मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) रोग परिचय-

आमाशय में जो पाचक पित्त है, उसी में जठराग्नि के मापदंड जाने को ही अग्निमांद्य/भूख न लगना या मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )कहा जाता है। इस रोग में आमाशय एवं आँतों की पाचनशक्ति मंद पड़ जाती है। अग्निमांद्य को सामान्य भाषा में मंदाग्नि व बदहजमी कहते हैं और अंग्रेजी में इसे डिस्पेप्सिया से जाना जाता है।
अग्निमांद्य में अग्निमंद पड़ जाती है, जिससे आहार का पाचन भलीभाँति न होकर नाना प्रकार की आमज व्याधियाँ हो जाती हैं, जिसके कारण भूख नहीं लगती है। अल्प मात्रा में लिया भोजन भी देर से पचता है। साथ ही उदर एवं सिर में भारीपन, कांस- श्वास, लालास्राव, अंगों में वेदना, खट्टी डकारें आना, मुँह का जायका बिगड़ जाना आदि लक्षण होते हैं।
खाया-पिया भोजन आमाशय में पहुँचकर ज्यों का त्यों पड़ा रहता है, वह पचता नहीं है, जिसके कारण रस, रक्त आदि धातुओं का बनना या तो बंद हो जाता है अथवा उसमें कमी आ जाती है। भूख मारी जाती है। मलावरोध होने पर रक्त भी दूषित हो जाता है एवं त्वचा रोगादि जन्म लेते हैं। अग्निमांद्य में अपच हो जाती है। अर्थात् जठराग्नि जब भोजन को ठीक से पचाने में असमर्थ हो जाती है, तब उसे अग्निमांद्य या मंदाग्नि (Loss of appetite) कहते हैं।
मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )कारण (loss of appetite causes)-
- अधिक पानी पीने, भोजन के साथ पानी बिलकुल न पीने से ।
- भोजन के पहले पानी के पीने एवं प्यास के समय भोजन करने पर।
- जो लोग अधिक मात्रा में भोजन करते हैं। बहुत कम करते हैं, बिना समय खाते हैं, उन्हें भी यह रोग मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) होने की आशंका रहती है
- मल-मूत्र के प्राकृतिक वेगों को रोकने, दिन में अधिक सोने और रात को अधिक जागने से अपच/अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )हो जाता है।
- इस रोग के मानसिक कारण भी जैसे-अत्यधिक क्रोध, भय, चिंता, शोक, ईर्ष्या आदि।
- परस्पर विरुद्ध आहार, पूर्व में किए गए भोजन के बिना पचे पुनः भोजन करना, अजीर्ण होने
- पर भी भोजन करना, आटे या बेसन की बनी वस्तुओं का अधिकांश प्रयोग करना ।
- अपक्व भोजन करना, मद्य, दूध, गुड़ और अभिष्यंदी पदार्थों का सेवन ।
- चीनी के बने पदार्थ तथा चूड़ा अधिक खाना।
- चिंता, अवसाद (Depression) |
- शरीर विकृति एवं रोग जन्य कारण भी मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )-
- यदि ग्रासनली (Oesophagus), आमाशय या ग्रहणी (Duodemum) आदि की बनावट में जन्मजात विकृत हो या इनमें कहीं भी कैंसर हो जाए।
- अथवा मध्य पेशी को हर्निया हो ।
- अथवा जठरअनम्लता अथवा आमाशयशोथ, पेप्टिक अल्सर या आमाशय कैंसर हो, तो भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता।
- कुछ ऐसी व्याधियाँ, जिनमें परावर्त्त (Reflex) से भी अग्निमांद्य का रोग हो जाता है, जैसे-पित्ताशयशोथ, आंत्रपुच्छशोथ (एपेंडीसाइटिस), अग्न्याशयशोथ, अमीबियासिस, संग्रहणी
- अनीमिया/रक्तन्यूनता, एडिसस का रोग (सुप्रारीनल ग्रंथि का विकार), यूरीमिया और अतिपराबटुता (Hyperparathyroidism) से भी यह रोग हो जात है→ आँतों तथा आमाशय में यदि पाचक रस आवश्यकता से कम बनने लगे, तो इससे भी अग्निमांद्य का रोग हो जाता है।
- स्नायुविक दुर्बलता, आमाशय की एलर्जी, गठिया रोग, अंतडियों के रोग में (Intestinal disease), छोटे जोड़ों की शोथ, यकृत वृक्क और गर्भाशय के रोग, कई प्रकार के ज्वर, संक्रामक रोग, आमाशय में कफ और पित्त का इकट्ठा होना, आमाशय का कमजोर होकर झूल जाना/लटक जाना, अति दुर्बल हो जाना आदि कारणों से भी मंदाग्नि/अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) की उत्पत्ति होती है।
- कुछ अन्य कारण भी रोग पैदा करने में सहायक होते हैं-
- वासी भोजन नियमित रूप से करते रहने से यह शरीर के लिए विष के समान है।
- भोजन के समय अति ठंडा (फ्रिज का जल) अथवा अधिक गर्म पानी अथवा पानी में बर्फ मिलाकर पीना ।
- बिना सोचे समझें अत्यधिक मात्रा में भोजन करके भारी श्रम अथवा तुरन्त संभोग क्रिया में जुड जाना ।
- अत्यधिक श्रम मानसिक और शारीरिक । एकदम आराम, श्रमहीन जीवन जीना ही मंदाग्नि को अपने पास बुलाता
- खट्टे-मीठे पदार्थ, चटपटे मिर्च-मसालेदार खाद्य, तले भुने पदार्थ ।
- अस्वास्थ्यकर सीलनयुक्त गंदे मकान में रहना, गंदगी भरे वातावरण में रहना और काम करना इस रोग मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) के कारण हो सकते हैं।
- कुछ लोग कमर कसकर धोती बाँध लेते हैं, यही ठीक नहीं है। इससे पाचन क्रिया पर गलत प्रभाव पड़ता है
- यदि शरीर में रक्त की कमी है तो भी इसके कारण मंदाग्नि होना संभावित है।
- अत्यधिक चाय से भी अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) रोग की उत्पत्ति होती है
- गरिष्ठ भोजन अग्निमांद्य में सहायक है।
- शराब पीना (मद्यपान), तमाकू का सेवन, गाँजा, भाँग, चरस का इस्तेमाल करना अग्निमांद्य पैदा करने वाले होते हैं।
- अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) का प्रमुख कारण भोजन की लापरवाही से जुड़ा हुआ है। अधिकांश लोग खाने का समय-कुमसय नहीं देखते। बस जो कुछ मिला झटपट ठूस-ठूस कर (गोदाम की भाँति) भरते चले जाते हैं। इस प्रकार अंकुश लगाना हितकर है।
- मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )रोग की उत्पत्ति-अग्निमांद्य का कफ से संबंध प्रतीत होता है। कफ प्रकुपित होकर अपने गुरु, सांद्र, पिच्छल आदि गुणों के कारण पित्तवह स्रोतों को अवरोध कर देता है, जिससे पाचक रसों का स्राव कम मात्रा में, कभी-कभी बिलकुल ही नहीं होता है।
- जैसे आमाशय रस का स्राव चिंता, भय, शोक आदि मानसिक कारणों से स्वतंत्र नाडी सत्रों में अवसाद के कारण बहुत कम होता है। अतः भूख भी नहीं लगती है। इसी प्रकार कफवर्द्धक आहार के अधिक मात्रा में ग्रहण करने से कफ की वृद्धि से स्रोतोरोध होने से अग्निमांद्य की अवस्था उत्पन्न होती है।
- घातक पांडुरोग तथा कफज पांडुरोग में पोषण के अभाव में पाचक रसों का निर्माण ठीक न होने से भी अग्निमांद्य हो जाती है। घातक अर्बुद के आमाशय में फैलने पर पित्तवह स्रोतों का अवरोध हो जाता है, जिससे अग्निमांद्य (Loss of appetite) उत्पन्न होती है।

मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )लक्षण (loss of appetite symptoms)-
- किए गए आहार के सही समय पर पचने से क्षुधा की प्रतीति न होना
- जल्दी भूख न लगना
- मल-मूत्र का सम्यक विसर्जन न होना,
- उदरगौरव
- आलस्य
- दौर्बल्य
- क्लम एवं विदाह
- आयुर्वेद दृष्टि में- भोजन का अविपाक उदर में गुरुता आध्यमान होना अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) के परिचायक हैं।
- क्षुधानाश उत्क्लेश
- वमन
- मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) लक्षण विस्तार से-
- अग्निमांद्य से पीड़ित व्यक्ति को भूख नहीं लगती है।
- वह सदैव बेचैनी से पेट पर हाथ फेरता नजर आता है।
- उसको बार-बार खट्टी डकारें आती रहती है।
- रोगी को अक्सर छाती में जलन
- सिर में भारीपन की शिकायत रहती है।
- ऐसे रोगी को कभी-कभी चक्कर भी आते हैं। तथा जी मिचलाता रहता है।
- ऐसे रोगी में पेट फूल जाना तथा पेटदर्द की आम शिकायत रहती है।
- मुँह में पानी भर आता है और वह बार-बार थूकता रहता है।
- ऐसे रोगी को या तो मलावरोध की शिकायत रहती है अथवा फिर बदहजमी के पतले दस्त आते रहते हैं।
- रोगी का खाया-पिया अंग नहीं लगता है।
- ऐसा रोगी थोड़ी परिश्रम से ही थक जाता है।
- उसका किसी कार्य में मन नहीं लगता है।
- वह सदैव खिन्न, चिड़चिड़ा और परेशान दिखने लगता है।
- रोगी की जीभ पर एक मैल की परत जम जाती है।
- अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) अनेक रोगों का जनक है-अग्निमांद्य से रसादि धातुओं का क्षय, उदररोग, अर्श, अतिसार, प्रवाहिका, ग्रहणी, आध्यमान, उदार्वत, उदरशूल, अजीर्ण, विसूचिका -विलंबिका एवं अल्सर आदि अनेक रोगों उत्पन्न होते हैं। यदि यह कहा जाए कि सभी रोग अग्निमांद्य से उत्पन्न होते हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
- यद्यपि अग्निमांद्य बहुत पाया जाने वाला साधारण विकार है, पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जिसे अग्निमांद्य रोग न होता हो। यद्यपि यह अनेक महत्त्वपूर्ण व्याधियों का परिचायक भी है। अतः इसके कारणों का भली प्रकार ज्ञान प्राप्त करना नितांत आवश्यक है।
- याद रहें- • अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) के वास्तविक कारणों के बारे में सही-सही पता नहीं चल सका है। सामान्यतया यह कारण मनोविकार संबंधी (Psychological), तंत्रिका संबंधी (Neurological) एवं Gut peptide factor हो सकते हैं। रोगी प्रायः 40 साल की आयु वाला पुरुष होता है।
- दाँतों के रोग विशेषकर पायरिया भी इसका प्रमुख कारण है।
- मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) यह कोई विशेष रोग नहीं है, बल्कि एक लक्षण मात्र है, जो अनेक रोगों में दिखाई देता है।इसकी पहचान निम्न लक्षणों एवं चिह्नों के आधार पर की जा सकती है-उदरशूल, आध्यमान, मलावरोध, अधोवायु की रुकावट, अंगों में जकड़ाहट, अंगमर्द, कंठ एवं मुख का सूखना ।
- भूख न लगने के साथ-साथ तबियत का गिरा रहना भोजन के बाद पेट का फूलना, वमन, सिरदर्द आदि लक्षणों से इसे सफलतापूर्वक पहचाना जा सकता है।• खट्टी डकारें आना, भोजन के प्रति अरुचि, उरु एवं वंक्षण में वेदना, कृशता एवं दुर्बलता के साथ रोगी को भूख न लगना ।
- मुख से धुआँ जैसा निकलना, पसीना आना, शरीर में भारीपन, कपोल एवं नेत्रकूट में शोथ, स्तब्धता एवं मैथुन की अनिच्छा ।
- प्रातःकालीन लक्षणों में टहलते समय उदर-पीड़ा अथवा मितली की उपस्थिति ।
- जिह्वा का मलावृत्त एवं मुख दुर्गंध ।
- भोजन के बाद अक्सर पेट फूलने की शिकायत रहती है।
- रोगी का सिर भारी रहने लगता है और उसे चक्कर आने लगते हैं।
मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) चिकित्सा (loss of appetite treatment)-

- रोग की चिकित्सा हेतु रोग किन कारणों से पैदा हुआ है, उनको जानना आवश्यक हैं-
- रोग के वास्तविक कारणों को जानने के लिए ‘क्ष’ किरण (X-Ray) चित्रण नितांत उपयोगी होते हैं।
- इसी प्रकार रक्त, मूल-मूत्र, आमाशयिक पदार्थ, यकृत कार्य आदि के परीक्षणों को भी करा लेना आवश्यक होता है।
- यदि रोग का आक्रमण एकाएक हुआ हो, तो आंत्रपुच्छ (Appendicitis), स्तब्धता या शोक, चिंता आदि कारण हो सकते हैं।
- कभी-कभी अजीर्ण के आक्रमण का विवरण मिले तो पेप्टिक अल्सर कारण समझना चाहिए।
- यदि यह आक्रमण बहोत ज्यादा ही दिनों से हो रहे हों, तो दुर्दमता (मैलिग्नेंसी) संभव है।
- रक्त वमन हो, तो उसका कारण पेप्टिक अल्सर, कैंसर, आमाशयशोथ एवं यकृत सिरोसिस हो सकते हैं।
- अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) की चिकित्सा-अग्निमांद्य के उपचार के लिए इनके कारणों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है। आयुर्वेदिक उपचार में अधिक बल इस बात पर दिया जाता है कि आमाशयिक पाचक रसों को अधिक मात्रा में किस प्रकार उत्पन्न किया जा सकता है।
- मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )का दूर करने के लिए जहाँ क्षुधावर्द्धक, जठराग्नि को बढ़ाने वाले दीपन एवं पाचक द्रव्यों को प्रयोग में लाया जाता है, वहीं भोजन भी सुपाच्य, लघु और रुचिकर होना चाहिए। अतएवं मंड अत्युपयोगी है। यह क्षुधावर्द्धक, वस्तिविशोधन, रुचिवर्द्धक, कफ और पित्त को नष्ट करने वाला, रक्त को बढ़ाने वाला और ज्वर आदि रोगहर भी है। प्रमेह जनित अग्निमांद्य में प्रमेहनाशक चिकित्सा भी साथ में करनी चाहिए।
- औषधि योगों (loss of appetite treatment home remedies) में अग्निमुख चूर्ण, लवणभास्कर चूर्ण, हिंग्वष्टक चूर्ण, महाशंख वटी, अग्नि कुमार रस, द्राक्षारिष्ट, कुमार्यासव आदि प्रमुख हैं। भोजन के पहले कालानमक + अदरक को मुख में रखकर चूसने से जठराग्नि तीव्र होती है और भोजन में रुचि बढ़ती है।
- मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) की अनुभूत चिकित्सा
- गंधक वटी 2-4 गोली मुख में रखकर चूसे। भोजनोपरांत 2 शंखवटी खाकर ऊपर से लोहासव + कुमार्यासव + अभयारिष्ट 2-2 चम्मच समभाग जल मिलाकर पिलावें। 10 मिनट तक रोगी को घुमावें (भ्रमण करावें)। यह अनुभूत चिकित्सा योग रुचिकारक, क्षुधावर्द्धक, मल-मूत्र उत्सर्जक, अपानवायु निस्सारक है। यह योग पेट को हलका करने वाला होता है।
- 2. लौंग 4, कालीमिर्च और नमक इनको बारीक पीसकर 250 मि.ली. पानी में उबालकर लेने से तत्काल लाभ होता है, अनुभूत है ।
- सोंठ, पीपल, कालीमिर्च और सेधा नमक, इनको 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बनाएँ। 1-1 ग्राम चूर्ण भोजन के बाद पानी के साथ लें। इससे जठराग्नि की अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिलती है।
- लहसुन छिला हुआ 350 ग्राम, सफेद जीरा भुना हुआ, शुद्ध गंधक, सेंधानमक, काला नमक, सोंठ, पीपरि, कालीमिर्च, भुनी हुई हींग, अजवायन, टाटरी 100-100 ग्राम लेकर कूट छान लें। बाद में लहसुन मिलाकर सिल पर पीस लें और खरल में डालकर नींबू के रस की 3 भावना दें।
- बाद में 500-500 मि. ग्राम की गोली बनाकर ताजे पानी से लें, तो अग्मिांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi )में उत्तम लाभ मिलता है। साथ ही यह पेटदर्द, उदरशूल तथा आध्यमान नाशक है।
- पाचन शक्ति को अधिक बढ़ाने के लिए-कपर्दिका भस्म 250 मि. ग्रा., शंख भस्म 250 मि. ग्रा. नृसार 250 मि. ग्रा. । त्रिफला की भावना से भस्म बनाकर भोजन से पूर्व मधु से लेने पर पाचन शक्ति बढ़ती है।
- एक अनुभूत अग्निवर्द्धक योग-सेंधानमक, कालानमक, सौंठ, नौसादर हांडी वाला, हल्दी 50-50 ग्राम, जीरा सफेद भुना हुआ 100 ग्राम, जीरा स्याह 50 ग्राम, हींग तालाबी भुनी हुई 10 ग्राम, सनाय पत्ती 100 ग्राम, पिपरमेंट 2 ग्राम, पीपल छोटी 25 ग्राम-सबको कूट छानकर रख लें।
- सुबह-शाम 5-5 ग्राम जल के साथ लेने से मंदाग्नि तथा अरुचि में लाभदायक है। इससे पाखाना साफ आता है, रुका हुआ मल निकल जाता है और भूख बढ़ जाती है
- यह अनुभूत सिद्ध प्रयोग राजवैद्य पं. सुरेन्द्रनाथ दीक्षित, त्रिवेणी गंज (नौबस्ता), लखनऊ वालों का है, जो आयुर्वेद गगन के ध्रुव नक्षत्र माने गए हैं।
- अनुभूत अग्निवर्द्धक चूर्ण (loss of appetite treatment in ayurveda)– (यह भी पं. सुरेंद्रनाथ दीक्षित का बनाया हुआ है)-पोदीना का रस, नींबू का रस, सौंफ का अर्क 1-1 किलो, अदरक का रस 750 ग्राम, मूली का रस 750 ग्राम, काला नमक 50 ग्राम, सेंधा नमक, संभारि नमक, सज्जीखार, जबाखार चूड़िया नमक 25-25 ग्राम, जीरा सफेद भुना हुआ 50 ग्राम, हीरा हींग भुनी हुई 3 ग्राम, सोंठ, पीपल, कालीमिर्च 10-10 ग्राम, छोटी इलायची दाना
- 5 ग्राम-सबको कूट, उपर्युक्त रसों में मिलाकर रख लें। मात्रा-10-20 ग्राम तक दिन में 3 बार लेने से भूख खुलकर लगने लगती है और गैस बनना बंद हो जाती है।
- अग्निमांद्य संहार चूर्ण (वैद्यराज गोपीनाथ पारीक (सीकरी) राजस्थान वालों को अनुभूत योग) – जीरा 48 ग्राम, कालीमिर्च 48 ग्राम, यवक्षार 48 ग्राम, नवसादर 48 ग्राम, नींबू सत, मुक्तामाता (शुक्ति) 24 ग्राम, बड़ी इलायची 12 ग्राम, काला नमक 192 ग्राम।
- सभी द्रव्यों का सूक्ष्म चूर्णकर मिलाकर काँच की शीशी में सुरक्षित रख लें। 1-1 ग्राम चूर्ण सेवन करने से अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) मिट जाती है।
- पाचक चटनी (वैद्य सत्यनारायण शर्मा, प्रोफेसर-राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर)-नींबू का रस 1 किलो, अमलतास का गुदा 1/2 किलो, इन्हें 2 दिन तक नींबू के रस में भिगों दें, तत्पश्चात् कपड़े से छान लें।
- इसमें दालचीनी 20 ग्राम, सोंठ 20 ग्राम, कालीमिर्च 20 ग्राम, छोटी पीपल 20 ग्राम, हींग भुनी हुई 20 ग्राम, इलायची छोटी 20 ग्राम, सेंधानमक 50 ग्राम, कालानमक 50 ग्राम, कालादाना 50 ग्राम, सफेद जीरा भुना हुआ 50 ग्राम,
- कूट छानकर उक्त द्रव में मिला लें। मात्रा एवं सेवन विधि-5 से 10 ग्राम रात्रि के समय चाटें। इसके कुछ ही दिन सेवन करने से अग्निमांद्य करें। इसके कुछ ही दिन सेवन करने से अग्निमांद्य मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) तथा आलस्य दूर होता है, चित्त प्रसन्न रहता है।
- ज्वर में मुख वैरस्य होने पर प्रयुक्त करें। 10. एक अनुभूत अग्निवर्द्धक, स्वादिष्ट चूर्ण-अनारदाना 700 ग्राम, सेंधा नमक 120 ग्राम, सौंठ 120 ग्राम, कालीमिर्च 120 मि.ग्रा. (सफेद मिर्च भी उपयुक्त), पीपल 120 ग्राम, जीरा 120 मि.ग्रा., एलावड़ी / बड़ी इलायची 30 ग्राम, नींबू का सत्व 60 ग्राम, चीनी 170 ग्राम, भुनी हुई हींग 1/2 ग्राम।
- सभी औषधियों का कपड़छन चूर्ण बना लें। मात्रा – 3-5 ग्राम ।
- अग्निमुख लवण 1 ग्राम + नारायन चूर्ण 1 ग्राम दिन में 3 बार गरम जल से देने पर कुछ ही दिन में भूख खुलकर लगने लगती है। मंदाग्नि के लिए यह (Loss of appetite meaning in Hindi ) अनुभूत है।
- लशुनाथ वटी 1 ग्राम, समुद्रादि चूर्ण 1 ग्राम, सर्जिकासत्व 1 ग्राम ऐसी 1 मात्रा दिन में 2 बार भोजनोपरात गरम जल से दें।
- एक साधारण अनुभूत योग मंदाग्नि (Loss of appetite meaning in Hindi ) के लिए – नींबू का रस (Lemon juce) 2 चम्मच (10 मि.ली.). कालीमिर्च (पाउडर/चूर्ण) 1 ग्राम, काला नमक 1 ग्राम-सबको मिलाकर ऐसी 1 मात्रा दिन में 3 बार भोजन के बाद 1 कप जल के साथ लें।
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कुछ आयुर्वेदिक योग (loss of appetite ayurvedic medicine)