, बेजान-सी दीख रही हों, नाड़ी की चाल धीमी हो गई हो, रक्तचाप (Blood Pressure.) बराबर गिरता जा रहा हो, हृदय की धड़कन मंद पड़ गई हो, तो उपरोक्त तरल की गति 20 से 50 एम. एल. प्रति मिनट कर दें। तत्पश्चात् जब रोगी का मूत्र उतर आए, नेत्र, हृदय गति, नाड़ी की चाल तथा बी.पी. सामान्य हो जाए तब ड्रिप गति में क्रमशः कमी करते चले जाएँ ।
नोट- • प्राय रोगी को 5-6 लीटर तरल की आवश्यकता होती है। पर ध्यान रहे, यह कमी पूरी हो जाने के बाद भी शरीर में संतुलन कायम रखने के लिए प्रति घंटा 1-2 लीटर तरल फिर भी दिया जा सकता है। अन्त में तरल चढ़ाना बन्द कर दें। - नए अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) में साबूदाना दें। अनार का रस, संतरे का या मौसमी का रस मिल जायकर3 am है। दूध बिलकुल न दें। पुरानी मूँग की दाल की पतली खिचड़ी या साबदाना दें।
- सुबह-शाम रोगी को टहलने का निर्देश दें । खट्टे पदार्थ है। दूध बिलकुल न दें। पुरानी मूंग की दाल की पतली खिचड़ी या साबूदाना दें। गर्म जल में तौलियाँ
- खाने को न दें। दही की नमकीन लस्सी पीने से प्यास कम होती है।
- अतिसार / दस्त आने की अनुभूत चिकित्सिा-(ayurvedic treatment for dysentery & home remedies for diarrhea and dysentery)-
- सोंठ, अजमोद, मोचरस, धातकी पुष्प अथवा अनारदाना, सौंफ, जीरा और धनियाँ बराबर की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएँ। इसमें से 3 ग्राम की मात्रा में चूर्ण को छाछ के साथ सेवन करने से अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) मे लाभ होता है।
- कूट, पाठा, वच, नागरमोथा, चित्रक व कुटकी-इन सबको बराबर मात्रा में कूट-पीसकर रख लें। 3 ग्राम चूर्ण जल के साथ लेने पर शीघ्र लाभ होता है।
- यदि अतिसार में रक्त आ रहा हो, तो कुटज की छाल 10 ग्राम, कच्चे अनार के छिलके 10 ग्राम-इनको लेकर पानी में उबालकर पकाएँ। एक भाग शेष रह जाने पर शहद मिलाकर सेवन करने से उग्र स्वरूप का अतिसार (Dysentery meaning in Hindi)शीघ्र नष्ट होता है।
- आक की जड़ की छाल 12 ग्राम, कालीमिर्च 12 ग्राम-इनको लेकर बारीक पीस लें और चने के बराबर गोलियाँ बना लें। 2-2 गोली अर्क सौंफ के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से अतिसार ठीक हो जाता है। यहाँ तक कि हैजे का मरणासन्न रोगी भी स्वस्थ हो जाता है।
- कर्पूर 1 भाग, तेजाब गंधक 1 भाग, नौशादार 4 भाग, पिपरमेंट 1 भाग, चंदन तेल 2 भाग, इलायची का तेल 2 भाग,
- बेलगिरी सूखी 50 ग्राम, सफेद कत्था 20 ग्राम लेकर बारीक पीस लें। तत्पश्चात् इसमें 100 ग्राम मिश्री मिला लें। इसे 1 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन कराने से अतिसार में लाभ होता है।
- वंशलोचन, छोटी इलायची, सूखे आँवले तथा धनियाँ-सभी समान मात्रा में मिला लें। तत्पश्चात् इन सभी औषधियों के वजन के बराबर मिश्री मिला लें। इसमें से 6-6 ग्राम की मात्रा दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन कराने से हर प्रकार के अतिसार( Dysentery meaning in Hindi)में शीघ्र लाभ होता है। 9. कुटज छाल 4 भाग, छोटी इलायची 1 भाग, इन सबको कूट-पीसकर रख लें। मात्रा-प्रातः सायं 1-1 ग्राम जल या मट्ठे के साथ ।
- अतिसारांतक कैप्सूल 1 (ज्वाला आ. भ.), चित्रकादि बटी 1 गोली, आनंद भैरव रस 1 गोली-इन सबकी 1 मात्रा बना लें। ऐसी 1-1 मात्रा दिन में 3 बार 20 मि.ली. कुटरानिष्ट के साथ दें। रोगी को पतली खिचड़ी दें। नवीन अतिसार 10 दिन में एवं पुराना अतिसार 1 माह में ठीक हो जाता है। अतिसार (Dysentery meaning in Hindi) चिकित्सा अवधि में खटाई, मिठाई, गरम मसाला, चाट पकौड़ी, अचार, घी व तेल से बने पकवान सेवन न करें।
- नागरमोथा, श्योनाक की छाल, धाय के फूल, मोचरस, बेलगिरी, इंद्रजव, पठानी लोंध, आम की गुठली, देशी रार, हरड़ की छाल, भुनी भांग, सोंठ, कूड़े की छाल, सिंहजराव 100-100 ग्राम लेकर कूट-छानकर रख लें।
मात्रा-1 से 3 ग्राम तक दिन में 3 बार शक्कर मिलाकर ताजे पानी या मट्ठे के साथ लें । 12. इमली के बीज भाड़ में भुनाकर गरम-गरम लाकर पानी में डाल दें। 4-5 घण्टे बाद ऊपर का बकला निकाल कर गीला ही कूटकर चलनी में छान लें और सुखाकर रख लें। मात्रा-6 ग्राम चूर्ण शक्कर के साथ फाँकने से आमातिसार(Dysentery meaning in Hindi) व रक्तातिसार दूर हो जाता है। दिनभर में 4 मात्रा हर 3 घण्टे पर दें। - धनिया, नागरमोथा, वरिपारा की जड़, बेलगिरी, सोंठ प्रतयेक 12-12 ग्राम-इन सबको कूटकरआधा किलो पानी में पकावें । 250 ग्राम शेष रहने पर उतारकर छान लें। बताशा डालकर सुबह शाम पिएँ, तो ग्रीष्मजन्य अतिसार (Summer diarrhoea) नष्ट होता है।
- जलकुंभी, तालमखाना, इसबगोल की भूसी, मरोडफली-सब समान भाग लेकर पीस लें। 6 ग्राम जल के साथ लेने पर अतिसार नष्ट होता है। साथ ही पेट की ऐंठन में तत्काल लाभ मिलता
है । - रक्तातिसार(Dysentery meaning in Hindi) में जब किसी औषधि से काम न चले, तो आम की पत्ती, जामुन एवं बबूल की पत्ती, कैथ की पत्ती, बेल की पत्ती, इमली की पत्ती-इन सबको थोड़ी-थोड़ी लेकर सिल पर पीसकर पानी डालकर घोलें ओर बकरी का कच्चा दूध तथा शक्कर डालकर सुबह-शाम पिलाएँ अवश्य लाभ होगा।
- बेल का गूदा, धाय के फूल, नागरमोथा, पठानी लोंध, छोटी पीपल-इन सबका काढ़ा बनाकर शहद डालकर पिलाने से बालातिसार (बच्चों के दस्त) दूर होता है।
- इमली के बीच 250 ग्राम लेकर भाड़ में भुना लें। तत्पश्चात् गरम-गरम बाल्टी में डालकर 4-5 लोटा पानी डाल दें। दस बारह घण्टे भीगने के बाद इमली के बीजों का लाल छिलका उतारकर फेंक दें और कूट लें, चलनी से छानकर धूप में सुखा लें। इसमें 100 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम सफेद जीरा-इन दोनों को भूनकर पीसकर मिला दें। तत्पश्चात् 1 किलो मिश्री की चासनी बनाकर सब को उस में डालकर 10-10 ग्राम के लड्डू बना लें। 1-1 लड्डू दिन में 3 बार खाने से पुरानी पेचिस तथा आमातिसार(Dysentery meaning in Hindi) में लाभ होता है।
- संग्रहणी नाशक सिद्ध योग-बदबूदार जीर्ण स्वरूप के दस्तों में-बेलगिरी, राई, कत्था, अनार की बकली, कालाजीरा, आम की गुठली, जामुन की कोमल सूखी हुई पत्ती, मोचरस, जायफल, लौंग, अफीम-इन सबका 10-10 ग्राम, शुद्ध भाग 20 ग्राम, देशी कपूर 10 ग्राम, रस सिंदूर 10 ग्राम, पंचामृत पर्पटी 10 ग्राम, शुद्ध अफीम 10 ग्राम, काष्ठ औषधियों को पेचिश तथा सब प्रकार के अतिसार (Dysentery meaning in Hindi) में सद्य लाभकारी है।
- अतिसार (Dysentery meaning in Hindi)दस्तों को प्रबल वेग, पतले दस्त आदि में कर्पूर रस 60 मि.ग्रा., प्रवाल पंचामृत 125 मि.ग्रा.- इन दोनों को मिलाकर शहद के साथ प्रातः सायं सेवन कराएँ ।
- दालचीनी और कत्था 10-10 ग्राम, फिटकरी फुलाई हुई 5 ग्राम इन सबको एक साथ घोंटकर
रख लें।
मात्रा-1/2 चम्मच की मात्रा में दिन में 2-3 बार, पानी के साथ दें। पूर्ण अनुभूत है। इससे अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) में शीघ्र लाभ होता है और पाचन क्रिया सुधरती है। - सूखी बेलगिरी, सौंफ, इसबगोल और शक्कर समान भाग लेकर खरल में भलीभाँति घोंट लें। यह चूर्ण 1/2–1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार जल के साथ सेवन कराएँ। इससे आमातिसार(Dysentery meaning in Hindi) तथा उदर में ऐंठन (मरोड़) आदि में शीघ्र लाभ होता है।
- चिरायता, कुटकी, त्रिकुटा (सौंठ, कालीमिर्च, पीपल), नागरमोथा और इंद्रयव 1-1 भाग, चित्रक 2 भाग तथा कूड़ा की छाल 16 भाग। इन सबको कूट-पीस छानकर मिला लें और गुड़ से बनाए हुए ठंडे शरबत के साथ सेवन करें। मात्रा – 1 से 3 ग्राम तक ।
- बढ़े हुए अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) में जब किसी तरह से दस्त न रुकते हों, तो हल्दी बारीक पीसकर कपड़े से छानकर अग्नि पर भून लें और हल्दी के बराबर काला नमक मिलाएँ। इसे 3-3 ग्राम की मात्रा में ठंडे जल से 4-4 घण्टे पर दें । पूर्ण अनुभूत है ।
- पाठा ,लोध्र ,दरूहरिद्रा ,घातकी ,जातिफल यह द्रव्यों के समभाग चूर्ण 5 mg दिन मे से 3 बार नींबू सरबत के साथ ले , यह बहोत उपयुक्त योग है
अतिसार के जैसे ही अन्य बीमारियों के बारे मे पढ़ने के लिए यंहा क्लिक कीजिए –https://enlightayurveda.com/
अतिसार(Dysentery meaning in Hindi) मे बताए गए कुछ आयुर्वेदिक कल्पों के बारे मे जानिए(dysentery ayurvedic medicine)
- TAB AMOEBICA – 2 Tab दिन मे से दो बार
- BILAGYL – 2 चमच दिन मे से दो बार
- SYRUP कूटजरिष्ट– 10 ml दिन मे से दो बार
- कुटज घन वटी – 2 Tab दिन मे से दो बार
- कुटज पर्पटी वटी– 2 Tab दिन मे से दो बार
- Atisarhar वटी ( sri sri फार्मा )- 2 Tab दिन मे से दो बार
- Gangadhar ras– 2 Tab दिन मे से दो बार
- तकरारिष्ट-10 ml दिन मे से दो बार
- बिलवादी चूर्ण-10 gm दिन मे से बार
- चित्रकादी वटी– 2 Tab दिन मे से दो बार
- Gangadhar Churna Vrihat-10 gm दिन मे दो बार
आपके बीमारियों के बारे मे परामर्श करने के लिए कॉल या whatsup करे –9860969525.