
आज के समय में बदलती जीवनशैली, असंतुलित आहार और बढ़ती मानसिक व शारीरिक तनाव की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएँ उभर रही हैं। इन्हीं में से एक आम लेकिन बेहद पीड़ादायक स्थिति है — फिशर (Anal Fissure)। आम भाषा में फिशर को गुदा मार्ग में दरार या चीरा कहा जाता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें गुदा द्वार (Anus) की त्वचा में छोटा या कभी-कभी गहरा कट या फटाव हो जाता है, जो शौच के दौरान या बाद में तेज दर्द, जलन और रक्तस्राव का कारण बनता है।
फिशर कोई संक्रामक रोग नहीं है, लेकिन इसकी वजह से होने वाला दर्द और असुविधा व्यक्ति के दैनिक जीवन को काफी प्रभावित कर सकती है। शिशुओं, छोटे बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों — सभी आयु वर्ग के लोगों में यह समस्या देखी जा सकती है, लेकिन यह खासकर उन लोगों में अधिक पाई जाती है जो बार-बार कब्ज़ (Constipation) या दस्त (Diarrhea) से पीड़ित रहते हैं।
फिशर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं —
- तीव्र (Acute) फिशर : यह अचानक होता है और उचित देखभाल के साथ कुछ दिनों या हफ्तों में ठीक हो सकता है।
- दीर्घकालिक (Chronic) फिशर : यदि फिशर छह सप्ताह से अधिक समय तक बना रहे, तो उसे पुराना फिशर कहा जाता है, जिसमें अक्सर ऊतक (fibrous tissue) बन जाते हैं और इलाज में अधिक समय लगता है।
फिशर की शुरुआत अक्सर मलत्याग के दौरान अत्यधिक दबाव या कठोर मल के निकलने से होती है, जिससे गुदा द्वार की कोमल त्वचा फट जाती है। समय के साथ यदि मल त्याग में कठिनाई बनी रहे तो घाव गहरा होता जाता है और स्थिति जटिल हो सकती है।
यह समस्या न केवल शारीरिक पीड़ा देती है बल्कि मानसिक तनाव, शर्मिंदगी और सामाजिक जीवन में झिझक का कारण भी बन सकती है। कई लोग शर्म के कारण इसके लक्षणों को छिपाते हैं और डॉक्टर से सलाह लेने में देर कर देते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, उचित आहार लेना, पानी का पर्याप्त सेवन करना और नियमित व्यायाम करना फिशर से बचाव के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। समय पर निदान और सही उपचार से इस तकलीफदेह समस्या से राहत पाना संभव है।
फिशर के कारण : विस्तृत जानकारी

फिशर, यानी गुदा द्वार की त्वचा में दरार या चीरा, कई कारणों से हो सकता है। यह मुख्यतः तब होता है जब गुदा क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ता है या वहां की त्वचा को क्षति पहुँचती है। नीचे फिशर के प्रमुख कारणों को विस्तार से समझाया गया है:
1. कब्ज़ (Constipation)
फिशर का सबसे सामान्य और प्रमुख कारण कब्ज़ है। जब मल कठोर और बड़ा हो जाता है, तो उसे बाहर निकालने के लिए अधिक जोर लगाना पड़ता है। यह जोर गुदा द्वार की नाजुक त्वचा पर दबाव डालता है, जिससे उसमें कटाव हो सकता है। लगातार कब्ज़ रहने से घाव भरने का समय भी बढ़ जाता है, जिससे समस्या दीर्घकालिक हो सकती है।
2. अतिसार (Diarrhea)
जहाँ कब्ज़ फिशर का मुख्य कारण है, वहीं लंबे समय तक दस्त (बार-बार पतला मल आना) भी फिशर का कारण बन सकता है। लगातार शौच करने से गुदा क्षेत्र में जलन और सूजन हो जाती है, जिससे त्वचा कमजोर होकर फट सकती है।
3. मलत्याग के समय अत्यधिक दबाव डालना
कुछ लोग शौच करते समय अनावश्यक रूप से अधिक बल लगाते हैं। यह बल गुदा द्वार की त्वचा पर अत्यधिक तनाव डालता है और उसे फाड़ सकता है, जिससे फिशर उत्पन्न हो सकता है। यह स्थिति विशेषकर तब होती है जब मल सख्त होता है या मल त्याग में कठिनाई होती है।
4. कम फाइबर युक्त आहार
यदि भोजन में फाइबर की मात्रा कम हो, तो मल सख्त हो जाता है और कब्ज़ की समस्या बढ़ जाती है। कम फाइबर वाला आहार मल को भारी और कठोर बनाता है, जिससे फिशर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
5. पानी की कमी (Dehydration)
शरीर में पानी की कमी से भी मल सख्त हो जाता है। पर्याप्त पानी न पीने से शरीर मल में से पानी सोख लेता है, जिससे वह सूखकर कठिन और निकास में कठिन हो जाता है, और इस कठिनाई के कारण गुदा द्वार पर कटाव हो सकता है।
6. गर्भावस्था और प्रसव
गर्भावस्था के अंतिम चरणों में और प्रसव के दौरान, श्रोणि (pelvic) क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। इस दौरान महिलाओं में फिशर बनने की संभावना बढ़ जाती है, विशेष रूप से यदि प्रसव के दौरान गुदा क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव पड़ा हो।
7. अत्यधिक बैठना या शारीरिक गतिविधि की कमी
जो लोग लंबे समय तक बैठे रहते हैं, जैसे ऑफिस वर्कर्स या ड्राइवर, उनमें भी गुदा क्षेत्र पर लगातार दबाव पड़ता है। इससे रक्त संचार प्रभावित होता है और गुदा क्षेत्र की त्वचा कमजोर होकर कटने की आशंका बढ़ जाती है।
8. गुदा क्षेत्र की चोट या आघात
कभी-कभी किसी दुर्घटना, सर्जरी या गुदा में अन्य चिकित्सीय प्रक्रियाओं के कारण गुदा द्वार की त्वचा में चोट लग सकती है, जिससे फिशर विकसित हो सकता है।
9. बच्चों में फिशर
छोटे बच्चों में भी कब्ज़ के कारण फिशर आम होता है। वे मल त्याग से डरने लगते हैं क्योंकि दर्द होता है, और मल को रोकने की कोशिश करते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है।
10. अन्य बीमारियाँ
कुछ विशेष स्वास्थ्य स्थितियाँ जैसे कि क्रोहन डिज़ीज़ (Crohn’s disease), अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis), टीबी (Tuberculosis) या एचआईवी संक्रमण (HIV Infection) भी गुदा क्षेत्र में फिशर बनने का जोखिम बढ़ा सकती हैं। ये रोग गुदा नली की सूजन और अल्सर का कारण बन सकते हैं, जिससे त्वचा फटने की संभावना रहती है।
निष्कर्ष
फिशर का मुख्य कारण गुदा क्षेत्र में अत्यधिक तनाव या त्वचा की क्षति है, लेकिन इसकी उत्पत्ति कई शारीरिक, आहार संबंधी और जीवनशैली से जुड़ी आदतों पर निर्भर करती है। यदि इन कारणों को समय पर पहचाना जाए और जीवनशैली में उचित बदलाव किए जाएं, तो फिशर जैसी समस्या से बचाव संभव है।
फिशर के लक्षण (Symptoms) : विस्तृत जानकारी
फिशर, यानी गुदा द्वार (Anus) की त्वचा में दरार या चीरा, अपने साथ कई असहज और पीड़ादायक लक्षण लेकर आता है। इसकी पहचान समय रहते करना बेहद ज़रूरी है ताकि उचित उपचार शुरू किया जा सके और स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सके। आइए फिशर के लक्षणों को विस्तार से समझें:
- 1. मलत्याग के समय तीव्र दर्द
- फिशर का सबसे आम और प्रमुख लक्षण शौच के दौरान असहनीय दर्द होना है।
- यह दर्द आमतौर पर बहुत तेज और चुभने जैसा महसूस होता है।
- दर्द शौच करते समय शुरू होता है और मलत्याग के बाद भी कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक बना रह सकता है।
- कई मरीज़ इस दर्द के डर से मल को रोकने लगते हैं, जिससे कब्ज़ और फिशर की समस्या और बढ़ जाती है।
- 2. मलत्याग के बाद रक्तस्राव (Bleeding)
- फिशर की वजह से मलत्याग के समय हल्का रक्तस्राव होना आम है।
- खून आमतौर पर ताजा, चमकदार लाल रंग का होता है।
- खून मल के ऊपर लगा हो सकता है या टॉयलेट पेपर पर दिखाई दे सकता है।
- 3. गुदा क्षेत्र में जलन और खुजली
- फिशर के कारण गुदा द्वार में लगातार जलन या जलती हुई अनुभूति हो सकती है।
- कभी-कभी घाव के आसपास खुजली भी महसूस होती है, जो त्वचा में सूजन और जलन के कारण होती है।
- 4. गुदा क्षेत्र में सूजन और कोमलता
- फिशर होने पर गुदा द्वार के आसपास सूजन आ सकती है।
- हल्का-सा स्पर्श भी दर्दनाक हो सकता है।
- कई बार फिशर के पास एक छोटा, कठोर गाठनुमा उभार (Sentinel Pile) भी बन सकता है, जो पुराने (Chronic) फिशर का संकेत हो सकता है।
- 5. शौच के समय डर और तनाव
- लगातार दर्द के अनुभव से व्यक्ति मानसिक रूप से भयभीत हो सकता है।
- मरीज़ मलत्याग से बचने की कोशिश करते हैं, जिससे कब्ज़ और फिशर की स्थिति और गंभीर हो जाती है।
- यह चक्र (दर्द ➔ मल रोका ➔ कब्ज़ ➔ और अधिक दर्द) फिशर को लंबे समय तक ठीक नहीं होने देता।
- 6. गुदा द्वार पर दिखाई देने वाला छोटा चीरा या कट
- अगर फिशर बाहरी गुदा क्षेत्र में स्थित हो, तो डॉक्टर या कभी-कभी स्वयं भी गुदा द्वार के पास एक छोटा, पतला कट या दरार देखा जा सकता है।
- यह कट आमतौर पर सीधा या रेखीय होता है और छूने पर अत्यधिक संवेदनशील होता है।
- 7. पस (Pus) या संक्रमण के लक्षण (कम मामलों में)
- यदि फिशर संक्रमित हो जाए, तो गुदा क्षेत्र से पस निकल सकता है।
- इसके साथ बुखार, अधिक दर्द और गुदा क्षेत्र में अधिक सूजन जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
- ऐसे मामलों में चिकित्सकीय हस्तक्षेप ज़रूरी हो जाता है।
- फिशर के लक्षणों का प्रभाव
- फिशर के लक्षण न केवल शारीरिक कष्ट देते हैं, बल्कि मानसिक तनाव और जीवन की गुणवत्ता पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो फिशर पुराना बन सकता है, जिससे इलाज लंबा और जटिल हो सकता है। इसलिए, जैसे ही इन लक्षणों का अनुभव हो, तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना उचित होता है।
फिशर के लिए 30 प्रभावी घरेलू उपचार (Home Remedies in Detail)

1. गुनगुने पानी में बैठना (Sitz Bath)
दिन में 2-3 बार गुनगुने पानी में 10-15 मिनट तक बैठें। इससे दर्द, सूजन और खुजली कम होती है तथा घाव जल्दी भरने लगता है।
2. फाइबर युक्त आहार लेना
फल, सब्ज़ी, साबुत अनाज, दालें जैसे रेशेदार चीजें खाने से मल नरम होता है और कब्ज़ से राहत मिलती है, जिससे फिशर जल्दी ठीक होता है।
3. पर्याप्त पानी पीना
दिन भर में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना मल को नरम रखता है और मलत्याग को आसान बनाता है।
4. नारियल तेल लगाना
नारियल तेल में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और मॉइस्चराइजिंग गुण होते हैं। प्रभावित स्थान पर हल्के हाथों से लगाने से घाव तेजी से भरता है।
5. एलोवेरा जेल का प्रयोग
एलोवेरा की ताजा जेल गुदा द्वार पर लगाने से जलन, सूजन और दर्द में तुरंत राहत मिलती है।
6. त्रिफला चूर्ण का सेवन
रात को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेने से कब्ज़ में राहत मिलती है और फिशर तेजी से ठीक होता है।
7. घी का सेवन और उपयोग
एक चम्मच शुद्ध देसी घी खाने में शामिल करें या गुदा क्षेत्र में हल्के से लगाएं, इससे चिकनाहट बढ़ती है और मलत्याग आसान होता है।
8. नीम तेल लगाना
नीम में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। नीम का तेल लगाने से संक्रमण से बचाव होता है और घाव जल्दी ठीक होता है।
9. दही का सेवन
दही में मौजूद प्रोबायोटिक्स पाचन तंत्र को बेहतर बनाते हैं, कब्ज़ को दूर रखते हैं और फिशर के उपचार में सहायक होते हैं।
11. हल्दी दूध पीना
रात में हल्दी मिलाकर गुनगुना दूध पीने से शरीर में सूजन कम होती है और घाव जल्दी भरता है।
12. अरंडी का तेल (Castor Oil)
एक चम्मच अरंडी का तेल रोज़ पीने से कब्ज़ में राहत मिलती है और मलत्याग आसान हो जाता है।
13. बथुआ (Chenopodium) का सेवन
बथुआ के पत्तों का साग कब्ज़ को दूर करता है और फिशर के उपचार में सहायक होता है।
14. फ्लैक्ससीड (अलसी) का सेवन
अलसी के बीज में घुलनशील फाइबर भरपूर होता है। एक चम्मच पिसी हुई अलसी गुनगुने पानी के साथ लेना मल को नरम बनाता है।
15. शुद्ध बादाम तेल का प्रयोग
बादाम तेल गुदा द्वार पर लगाने से त्वचा को नमी मिलती है और दरार जल्दी भरती है।
16. गुड़ का सेवन
थोड़ी मात्रा में गुड़ खाने से पाचन बेहतर होता है और कब्ज़ में राहत मिलती है।
17. पपीते का सेवन
पपीते में प्राकृतिक एंजाइम होते हैं जो पाचन में सहायक हैं और मल को नरम बनाते हैं।
18. अंजीर (सूखे या ताजे) का सेवन
रात भर भीगे हुए अंजीर सुबह खाने से कब्ज़ में राहत मिलती है, जिससे फिशर में तेजी से सुधार होता है।
19. घरेलू जड़ी-बूटियों का उपयोग
हरड़, बेहड़ा और आंवला (त्रिफला) का सेवन कब्ज़ को दूर करता है और मलत्याग को आसान बनाता है।
20. नींबू पानी पीना
सुबह खाली पेट गुनगुने पानी में नींबू का रस डालकर पीने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है और कब्ज़ नहीं होता।
21. दालचीनी का सेवन
हल्की मात्रा में दालचीनी को चाय या भोजन में शामिल करने से पाचन बेहतर होता है।
22. कद्दू का सेवन
कद्दू में उच्च मात्रा में फाइबर होता है, जो मल को मुलायम बनाने में सहायक है।
23. एलोवेरा जूस पीना
रोज सुबह खाली पेट थोड़ा एलोवेरा जूस पीने से आंतरिक सूजन कम होती है और मल त्याग आसान होता है।
24. आंवला जूस या चूर्ण
आंवला कब्ज़ को नियंत्रित करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
25. खजूर का सेवन
रात में भीगे हुए 2-3 खजूर खाने से शरीर को प्राकृतिक रूप से फाइबर मिलता है और कब्ज़ नहीं होता।
26. नमक युक्त गुनगुने पानी से स्नान
गुनगुने पानी में थोड़ा सा सेंधा नमक डालकर स्नान करने से सूजन कम होती है और आराम मिलता है।
27. चिया सीड्स का सेवन
चिया सीड्स को पानी में भिगोकर खाने से भरपूर फाइबर मिलता है, जो मल को नरम करता है।
28. गुलकंद का सेवन
गुलकंद में ठंडक देने वाले गुण होते हैं, जो पाचन को संतुलित रखते हैं और कब्ज़ से राहत दिलाते हैं।
29. कम मसालेदार भोजन
तेज मसाले और तली-भुनी चीज़ें गुदा क्षेत्र में जलन बढ़ा सकती हैं, इसलिए हल्का, सुपाच्य भोजन करें।
30. तनाव प्रबंधन
ध्यान, प्राणायाम और योग करने से तनाव कम होता है, जो कब्ज़ और पाचन संबंधी समस्याओं को नियंत्रित कर सकता है और अप्रत्यक्ष रूप से फिशर के इलाज में मदद करता है।

निष्कर्ष
फिशर एक कष्टदायक स्थिति हो सकती है, लेकिन सही देखभाल और घरेलू उपचारों से इसे बिना दवाइयों के भी काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। यदि नियमित घरेलू उपायों के बावजूद लक्षण बने रहें या बिगड़ने लगें, तो डॉक्टर से परामर्श लेना ज़रूरी है।
आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। फिशर का इलाज आयुर्वेद में मूल कारण को ठीक करने पर आधारित है — जैसे कब्ज़ (विबंध), पाचन अग्नि की दुर्बलता (मंदाग्नि), और वात दोष का असंतुलन। आयुर्वेद में फिशर को “परिकर्तिका” रोग के अंतर्गत वर्णित किया गया है, जिसका अर्थ है “गुदा में तीव्र कटने वाला दर्द”।
आइए विस्तार से देखें आयुर्वेदिक तरीके:
- 1. त्रिफला चूर्ण (Triphala Churna)
- कैसे उपयोग करें:
रात को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें। - लाभ:
त्रिफला पाचन अग्नि को सुधारता है, मल को नरम करता है और कब्ज़ को जड़ से दूर करता है, जो फिशर के प्रमुख कारणों में से एक है।
- कैसे उपयोग करें:
- 2. गंधक रसायन (Gandhak Rasayan)
- कैसे उपयोग करें:
1-2 गोली दिन में दो बार भोजन के बाद गुनगुने पानी के साथ। - लाभ:
यह औषधि शरीर में संक्रमण को रोकती है, त्वचा के घावों को जल्दी भरने में मदद करती है और सूजन को कम करती है।
- कैसे उपयोग करें:
- 3. अभयारिष्ट (Abhayarishta)
- कैसे उपयोग करें:
15-20 मिलीलीटर अभयारिष्ट को समान मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद लें। - लाभ:
यह पेट साफ करने में मदद करता है और नियमित मलत्याग को बढ़ावा देता है, जिससे फिशर के दर्द से राहत मिलती है।
- कैसे उपयोग करें:
- 4. जात्यादी घृत (Jatyadi Ghrita)
- कैसे उपयोग करें:
प्रभावित स्थान पर दिन में दो बार हल्के हाथ से लगाएँ। - लाभ:
यह घी विशेष रूप से घाव भरने, सूजन कम करने और संक्रमण से बचाने में अत्यंत प्रभावी है।
- कैसे उपयोग करें:
- 5. पंचतिक्त घृत (Panchatikta Ghrita)
- कैसे उपयोग करें:
चिकित्सक की सलाह अनुसार मौखिक रूप से सेवन करें। - लाभ:
यह आंतरिक सूजन और वात-पित्त दोष को संतुलित करता है, जिससे फिशर जल्दी भरने लगता है।
- कैसे उपयोग करें:
- 6. सूक्ष्म त्रिफला
- कैसे उपयोग करें:
1-2 गोली भोजन के बाद गुनगुने पानी के साथ। - लाभ:
घावों को सुखाने और नए ऊतक निर्माण को बढ़ावा देने में सहायक है।
- कैसे उपयोग करें:
- 8. स्निग्ध विरेचन (Oleation therapy)
- कैसे करें:
चिकित्सक की देखरेख में औषधीय घी या तेल का सेवन कराया जाता है, जिससे आंतरिक स्निग्धता बढ़ती है। - लाभ:
मल को नरम करता है और मलत्याग को सहज बनाता है।
- कैसे करें:
- 9. बस्ती चिकित्सा (Medicated Enema Therapy)
- कैसे करें:
विशेष औषधीय तेल या काढ़ा गुदा मार्ग से दिया जाता है। - लाभ:
वात दोष को नियंत्रित कर फिशर के दर्द, सूजन और जलन से राहत दिलाता है।
- कैसे करें:
फिशर के लिए आयुर्वेदिक जीवनशैली (Lifestyle Tips in Ayurveda)
- भोजन में संतुलन रखें: हल्का, सुपाच्य भोजन करें। मिर्च-मसालेदार और बासी भोजन से बचें।
- नियमित मलत्याग: समय पर शौच जाएँ, मल को रोकना नहीं चाहिए।
- तनाव कम करें: ध्यान और प्राणायाम से मानसिक तनाव घटाएँ।
- शरीर को सक्रिय रखें: हल्की योगासन जैसे पवनमुक्तासन और भुजंगासन फायदेमंद हैं।
- रात देर तक जागने से बचें: यह पाचन अग्नि को कमजोर कर सकता है।
फिशर की अवस्था यदि तीव्र (Acute) है तो ये उपाय जल्दी राहत दें
आयुर्वेद न केवल फिशर के लक्षणों से राहत देता है, बल्कि शरीर को संतुलित करके समस्या की जड़ से उपचार करता है। प्राकृतिक औषधियाँ और जीवनशैली परिवर्तन मिलकर स्थायी और सुरक्षित समाधान प्रदान करते हैं।
फिशर के लिए आयुर्वेदिक डाइट प्लान (Ayurvedic Diet Plan for Fissure)
फिशर के इलाज में आहार (Diet) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सही भोजन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है, मल को नरम करता है और घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।
सुबह उठते ही
- गुनगुना पानी + 1 चम्मच शहद + नींबू का रस
- 5-6 भीगे हुए काले किशमिश या अंजीर
नाश्ता (Breakfast)
- दलिया (Oats porridge) या मूंग की दाल का चीला
- ताजा फल: पपीता, अमरूद (बीज रहित), या केला
- एक गिलास ताजा निकाला हुआ आंवला या एलोवेरा जूस
दोपहर का भोजन (Lunch)
- खिचड़ी (मूंग दाल और चावल की, हल्की मसाले वाली)
- उबली या भाप में पकी हुई सब्ज़ियाँ: लौकी, तुरई, पालक
- एक चम्मच देसी घी मिलाकर भोजन करें (पाचन अग्नि को संतुलित करता है)
- ताजा छाछ (हल्का सेंधा नमक और भुना जीरा डालकर)
शाम का नाश्ता (Evening Snack)
- भुने हुए चने
- नारियल पानी या हर्बल चाय (त्रिफला या सौंफ की चाय)
रात का भोजन (Dinner)
- हल्की मूंग दाल, साबुत अनाज की रोटी (जैसे ज्वार, बाजरा)
- उबली सब्ज़ियाँ या सूप
- रात को खाने में हल्दी वाला गुनगुना दूध (Golden Milk)
सोने से पहले
- एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ
- या 1 चम्मच घी के साथ गर्म पानी पी सकते हैं (यदि मल बहुत सख्त हो)
आयुर्वेदिक डाइट के अन्य सुझाव:
- भोजन गरम और ताजा खाएँ, बासी या पैकेट वाला भोजन न करें।
- तीखे मिर्च-मसाले, तले-भुने और फास्ट फूड से परहेज करें।
- ज्यादा चाय-कॉफी और शराब के सेवन से बचें।
- धीरे-धीरे चबाकर भोजन करें, जल्दबाज़ी न करें।
- शारीरिक भूख होने पर ही भोजन करें।

फिशर में लाभदायक योगासन (Beneficial Yoga Asanas for Fissure)
योग न केवल शरीर को लचीला बनाता है, बल्कि पाचन तंत्र को मज़बूत करता है, कब्ज़ को दूर करता है और मानसिक तनाव भी घटाता है।
1. पवनमुक्तासन (Pawanmuktasana)
लाभ: गैस, कब्ज़ और मल त्याग की समस्याओं को दूर करता है।
- पीठ के बल लेटकर दोनों घुटनों को मोड़कर छाती से लगाएँ।
- हाथों से घुटनों को पकड़ें और सिर उठाकर घुटनों को छुएँ।
- 20-30 सेकंड तक रोकें, फिर धीरे से छोड़ें।
- 3-5 बार दोहराएं।
2. भुजंगासन (Bhujangasana)
लाभ: पेट और कमर के हिस्से को मजबूत बनाता है, पाचन क्रिया को सुधारता है।
- पेट के बल लेटें, हथेलियों को कंधों के पास रखें।
- सांस भरते हुए सिर और छाती को ऊपर उठाएँ।
- कोहनियों को थोड़ा मोड़कर रखें।
- 15-20 सेकंड होल्ड करें, फिर विश्राम करें।
3. वज्रासन (Vajrasana)
लाभ: भोजन के बाद करने वाला एकमात्र योगासन जो पाचन को सुधारता है।
- भोजन के बाद 5-10 मिनट वज्रासन में बैठें।
- रीढ़ सीधी रखें और गहरी सांस लें।
4. मलासन (Malasana – Garland Pose)
लाभ: मल त्याग को सहज बनाता है और पेल्विक क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ाता है।
- स्क्वॉटिंग पोजीशन में बैठें, दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना मुद्रा बनाएं।
- पीठ सीधी रखें और 30 सेकंड तक रुकें।
5. अनुलोम विलोम प्राणायाम
लाभ: मानसिक तनाव कम करता है, आंतरिक संतुलन लाता है।
- एक नासिका से सांस लें, दूसरी से छोड़ें।
- दिन में 5-10 मिनट तक करें।
विशेष सुझाव:
- योगासन खाली पेट करें या भोजन के 3 घंटे बाद करें।
- ज़ोर-जबर्दस्ती या अत्यधिक बल लगाने वाले आसनों से बचें।
- धीरे-धीरे आसनों की अवधि बढ़ाएँ।
- शुरुआती अवस्था में योग गुरु के मार्गदर्शन में करना बेहतर है।
निष्कर्ष:
आयुर्वेदिक आहार और योग का संयोजन न केवल फिशर जैसी समस्या को ठीक करने में मदद करता है, बल्कि आपके संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। नियमितता, संयम और धैर्य से आप बिना सर्जरी के भी शानदार परिणाम पा सकते हैं। 🌱