अर्श या बवासीर रोग परिचय (Piles meaning in hindi)-
बवासीर (piles meaning in hindi) एक आम रोग है। इसके लिए ‘अर्श’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह रोग मार्ग के भीतरी भाग में या बाहर किनारे पर होता है। शरीर के प्रकुपित दोष त्वचा, और खून को दूषित कर गुदा में मांस के अंकुर पैदा कर देते हैं, जिसे मस्से की बीमारी बवासीर की संज्ञा दी जाती है। शोच के लिए जब रोगी जोर लगाता है, तो मलद्वार पर बहुत अधिक पीड़ा पहुँचती है। ऐसे में मांसाकुरों से रक्तस्राव होने लगता है।
इसमें अत्यंत तीव्र जलन व पीड़ा होती है। रोगी का उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है। इस रोग में मलद्वार की नसें फूल जाने से वहाँ की त्वचा फूलकर सख्त हो जाती है और अंगूर की भाँति एक दूसरे से जुड़े हुए गुच्छे से उभर आते हैं। जिसमें रक्त भी बहता है उसे खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है और जिसमें रक्त नहीं बहता, उसे बादी बवासीर (piles meaning in hindi) के नाम से जाना जाता है।
अर्श या बवासीर (piles meaning in hindi) कारण-
- अधिक समय तक कब्ज की शिकायत चलते रहने से। अधिक स्त्री प्रसंग करने से।
- अधारणीय वेगों को रोकने से ।
- अधिक साइकिल चलाने, घोड़े व ऊँट पर अधिक सवारी करने से।
- अग्निमांद्य तथा स्त्रियों में गर्भावस्था में पाचन क्रिया विकृत होने पर कब्ज होने से भी बवासीर (piles meaning in hindi) की उत्पत्ति होती है।
- यह रोग अधिकतर कुर्सी, आसन अथवा गद्दे-तकियों के सहारे ज्यादा बैठने वालों को होता है।
- तेज मिर्च-मसाले, चटपटा, खट्टा वासी खाना खाने वाले लोगों में यह रोग अधिक होता है।
- अत्यधिक व्यसनों में डूबे रहना, आहार-विहार की गड़बड़ी, काफी रात गए तक जागना, बीड़ी-सिगरेट तथा तमाकू का सेवन तथा मद्यपान करने वाले व्यक्तियों को यह रोग (piles meaning in hindi) विशेषकर होता है ।
- सुखाई हुई सब्जियाँ, कच्ची मूलियाँ, सूखा मांस, अतिशय कम आहार लेने आदि से।
- आयुर्वेद में विपरीत आहार का निषेध किया गया है। तदनुसार दूध के साथ प्याज, लहसुन, नमक, मांस, मछली आदि नहीं खाना चाहिए अन्यथा अर्श हो जाने की पूरी संभावना होती है।
- कुछ अन्य अर्श उत्पादक कारण- कृमि ( Thread worms), सूती कृमि का होना, घाव या नासूर इत्यादि से आँत के आखिरी हिस्से में खराश का बैठना आदि से भी बवासीर का रोग हो जाता है।
- यकृत दोष ।
- अर्श एक वंशानुगत बीमारी भी है। जिन लोगों के पूर्वजों को लंबे समय तक अर्श की बीमारी रही हो, उनके वंशजों में भी यह रोग विरासत के रूप में मिलता है।
- एक ही स्थान पर निरंतर बैठे रहने से गुदा प्रदेश पर रक्त आदि का अधिक दबाव पड़ता है, जिससे उस स्थान की शिराएँ फूल जाती हैं।
- पौरुष ग्रंथि की वृद्धि (Enlarged prostate) से भी इस रोग की पर्याप्त संभावना रहती है। क्योंकि ग्रंथि का मलाशय पर दबाव पड़ता है। ऐसा वृद्धों में अधिक होता है।
- यदि किन्हीं कारणों से मूत्रत्याग में प्रवाहण लगातार करते रहना पड़े, तो भी अर्श हो जाता है, जैसे- अश्मरी में
- अबुर्द, घातक रोग आदि जब गुदनलिका या उसके समीपस्थ धातुओं में हो जाते हैं, तो भी रक्तभ्रमण में अवरोध होता है ।
- महिलाओं में गर्भ, गर्भाशय भ्रंश (Displacement), गर्भाशयगत अबुर्द आदि अवस्थाओं में इस रोग के होने की संभावना रहती है।
- शरीर रचना सम्बन्धी कारण ।जिन महिलाओं को अधिक प्रसूतियाँ होती हैं, उन्हें भी अर्श की शिकायत होती है। इसका कारण यह है कि महिलाओं के गर्भाशय एवं मलाशय दोनों ही अंग गुदा के समीप स्थिति होते हैं। उदर में जैसे-जैसे गर्भ विकसित होता जाता है वैसे-वैसे मलाशय और गुदा पर उसका दबाव बढ़ता जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अर्श (piles meaning in hindi) होने की संभावना बढ़ जाती है।
- याद रहे- प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान की दृढ़ मान्यता है कि इस रोग का मुख्य कारण कब्ज (Consti- pation) है। कुछ अन्य कारणों में दिन में अधिक सोना, गद्दों पर बैठे रहना, मीठे, कड़वे चटपटे (चटनी), चिकने एवं वायुजनक पदार्थों का अतिमात्रा में सेवन करना आदि कारण हैं।
- हृदय एवं फुफ्फुस रोग भी कभी-कभी अर्श के कारण बनते हैं। बिना शारीरिक परिश्रम के जीवन बिताना, घी, मलाई आदि गुरुपाकी चीजें अधिक खाना। ये सब कारण बवासीर (piles meaning in hindi) पैदा करने वाले होते हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि यकृत (लिवर) की खराबी से बवासीर उत्पन्न होती है।
- बराबर कब्जियत के कारण मल करते समय मल निकालने के लिए बहुत जोर लगाकर कांखना पड़ता है। इसी कांखने से प्रायः बवासीर हो जाती है।
- इस रोग का प्रमुख कारण आजकल निरंतर कब्ज का रहना माना जाता है। कब्ज अधिकतर असंतुलित या गलत खान-पान के कारण होता है। कब्ज के कारण मल त्यागते समय गुदा की रक्तवाहिनियों पर जोर पड़ता है, और वह फूल कर मस्सों का रूप ले लेती हैं।
- आयुर्वेद संहिता ग्रंथों में कुछ विशेष कारणों का उल्लेख मिलता है।
- 1. वातिक कारण-शोक, शीतलदेश का अतिसेवन, कषाय, कटु, तिक्त आहार ।
- 2. पैक्तिक तथा रक्तज कारण-क्रोध, उष्णदेश, कटु, अम्ल, लवण आहार का अतिसेवन ।
- 3. श्लैष्मिक कारण-शीतल देश में निरन्तर निवास, मधुर स्निग्ध, गुरु आहार ।
- 4. सन्निपातिक कारण-उपरोक्त सम्मलित कारणों से ।
अर्श या बवासीर (piles meaning in hindi) लक्षण-
- बवासीर (piles meaning in hindi) में रोगी को जलन, टनक, अकड़न और तेज काटने जैसी पीड़ा होती है। रोगी का बैठना दी है। रोगी को कब्ज़ के कारण जीना हराम हो जाता है।
- रोगी का बैठना एक मुसीबत हो जाती है।
- रोगी को कब्ज के कारण जीना हराम हो जाता है।
- प्रायः उसे पतला मल नहीं आता है बल्कि रक्त ही अधिक आ जाता है।
- मल पीड़ा के साथ आता है, जो कि बाद तक महसूस ही होती रहती है।
- मलद्वार के चारों ओर लाली लिए सूजन पाई जाती है।
- यदि रक्तस्राव अधिक हो, तो चेहरा पीला पड़ जाता है।
- अर्श रोगी की गंदी वायु खारिज होती है।
- इसके अतिरिक्त रोगी के मलद्वार, जोड़ों, कमर, जाँघों में दर्द, पेट खराब आदि लक्षण हुआ करते हैं।
- शुष्क या बादी बवासीर (piles meaning in hindi)के रोगी को कई बार गुदा में संकुचन होकर वहाँ पर जख्म बनकर कैंसर जैसा भयंकर रोग हो जाता है।
- बवासीर के जो मस्से गुदा के अन्दर होते हैं उनमें दर्द नहीं होता उनसे रक्त आता है।
- गुदा के बाहर के मस्से फूल जाने पर उनमें अत्यधिक दर्द, खुजली और जलन होती है। उनसे खून नहीं बहता है। गुदा के किनारों पर होने वाले मस्सों में दर्द भी होता है और रक्त भी निकलता है।
- रोगी में मस्सों में चुनचुनाहट तथा टीस होती है। रोगी सिरदर्द से परेशान रहता है। रोगी को अक्सर जाँघों, वक्षण स्थान में पीड़ा सताती रहती है।
- गुदा की वेदना अंडकोष यहाँ तक कि शिश्न को भी प्रभावित कर देती है। मस्सों की तीव्र पीड़ा से रोगी व्याकुल तथा बेहाल रहता है। कभी-कभी व्याकुलता इतनी बढ़ जाती है कि रोगी चीख उठता है। इस रोग में कभी-कभी संधियाँ भी प्रभावित होती देखी जाती हैं।
- मस्से मुलाइम हो जाने पर दर्द कम हो जाता है अथवा बंद हो जाता है। रोगी को अक्सर कब्ज की शिकायत रहती है। मल कड़ा उतरने पर मस्से छिल जाते हैं उनमें से रक्त आने लगता है तथा सूजन आकर पीड़ा होने लगती है।
- बवासीर (piles meaning in hindi) दो प्रकार की होती है-
- 1. बादी बवासीर– इसे शुष्क बवासीर भी कहते हैं। इसमें रक्त नहीं निकलता है। मस्से भी भीतर की ओर होते हैं। इसमें गंदी हवा (वायु) निकला करती है। रोगी के जोड़ों में टूटने जैसा दर्द होता है, उठते-बैठते उसके जोड़ चटका करते हैं तथा रोगी को भूख कम लगती है।
- इसके साथ ही उसकी जाँघों में भी पीड़ा बनी रहती है। रोगी प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है। भोजन की अरुचि तथा शरीर के विभिन्न भागों में दर्द रहता है।
- 2. खूनी बवासीर (रक्तार्श) – इसमें मस्से मलद्वार के बाहर निकले रहते हैं और शौच के समय इनमें से रक्त निकलता है। इस प्रकार की बवासीर में जलन, टपकन, अकड़न और काटकर फेंकने जैसा दर्द होता है। रोगी को बैठने में कष्ट होता है।
- रोगी कब्ज के कारण हमेशा दुःखी और चिंतित रहता है, उसको पतले दस्त नहीं आते हैं तथा उसके मल में रक्त आया करता है।
- रोगी को मलत्याग के समय अत्यंत पीड़ा होती है, जो पाखाना करने के बाद भी कुछ देर तक होती रहती है।
- गुदा के चारों तरफ लाली हो जाती है।
- गुदा में दर्द, जलन, खुजली होती रहती है। रोगी का चेहरा तथा पूरा शरीर नीला पड़ जाता है।
- खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) में अंकुर या मस्से चिरमिटी के समान लाल और बड़ के अंकुरों जैसे होते हैं।
- कड़ा मल निकलने से मस्से दब जाते हैं और उनसे गरम और खून निकलता है। खून के बहुतायत से गिरने के कारण मनुष्य वर्षा काल के मेढ़क के समान पीला हो जाता है। चमड़ी कठोर हो जाती है।
- मस्से लाल या पीले रंग के होते हैं। जब यह अधिक उग्ररूप ले लेता है तो रोगी को असह्य कष्ट होता है। असह्य वेदना के साथ खून रहित दस्त लगता है।
- बुखार, वमन और हाथ पैरों में सूजन जैसे लक्षण होते हैं ।
- 1. बादी बवासीर– इसे शुष्क बवासीर भी कहते हैं। इसमें रक्त नहीं निकलता है। मस्से भी भीतर की ओर होते हैं। इसमें गंदी हवा (वायु) निकला करती है। रोगी के जोड़ों में टूटने जैसा दर्द होता है, उठते-बैठते उसके जोड़ चटका करते हैं तथा रोगी को भूख कम लगती है।
- अर्श (piles meaning in hindi) की जानकारी निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर हो सकती हैं-
- अर्श, बवासीर का रोगी सीधे तनकर नहीं बैठ सकता ।
- रोग के अधिक बढ़ने पर वह तनकर भी नहीं चल सकता ।
- मलद्वार में बार-बार दर्द होता है। कभी-कभी दर्द के साथ जलन भी होती है।
- रोगी मलत्याग भली-भाँति नहीं कर पाता है। अपानवायु भी ठीक से नहीं छोड़ पाता ।
- मलत्याग के समय मल के घर्षण से उस भाग में पीड़ा भी होती है।
- अर्श (piles meaning in hindi) प्रभावित रोगी के सख्त मल पर अर्श से निकलने वाले खून का लंबा दाग देखा जा सकता है।
- रोगी में कमजोरी तथा थकावट स्पष्ट नजर आने लगती है।
- रोगी पैरों में पीड़ा की शिकायत करता है और चेहरा फीका पड़ा नजर आता है।
- खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) से समय-समय पर खून गिरता है। खूनी बवासीर प्रायः अंतर्वती में होता है।
- वादी बवासीर से खून नहीं गिरता, परन्तु दर्द होता है।

अर्श/ बवासीर (Piles meaning in hindi) की चिकित्सा-

- बवासीर (piles meaning in hindi) की चिकित्सा के लिए सबसे पहले रोगी को ऐसी औषधि देनी चाहिए, जिससे कब्ज नष्ट हो जाए। इससे शौच करते समय अर्श-अंकुरो (मस्सों पर जोर नहीं पड़ता, जिससे रक्तस्राव तथा पीड़ा कम होती है।
- यह अध्ययन में पाया जाता है कि रोगी के कारण का पता न हो तो रोग समूल नष्ट नहीं किया जा सकता है। बवासीर की मुख्य चिकित्सा कारण मालूम करके ही रोगी को लाभ पहुँचाया जा सकता है। अतः सबसे पहले कब्ज और कारण के दूर करने की चिकित्सा करें।
- जैसा कि ऊपर बताया गया है कि बवासीर के बवासीर (piles meaning in hindi) के रोगी की चिकित्सा प्रारंभ करते ही सबसे पहले मूल में कब्ज अवश्य रहती है, अतएव
- कब्ज को ही दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए दोष रहित जुलाब लेना चाहिए। इसके लिए हर्र का चूर्ण, त्रिफला चूर्ण अथवा इसबगोल बहुत उपयोगी है अन्यथा उसे एनीमा दें।
- मिश्री, मक्खन के साथ छिलका उतरे हुए तिल या भीगा हुआ चना रोज प्रातः देने से कब्ज दूर होगी।
- प्रातः उठने पर तथा रात्रि को सोते समय एक गिलास गर्म पानी देने से भी कब्ज दूर होता है।
- मस्सों पर यदि तीव्र शोथ हो, तो रोगी को बिस्तर पर पूर्ण विश्राम करने का निर्देश दें। हलका गर्म सेंक इस दौरान देना लाभकर होता है।
- ठंडे अथवा गर्म जल से मस्सों को धोने से भी वेदना तथा जलन से राहत मिलती है।
- खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) में रोगी को आराम की सख्त हिदायत मिलती है। बवासीर के रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए। अत्यधिक परिश्रम हानिकारक होता है। एक ही आसन पर अधिक देर तक बैठना, अधिक देर तक खड़ा रहना वर्जित है हर प्रकार की सवारी से बचना चाहिए।
- लहसन तथा प्याज से दर्द में वृद्धि होती है। बथुआ का साग उत्तम है। पपीता तथा रात के समय गरम दूध लेना हितकर होता है।
- आधुनिक चिकित्सा में मस्सों को शल्यचिकित्सा (ऑपरेशन) द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा में औषधियों द्वारा अर्श को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाता है। कब्ज को नष्ट करके मस्सों की पीड़ा कम करने व उन्हें नष्ट करने की औषधि देनी चाहिए।
- अंकुरों में तीव्र पीड़ा होने पर आक, एंरड, बेल और आक के पत्तों को पानी में खूब उबालकर काढ़ा बनाएँ उस काढ़े से अंकुरों (मस्सों) को धोने से पर्याप्त लाभ होता है।
- रक्तस्राव अधिक होने पर काशीशादि तैल लगाना उपयुक्त पाया गया है। खूजली वाले या पीडादायक बवासीर के लिए चिकित्सक क्रीम अथवा ग्लिसरीन की बत्ती आदि का सुझाव देते हैं।
- बवासीर (piles meaning in hindi) के मस्सों का एक उपचार उन्हें सुखा देना भी है। इसके लिए विशेष प्रकार के इंजेक्शन दिए जाते हैं। स्थायी रूप से बाहर निकले मस्सों को ऑपरेशन द्वारा भी निकाला जाता है।
- बवासीर (piles meaning in hindi) चिकित्सा सारांश- बवासीर की सर्वोत्तम चिकित्सा यही है कि योग्य चिकित्सक द्वारा शस्त्र या क्षार सूत्र से कटवाकर सब मस्से निकलवा दिए जाएँ। बवासीर के वायु की गति प्रतिलोम हो जाती है, जिससे वायु की गति अनुलोम हो वही चिकित्सा विधेय है। बवासीर के रोगी को प्रायः कब्जियत रहती है और मल खुश्क हो जाता है। इसलिए दस्त साफ और नरम होकर आए, ऐसी दवा देनी चाहिए ।
- आयुर्वेद विधि से बवासीर (piles meaning in hindi) का उपचार 4 प्रकार से किया जाता है-
- 1. क्षार कार्म – प्रायः आजकल क्षार सूत्र से उपचार किया जाता है।
- 2. अग्नि कर्म-यह दाग देकर उपचार करने की विधि है।
- 3. शस्त्र कर्म-घोर परेशानी भुगतने वाले रोगी की अंतिम अवस्था में उपाय के रूप में ऑपरेशन एक उत्तम साधन है ।
- 4. औषधि कर्म- इसका उपचार औषधि के रूप में यहाँ पर विस्तार से किया जा रहा है, जिसे सुविधानुसार प्रयोग कर सकते हैं।
- बादी बवासीर(piles meaning in hindi) की चिकित्सा–
- एक गिलास मूली के रस में शुद्ध घी की बनी 100 ग्राम जलेबी डालकर एक घंटे बाद जलेबी खाते हुए रस पीते जाएँ। 8-10 दिन में रोजाना सुबह प्रयोग करें। इसके प्रयोग से बवासीर हमेशा के लिए ठीक हो जाता है। इसे खूनी बवासीर में भी दे सकते हैं।
- इमली के बीजों का छिलका दूर कर उनको तवे पर सेंक लें तत्पश्चात् महीन पिसवा लें। अब 1 चम्मच बीजों का आटा + 1 कप ताजा दही मिलाकर सुबह खाली पेट खाएँ। 3-4 दिनों में बवासीर ठीक हो जावेगी ।
- नीम के पत्तों का चूर्ण + हरड़ का चूर्ण- ये प्रयोग वादी बवासीर के लिए बहुत उपयोगी है। औषधि मात्रा 1 से 2 ग्राम ।
- खूनी बवासीर (रक्तार्श) (piles meaning in hindi) की चिकित्सा–
- नीम की निबौली की गिरी, खून खराबा, मुनक्का, गेरू और कहरवा-इन पाचों दवाओं को बराबर लेकर जल के संयोग से चने के बराबर गोलियाँ बना लें। 2-2 या 4-4 गोली दोनों समय खाने से खूनी बवासीर में निश्चय ही फायदा होगा ।
- नागकेशर 3 ग्राम, कमलकेशर 3 ग्राम, शहद 3 ग्राम, चीनी 3 ग्राम तथा मक्खन 6 ग्राम – सबको मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से खूनी बवासीर से मुक्ति मिलती है।
- करेलों का रस या करेले के पत्तों का रस 20 ग्राम में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर प्रतिदिन प्रातः 7 दिन पीने से खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) में लाभ होता है।
- नागकेशर तथा खूनखराबा – दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर कपड़े से छोन लें। 1-2 ग्राम की मात्रा में ताजा पानी से दिन में 3-4 बार सेवन करायें। बवासीर का रक्त शर्तिया रुक जाता है।
- रीठे का छिलका जलाया हुआ 10 ग्राम + सफेद कत्था 10 ग्राम-दोनों को मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। 3-3 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं मक्खन या मलाई के साथ सेवन कराने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
- रसौत 3 ग्राम, दही 50 ग्राम में घोलकर प्रातःकाल 3 दिन तक पियें। इसके 3 दिन के प्रयोग से ही खूनी बवासीर हमेशा के लिए मिट जाती है
- यदि खूनी बवासीर मं धारा प्रवाह (अर्थात् धार बाँधकर) रक्त आ रहा हो, तो इस स्थिति में यह योग विशेष हितकारी होता है।
- भोजन में केवल दही और चावल, मूँग की खिचड़ी लें। देशी घी प्रयोग में लाएँ ।
- पीलीराल 50 ग्राम लेकर बारीक पीस लें। इसका प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण 125 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करायें। यह नुस्खा बवासीर (piles meaning in hindi) के लिए विशेष उपयोगी है।
- काले तिल लें। उन्हें धोकर छाया में अधसुखा लें। तत्पश्चात् तवे पर घी डालकर धीमी अग्नि पर भून लें। उतार कर ठंडा कर रख लें। 3-3 ग्राम की मात्रा में प्रातः सायं सेवन कराने से खूनी बवासीर में शीघ्र लाभ होता है।
- जामुन खूनी बवासीर के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है। प्रातः काला नमक के साथ लगातार 2-3 मास तक जामुन खाने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है। जब तक मौसम में जामुन मिलते रहे, तब तक बवासीर के रोगी को इसका सेवन कराते रहना चाहिए ।
- यदि ताजा जामुन शहद के साथ खाया जाए तो खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) में अति शीघ्र लाभ होता है।
- छोटे नींबू की दो फाँके करके बीज निकाल लें। तत्पश्चात् उस पर काला नमक छिड़क कर धीरे-धीरे चूसने से खूनी बवासीर में विशेष लाभ होता है।
- नीबू के रस में रक्त प्रवाह (Blood flow) रोकने की शक्ति होती है। नमक में मैगनेशियम सल्फेट होने के कारण रक्त बन्द होने और शौच खुलकर आने में सहायता मिलती है। मस्से धीरे-धीरे स्वयं सिकुड़कर ठीक हो जाता है।
- चौलाई के साग को बरीक काटकर मिक्सी से 1 प्याला रस निकाल लें। अब इसमें 1 चम्मच नींबू का रस मिलाएँ। रात सोते समय इसका सेवन करने से खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) में लाभ होता है।
- कच्ची गाजर का रस + पालक का रस मिलाकर पीने से बवासीर में बहुत लाभ होता है।
- असली नागकेशर और खून खरावा बराबर लें। इन दोनों को कूट पीसकर छानकर रख लें । 2-2 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार मौसमी या मीठे अनार के रस के साथ देने से बवासीर को खून गिरना बंद हो जाता है।
- निबौलियों के बीज 10-15 करके 2-3 बार जल के साथ खाने से बवासीर का खून गिरना बंद होता है।
- मोती की सीप को महीन चूर्णकर गुलाबजल से घोटें 250 मि.ग्रा. की मात्रा में मक्खन के साथ खाने से खूनी बवासीर में विशेष लाभ होता है-पूर्ण परीक्षित हैं।
- लाल चंदन, चिरायता, जवासा और सोंठ-इन चारों दवाओं का काढ़ा पीने से खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) ठीक होती है।
- सूखें या हरे गूलर पानी में पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
- करील की जड़ को लाकर छाया में भलीभाँति सुखा लें। तत्पश्चात् जौकुट कर लें, और फिर 3 लीटर पानी में औटायें। जब 500 मि. ली. के करीब जल शेष रह जाए तब उतारकर छान लें। इस औषधि युक्त जल को 200 मि.ली. की मात्रा में प्रातः सायं पीयें।
- इस तरह 7 से 10 दिन तक नियमित सेवन करते रहने से बवासीर के खून आना बंद हो जावेगा और मस्से गलकर नष्ट हो जावेंगे। बादी और खूनी दोनों प्रकार की बवासीर की अनुभूत चिकित्सा-
- कालीमिर्च 12 ग्राम, पीपल 25 ग्राम, सोंठ 36 ग्राम, चित्रक 48 ग्राम और सूरण 60 ग्राम- इन सबको महीन कर चूर्ण बना लें। 2-2 गोली प्रातः सायं जल के साथ खाने से दोनों प्रकार की ‘बवासीर में लाभ होता है।
- नीम की निबौली, रसौत, खूनखरावा, शुद्ध गुग्गुल, बड़ी हरड़ का छिलका और मुनक्का-प्रत्येक 24-24 ग्राम, गुलाब के फूल और सनाय 12 ग्राम, तथा पीपल 18 ग्राम- इन सब दवाओं का चूर्ण करके शेष में गुग्गुल मिलाकर त्रिफला के काढ़े से बेर के बराबर गोलियाँ बना लें। 2-4 गोली प्रातः सायं जल के साथ सेवन करें। इससे खूनी व वादी दोनों प्रकार की बवासीर ठीक होती है चिकित्सकों के द्वारा यह बहुत बार अजमाया गया है।
- दो सूखे, अंजीर शाम को पानी में भिगों दें। प्रातः खाली पेट उनको खाये। इसी प्रकार सुबह के भिगोने शाम को खाएँ। एक घंटा आगे-पीछे कुछ न लें। इस प्रकार से 8-10 दिन लगातार खाने से दोनों प्रकार की वादी और खूनी बवासीर (piles meaning in hindi) ठीक होती है।
- सूखे नारियल की जटा जलाकर राख बनायें और छानकर रख लें। दिन में 2-3 बार एक डेढ़ कप छाछ या दही में मिलाकर पीते रहने से खूनी अथवा वादी (खुश्क) बवासीर में लाभ होता है।
- दोपहर के भोजन के बाद छाछ में चौथाई चम्मच पिसी हुई अजवायन और 1 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है। इससे बवासीर का पुनराक्रमण नहीं होता है।
- खाली कैप्सूल में निबौली का तेल भरकर निगल जाने से अर्श की शिकायत दूर होती है।
- जायफल को देशी घी में भूनकर पीस लें और उसका चूर्ण बना लें इस चूर्ण को 2 या 3 बार आटे में मिलाकर थोड़े से घी में अच्छी प्रकार भून लें। स्वाद के लिए बूरा मिला लें। प्रातःकाल खाली पेट एक चम्मच चूर्ण का सेवन करने से बवासीर (piles meaning in hindi) में बहुत लाभ होता है।
- आम के रस में एक चम्मच अदरक का रस मिलाकर दिन में 3 बार पीने से बवासीर का रोग ठीक होता है।
- प्राणदा वटी की 2-2 गोली प्रातः सायं जल से लें। भोजन के बाद आमयारिष्ट 20 मि.ली. बराबर जल में मिलाकर पिएँ ।
- प्याज के महीन-महीन टुकड़े करके धूप में सुखा लें। सूखे टुकड़ों में से 10 ग्राम प्याज लेकर सुबह घी में तले और बाद में 1 ग्राम तेल और 20 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य सुबह सेवन करें। बवासीर (piles meaning in hindi) में आशातीत लाभ मिलता है।
- चार-पाँच मूली के कंद में से ऊपर का सफेद रेशा तथा पत्तों को अलग करके शेष कंद को कूटकर रस निकाल लें। तत्पश्चात इस रस को 6 ग्राम की मात्रा में घी के साथ मिलाकर नित्य प्रातः काल सेवन करें, बवासीर में विशेष लाभ होता है।
- अर्श (piles meaning in hindi) के मस्सों को सूखाकर नष्ट करने वाले अनुभूत योग-
- कुचला को मिट्टी के तेल में घिसकर मस्सों पर लगाने से बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।
- हरड़ पीसकर कपड़े से छानकर पानी में लेप बनाकर (1 ग्राम लेप में 250 मि.ग्रा. अफीम तथा चौथाई गुनी वैसलीन मिलाकर) मस्सों व गुदा के अंदर लगाने से दर्द, जलन, खुजली, टपक व रक्त आने में आराम मिलता है।
- 10 ग्राम अंडी के तेल (कैस्टर ऑयल) में 1 ग्राम कुचले का चूर्ण (नक्स वोमिका) मिला लें। शौच से निवृत्त होने के बाद उगली की सहयता से यह औषधि तेल मस्सों पर लगा दें। इस प्रयोग के कुछ ही दिनों में अर्श के मस्से सूख जाते हैं।
- स्थायी लाभ पाने के लिए यह प्रयोग लम्बे समय तक करना जरूरी होता है अथवा कासिसादी तेल साफ रुई या कपड़े की पट्टी को इस तेल में भिगोकर मलमार्ग में चढ़ा देना चाहिए। इससे भी मस्से (piles meaning in hindi) नष्ट हो जाते हैं।
- कपूर को 8 गुना गर्म अंरडी के तेल में (आग से नीचे उतारकर) मिलाकर रख लें। शौच जाने के बाद मस्सों को धोकर और पोंछकर इस तेल को दिन में 3 बार मस्सों पर धीरे-धीरे मलें। इस मालिश से मस्सों की तीव्र शोथ, दर्द, जलन, सुईयाँ जैसी चुभने आदि में आराम मिलता है। इसके निरन्तर प्रयोग से मस्से शुष्क हो जाते हैं।
- इंद्रायण की जड़ को पानी में घिसकर मस्सों पर लगाने से अर्श (piles meaning in hindi)की पीड़ा में तत्काल लाभ मिलता है।
- यदि खूनी बवासीर में से रक्त अधिक टपक रहा हो और उसे तत्काल रोकना जरूरी हो, तो फिटकरी, मेंहदी, दूब, नीम की पत्तियाँ, अनार के फूल आदि में से जो भी उपलब्ध हो, उसे पीसकर चटनी की तरह बना लें। तत्पश्चात् उसकी चपटी लोई बनाकर उसे गुदा पर रखकर लंगोट या जांघिया पहन लें।
- कोई औषधि समय पर उपलब्ध न होने पर- जब मस्से बहुत सख्त हो गये हों, अत्यंत पीड़ा देते हों तो ऊगली पर घी, तेल या वैसलीन लेकर मस्सों पर मल दें, तत्काल आराम आ जायेगा ।
- भोजन के साथ मूली और उसके पत्ते दोनों कम से कम 25-50 ग्राम की मात्रा में खाने चाहिए। इससे बवासीर (piles meaning in hindi) तथा रक्तदोष-दोनों दूर होते हैं।
- ज्वार की रोटी का सेवन मस्सों को सुखाने में सहायक सिद्ध होती है। चौलाई और बथुये की सब्जी खाने से कब्ज तथा बवासीर दोनों में लाभ होता है।

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