रोग परिचय
इसे आम बोलचाल में मुँह आना (Stomatitis meaning in Hindi) भी कहते हैं। इस रोग में मुख की अंतरीय त्वचा छील जाती है और छाले भी हो जाते हैं।
मुख के अन्दर छाले पड़ना अर्थात् मुख का पक जाना-यह एक ऐसी व्याधि है जो खाने, पीने, बोलने में रोगी को अपार कष्ट पहुँचाती है।
इस रोग से ग्रस्त रोगी को अपार कष्ट तो होता ही है, कभी-कभी मरीज इस क्रूर व्याधि के कारण वह अपने जीवन से ऊब जाता है, क्योंकि खाना-पीना और बोलना ये जीवन की अनिवार्य खुराक है ।
इस रोग में रोगी के मुख के अन्दर जीभ और गालों की दीवारों पर व्रण या छाले हो जाते हैं। इन छालों में तीव्र वेदना होती है। खाने-पीने में काफी तकलीफ होने लगती है। तेज मिर्च-मसालेदार पदार्थ खाते ही रोगी कष्ट से बिलबिला उठता है। रोगी ठीक से बोल पाने में भी असमर्थ हो जाता है।
(stomatitis causes)मुह के छालों के कारण (Stomatitis meaning in Hindi)-
■ मुखपाक (Stomatitis meaning in Hindi) रोग निम्न कारणों (stomatitis causes) से होता है-

- आमाशय की क्रिया की अनियमितता ।
- मुख में गर्म चीज का जल्दी से खा लेना ।
- दाँतों का साफ न करना एवं दाँतों में संक्रमण ।
- ज्यादा मात्रा में चूना व चीनी खाना।.
- पोषक तत्त्वों की कमी वाले भोजन का सेवन करना।
- गंदी और मलिन बस्ती में निवास करना ।
- रक्त विकार ।
- क्षय रोग जनित अवस्था ।
- दाँतों का साफ न करना एवं दाँतों में संक्रमण ।
- ज्यादा मात्रा में चूना व चीनी खाना।
- पोषक तत्त्वों की कमी वाले भोजन का सेवन करना ।
- गंदी और मलिन बस्ती में निवास करना ।
- रक्त विकार ।
- क्षय रोग जनित अवस्था ।
- बच्चों के दाँत निकलना ।
- खसरा ।
- अधिक धूम्रपान ।
- पारा, संखिया, बिस्मथं, फीनोबार्बीटोन, फास्फोरस वाली दवाओं का सेवन ।
- बच्चों को दूध पिलाने वाली बोतल या माँ के चूचुक का दूषित एवं संक्रमित होना ।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी।
- कैल्शियम का गलत चयापचय ।
- विटामिन ‘बी’ तथा ‘सी’ की कमी से ।
- स्कर्वी, परप्यूरा, संग्रहणी, परनीशियस रक्तहीनता (Pemicious Anaemia) के कारण।
- मसालों से भरपूर भोजन का सेवन करना ।
- स्वाद के लिए तले पदार्थों का अधिक सेवन ।
- खाने और पीने में उष्ण द्रव्यों को अधिक काम में लेना ।
- कब्ज/मलावरोध (Constipation) रोग का प्रधान और शतप्रतिशत कारण माना जाता है।
- जो छोटे बच्चे चाकलेट, च्युइंग गम, बर्फ के गोले आदि अधिक मात्रा में खाते हैं, उनके मुँह में कभी-कभी एलर्जी होने से भी छाले (Stomatitis meaning in Hindi) पड़ जाते हैं।
- यदि कफवर्धक पदार्थों का अत्यधिक सेवन किया गया है, तो भी मुख पाक हो जाता है।
- यदि मुँह की भलीभाँति सफाई न की जाए, तो भी समय बीतने पर मुँह में छाले पड़ जाने की पूरी संभावना रहती है।
- जो लोग पान, तम्बाकू तथा मुख शुद्धि के द्रव्यों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, उनमें यह रोग (Stomatitis meaning in Hindi) अवश्यसंभावी होता है।
- भोजन सही समय पर तथा उपयुक्त न करना अथवा अस्वास्थ्यकर भोजन ।
- पौष्टिक भोजन का अभाव एवं विटामिंस की कमी।
- तेज गर्मागर्म चाय, कॉफी या दूध पी लेने से ।
- पायरिया अथवा दाँतों से संबंधित रोगों के कारण भी यह रोग होते देखा जाता है। विटामिनों के साथ-साथ भोजन में पर्याप्त मिनरल्स का अभाव हो जाना भी एक प्रमुख कारण है।
- उपदंश, सिफिलिस आदि रोग के विष की वजह से।
- जो लोग पान खाते हैं, उनका मुख पाक (Stomatitis meaning in Hindi) हो सकता है, क्योंकि पान में चूना अधिक लग जाने से मुख में व्रण हो जाते हैं।
- आधुनिक विज्ञान के अनुसार- यदि आहार में विटामिन ‘बी’ एवं ‘सी’ (Vit. B & C) के तत्त्वों (जैसे रीबोफ्लेवीन, निकोटिनिक एसिड, फोलिक एसिड, साइनोकोबाल्मीन आदि) की कमी हो सकती है, तो मुँह में छाले (Stomatitis meaning in Hindi) पड़ जाते हैं अर्थात् मुखपाक (Stomatitis) का रोग हो जाता है।
- इसी प्रकार से संग्रहणी जैसे रोग में भोजन के इन तत्त्वों का अवशोषण करने की क्षमता की कमी हो जाने से भी मुँह में छाले (Stomatitis meaning in Hindi)पड़ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यदि पेट में गर्मी बढ़ जाए, अपच (Indigestion) हो जाये अथवा उसमें पित्त एकत्र हो जाए, तो मुँह पक जाता है।
- खाने एवं पीने में उष्ण द्रव्यों को अधिक काम में लेना, क्योंकि अति उष्ण पदार्थ मुख की अति कोमल श्लेष्मिक कला में प्रदाह का मुख्य कारण बनता है। पेट की गर्मी, पाचन क्रिया की विकृति और कब्ज उनकी आँतों में मल का स्टोर बना रहता है। इनके सड़ान की गर्मी से वायु ऊपर की ओर बढ़ती है।
- वही मुख में छालों (Stomatitis meaning in Hindi) को जन्म देती है। संक्षेप में-आमाशय की क्रिया की गडबडी, किसी वस्तु को बहुत गरम-गरम मुख में रखकर चघलने से मुह मे छाले पड़ जाते है अथात् मुखपाक होता है ।
- भोजन के तत्त्वों का अवशोषण करने की क्षमता की कमी हो जाने से भी मुँह में छाले पड़ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यदि पेट में गर्मी बढ़ जाए, अपच (Indigestion) हो जाये अथवा उसमें पित्त एकत्र हो जाए, तो मुँह पक जाता है।
- खाने एवं पीने में उष्ण द्रव्यों को अधिक काम में लेना क्योंकि अति उष्ण पदार्थ मुख की अति कोमल श्लेष्मिक कला में प्रदाह का मुख्य कारण बनता है। पेट की गर्मी, पाचन क्रिया की विकृति और कब्ज उनकी आँतों में मल का स्टोर बना रहता है। इनके सड़ान की गर्मी वायु के द्वारा ऊपर की ओर बढ़ती है। वही मुख में छालों (Stomatitis meaning in Hindi) को जन्म देती है।
- संक्षेप में- • आमाशय की क्रिया की गड़बड़ी, किसी वस्तु को बहुत गरम-गरम मुख में रखकर जल्दबाजी में खा लेना, पौष्टिक आहार में कमी, अधिक मात्रा में तम्बाकू या पान के साथ चूने का पर्याप्त सेवन, दाँतों की सफाई ठीक से न करने, पारे का सेवन, अधिक मात्रा में चीनी का खाना, अस्वास्थकर गंदी वायुयुक्त वातावरण में रहना, रक्त विकार आदि कारणों से रोग हो जाया करता है।
- अतः इन कारणों का पता लगाना चाहिए व उचित इलाज करना चाहिए।
- छालों (Stomatitis meaning in Hindi) के बारे में कुछ प्रचलित भ्रम हैं जैसे कि छाले हमेशा पेट की खराबी से होते हैं, छालों का कोई इलाज नहीं है, यह अपने आप ही ठीक होंगे।
- छालों पर दवाई लगाने से बढ़ जाते हैं, जबकि ऐसा नहीं है, यह केवल भ्रम है।
- वायरसजन्य संक्रमण से उत्पन्न छाले-जैसे हरपीज वायरस, फुट एंड माउथ डिजीज
- ये छोटे-छोटे छाले लाल या पीले रंग के पूरे मुँह में होते हैं।
- यह एक सप्ताह के अंदर ही ठीक हो जाते हैं। इन पर ध्यान न देने से इनमें कीटाणु लग सकते हैं व मवाद बन सकता है। अतः इनका भी इलाज आवश्यक है।
- फूट एण्ड माउथ डिजीज – यह वायरस डिजीज बच्चों में होता है। मुँह में छाले के अलावा हाथ और पैरों में भी छाले हो जाते हैं।

मुँह में छालों (Stomatitis meaning in Hindi) के लक्षण stomatitis symptoms –
- मुँह में कभी न कभी, सभी को छाले हो ही जाते हैं। कुछ व्यक्तियों को तो पूरे साल ही मुँह में छाले बने रहते हैं व कुछ अन्य को साल में कुछ एक महीनों में छाले सताते हैं। छालों के कई कारण होते हैं; पर हर प्रकार के छाले का इलाज है।
- बैक्टीरिया जनित छाले (Stomatitis meaning in Hindi) –यह युवाओं व वृद्धों में पाया जाता है। छाले पर पपड़ी भी जम जाती है। कुरेदने से दर्द होता है तथा पपड़ी झड़ जाती है और छाला गहरा होता जाता है। यह मसूड़ों व गाल तथा टांसिल पर हो जाता है।
- थ्रश (Thrush)— मुँह व जबान पर सफेद-सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं। इन्हें रगड़कर साफ करने पर अन्दर लाली दिखाई पड़ती है।
- यह बच्चों में नवजात में होता है।
- बड़ों में कैंसर के मरीजों में होता है।
- लम्बे समय तक एक एंटीबायोटिक लेने से प्रायः यह हो जाता है।
- ये एक प्रकार की फफूंदी की बीमारी है।
- बड़ों में यह बीमारी हो जाने पर डायबिटीज के लिए भी जाँच करानी चाहिए, डायबिटीज के मरीजों में भी यह हो जाता है।
- इसमें दर्द नहीं होता।
- टी. बी. के कारण भी मुँह में अल्सर (Stomatitis meaning in Hindi)अथवा छाले हो जाते हैं।
- इसके साथ ही गले में गिल्टी निकल आती है।
- इन छालों में प्रायः दर्द नहीं होता, कभी-कभी ये बड़े-बड़े हो जाते हैं।
- सामान्य लक्षण-इस रोग में रोगी के जीभ तथा गालों पर छाले या व्रण अथवा छोटे-छोटे जख्म से उभर आते हैं। छाले तेज पीड़ादायक उभरते हैं।
- तालू, गलफड़ों, जीभ, होठों के अन्दर यानी पूरे मुँह में जहाँ-जहाँ भी म्युकस मेम्ब्रेन होती है, ये छाले हो जाते हैं।
- मुँह लिजलिजा हो जाता है और उनमें जलन होने लगती है।
- मुँह में लालिमा (Stomatitis meaning in Hindi) लिए हुए छाले साफ दिखाई देते हैं। भोजन करते समय यदि आहार इन छालों से रगड़ खा जाता है, तो जलन होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप रोगी भरपेट खाना नहीं खा पाता है।
- तीखा कड़वा खाना तो बिलकुल ही नहीं खाया जा सकता।
- इससे असह्य जलन होती है। गरम आहार भी मुख में रखना असंभव होता है।
- दिन भर बेचैनी बनी रहती है और किसी काम में मन नहीं लगता है। साँस में बदबू तथा जीभ लाल होती है। मसूड़े फूल जाते हैं और छिले से दीखते हैं।
- लार बहती है और भोजन चबाने में असमर्थता होती है। यदि रोग पारे के प्रभाव से होता है, तो रोगी की हड्डियाँ भी प्रभावित हो जाती हैं।
- इसके अतिरिक्त मुखपाक (Stomatitis meaning in Hindi) का रोगी छालों की वेदना के मारे ठीक से बोल नहीं पाता, क्योंकि बोलने पर रोगी को असह्यनीय कष्ट होता है। कुछ रोगियों के तालु में भी सूजन आ जाती है।
- इस रोग में रोगी की पाचनक्रिया बिगड़ी हुई मिलती है। रोगी को या तो कब्ज/मलावरोध की शिकायत रहती है या फिर दस्त होने लगते हैं। मल भी कठोर हो जाता है, रोगी बार-बार थूकता रहता है। इन लक्षणों के अतिरिक्त रोगी में दुर्बलता, चक्कर आना, ज्वर, पाचन शक्ति क्षीण होना आदि होते हैं। रोग परिणाम तो संतोषजनक होता है, पर लापरवाही से रोगियों में कमजोरी तथा भोजन चबाने की क्षमता कम हो जाती है।
मुखपाक/मुँह (Stomatitis meaning in Hindi)के छालों की चिकित्सा (stomatitis treatment)-
- प्रायः मुखपाक/मुख (Stomatitis meaning in Hindi) में छालों का ढंग से उपचार करने पर ठीक हो जाते हैं।
- मुँह में छाले पड़ते ही सबसे पहले निर्दोष जुलाव (Saline purgative) लेकर पेट की सफाई करें।
- इसके लिए- स्वादिष्ट ‘विरेचन चूर्ण’ उत्तम औषधि है। रात को सोते समय 3 से 6 ग्राम की मात्रा में इसे पानी के साथ सेवन करें।
- इसके अतिरिक्त त्रिफला चूर्ण, हर्र का चूर्ण, अमलतास की फली का गुदा अथवा निसोथ का काढ़ा भी लिया जा सकता है।
- रात को सोते समय ईसबगोल की भूसी 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लें। इससे पेट में ठंडक आ जाती है। पेट का ठंडा होना एक उत्तम प्रयास है।
- पेट साफ करने के लिए एरंडी का तेल, शिवाक्षार पाचन चूर्ण या कोई दूसरा जुलाब देकर पेट साफ करें।
- पाचन क्रिया को व्यवस्थित करें। इसके लिए रोगी को नित्य प्रातः काल मंदाग्नि टिकड़ी तथा भोजन के पश्चात् अग्नितुंडी वटी देनी चाहिए।
- चंद्रप्रभावटी, संशमनी वटी, गुलाब का शर्बत, प्रवाल पंचामृत, शतावरी रसायन चूर्ण-इनमें से किसी भी औषधि का सेवन किया जा सकता है।
- आहार में दूध का प्रयोग अधिक करें। इसमें बकरी का दूध परम शीतल होता है। दूध में चावल और शक्कर डालकर पकाई हुई खीर रोगी के लिए उत्तम आहार तथा औषधि दोनों का काम करती है। गाय का दूध भी उत्तम रहता है। अभाव में डेरी का दूध भी लिया जा सकता है।
- दाँतों के संक्रमण से जीभ तथा मुँह के घाव होते हैं। अतः दाँतों की स्वच्छता का ध्यान रखना अधिक आवश्यक है।
- प्यास लगने पर ताजा और फीका छाछ पीना चाहिए। छाछ में जीरा, धनिया- जीरा और नमक भी डाला जा सकता है। इससे रोगी को पर्याप्त शांति मिलती है और पाचनतंत्र में भी आवश्यक सुधार होता है ।
- कब्ज के लिए एनीमा भी दिया जा सकता है। इस कार्य को सबसे पहले करना चाहिए। ग्लिसरीन सपोजीटरी भी गुदा में लगायी जा सकती है। अब तो कब्ज दूर करने के लिए बाजारों में एनीमा (औषधियुक्त) तैयार मिलते हैं।
- सावधान-जिन व्यक्तियों को अत्यधिक कड़वा, तीखा, गर्म मसालेदार एवं गर्मागर्म भोजन करने की आदत है और जो हमेशा गर्म पकौड़े, भेल-पूरी, नमकीन, चाट, पेटीस, कचौड़ी, पाव-भाजी जैसे बाजारू पदार्थ खाने के आदी हैं, उनका पेट हमेशा खराब रहता है और मुँख में छाले (Stomatitis meaning in Hindi) पड़ जाते हैं। अतएव मिर्च, गर्म मसाले, गर्म भोजन, अचार, चटनी, नमकीन, रायता, तले पदार्थ, बन्द कर देना चाहिए।

इस रोग में उपरोक्त व्यवस्था के साथ-साथ (एनीमा और पाचन सुधार व्यवस्था) स्थानीय चिकित्सा(Stomatitis meaning in Hindi) भी करनी पड़ती है।
- इस हेतु-बोरिक एसिड पाउडर 300 मि. ग्रा. और ग्लिसरीन 8 मि. ली. इन दोनों को भलीभाँति मिलाकर गर्म कर लें। इसे दिन में 2-3 बार लगाएँ अथवा दिन में कई बार पोटास (लाल दवा) के हलके घोल से बार-बार कुल्ले कराएँ
- अथवा त्रिफला, फिटकरी और सोनागेरू के मिश्रण से तैयार किए गए काढ़े का कुल्ला करें। अथवा मुँह में जात्यादि तेल लगाएँ या उसे थोड़ी देर मुँह भरकर उसका कुल्ला करें।
- अथवा-कपूर और मिश्री बारीक पीसकर छालों पर बुरकें।
- उड़द की दाल को पानी में भिगोएँ और उसी पानी से गरारे कराएँ अथवा फूला हुआ सुहागा (बोरेक्स को तबे या आग पर गर्म कर) को शहद में पीस घोंटकर मिलाकर छालों पर लगाएँ अथवा फूली हुई फिटकरी को पानी में डालकर कुल्ले कराएँ।
- अथवा कत्था, कपूर, ग्लिसरीन इनको एक साथ मिलाकर छालों पर लगाएँ।
- उपरोक्त सभी प्रकार के प्रयोगों से मुख के छालों (Stomatitis meaning in Hindi) में आराम मिलता है।
- जीवाणुजन्य मुख के छालों में जीभ पर सफेद झिल्ली वाले चकत्ते पाए जाते हैं। यह एक विशेष प्रकार के फंगस ओव्रियल एलवीकेंस के कारण होते हैं। सर्वप्रथम जीभ तथा गालों से प्रारंभ होकर सारे मुँह में फैल जाते हैं। बोतल तथा चूचुक की अस्वच्छता के कारण दूध पीने वाले बच्चों में ज्यादा होता है, बड़ों में भी हो सकता है। मुखपाक (Stomatitis meaning in Hindi) में बताए गए काढ़े या क्वाथ से गरारे करें। रोगी को 2 दिन संतरे के रस पर रखें। एनीमा दें तथा चमेली के पत्तों को चुसवाएँ.
- मुँह के छालों में 3-3 घंटे के अंतराल पर छाछ से गरारे कराएँ। 150 ग्राम बबूल की छाल आधे लीटर पानी में उबालें, 100 ग्राम पानी रह जाने पर गरारा करें। मुँह तथा जीभ के छाले दूर हो जाते हैं।
- अनुभूत चिकित्सा-
- दिन में सुबह-शाम दो बार मिश्री या मामूली-सा नमक और जीरा मिलाकर नींबू का शर्बत पिये। नींबू पेट की गड़बड़ी तथा मुँह के छालों (Stomatitis meaning in Hindi) को मिटाने में सहायता करता है।
- रसायन चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, शतावरी चूर्ण, मुलेठी का चूर्ण-इनको समान मात्रा में लेकर इसका मिश्रण तैयार करें। 5 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मुँह के छालों (Stomatitis meaning in Hindi)में शीघ्र ही लाभ होता है।
- सफेद कत्था 3 ग्राम, इलायची के दाने 3 ग्राम, शीतल चीनी 3 ग्राम, तूतिया (नीला थोथा), की भस्म 1 ग्राम लें। इन सबको बारीक चूर्ण कर कपड़े से छानकर रख लें। इस चूर्ण को मुख के छालों पर छिड़कने से 25 वर्ष तक के पुराने छाले भी दूर हो जाते हैं।
- तरबूज के छिलके को जलाकर उसकी राख छालों पर बुरकें । यह छालों की अचूक एवं अमोघ महौषधि है।
- करेले को साफ पानी से धोएँ। चाकू से छीलकर उसका रस निकाल लें तथा चाक मिट्टी (खड़िया) बारीक पीसकर दोनों को मिला लें और छालों (Stomatitis meaning in Hindi) पर लगाएँ ।
- चतुर्मुख रस 30-60 मि. ग्रा. अथवा आवश्यकतानुसार सेवन कराने से आशातीत लाभ होता है साथ में पूर्व बताई गई औषधियों में से उपलब्धता के आधार पर गरारे कराएँ एवं छालों पर लगाएँ।
- ग्लिसरीन प्रयोग करने से मुख के छाले ठीक होते हैं।
- रस माणिक्य 125 मि. ग्रा. मधु के साथ दिन में 2 बार लें तथा फूली हुई फिटकरी को गर्म जल में मिलाकर कुल्ला कराएँ। पेट की बीमारी की चिकित्सा करें।
- अनार की पत्ती, बबूल की छाल, चमेली की पत्ती, बेर की जड़ इन सबको जौ कुट करके पानी में औटाकर छान लें और उसमें फिटकरी तथा सुहागा मिलाकर कुल्ला करें।
- लाल फिटकरी भस्म 1 भाग, गूलर छाल का घनक्वाथ शुष्क चूर्ण 1 भाग-सबको घोंटकर रख लें । मात्रा – 500 मि. ग्रा. से 1 ग्राम कच्चे दूध में मिलाकर मुख में दिन में 2-4 बार धारण करें। इसे 1-2 मिनट बाद थूक दें।
- ताम्र भस्म, शु. गैरिक, श्वेत मूसली। इसमें शु. गैरिक एवं श्वेतमूसली चूर्ण समभाग एवं ताम्र भस्म 1/2 से 1 मात्रा में मिलाकर चूर्ण तैयार करें। 200 मि. ग्रा. औषधि 2 बार पान के रस में मिलाकर लगावें तथा लार टपकाएँ। 2-3 दिनों में अनुकूल लाभ होगा।
- छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों (Stomatitis meaning in Hindi) पर लगाने से मुँह तथा जीभ के छाले ठीक होते हैं तथा मुखपाक (Stomatitis) ठीक होता है। जो छाले किसी भी दवा से ठीक नहीं हो रहे हों, इस दवा के लगाने से निश्चय ही ठीक हो जायेंगे । औषधि को दिन में 2-3 बार लगायें ।
- पेट साफ रखें तथा अधिक मिर्च मसालेदार पदार्थों से बचें।
- भुना सुहागा 2 ग्राम, बारीक पीसकर 15 ग्राम ग्लिसरीन में मिलाकर रख लें। दिन में 2-3 बार मुँह एवं जीभ के छालों पर लगाएँ, शीघ्र लाभ होगा।
- रात के भोजन के बाद 1 छोटी हरड़ चूसें। इससे आमाशय और आँतों के दोषों के कारण महीनों ठीक न होने वाले मुँह तथा जीभ के छाले (Stomatitis meaning in Hindi) ठीक हो जाते हैं।
- बच्चों के मुँह के छाले-मिश्री को बारीक पीसकर उसमें थोड़ा-सा कपूर मिलाकर मुँह में लगाएँ या बुरकाएँ । इससे मुँह के छाले और मुखपाक मिटता है। यह औषधि बच्चों के मुँह आने पर बहुत लाभकारी है। • नोट-जिन लोगों को बार-बार मुख के छाले होते रहते हैं, उसे टमाटर अधिक खाने चाहिए। साथ ही इनके रस को पानी में मिलाकर कुल्ला करने से छाले दूर होते हैं।
- सुहागा आग या तवे पर फुलाए हुए का चूर्ण 4 ग्राम, कपूर 30 मि.ग्रा., ग्लिसरीन 12 ग्राम में मिश्रित कर एक शीशी में भरकर रख लें। आवश्यकता पड़ने पर मुँह के भीतर घाव पर लगाएँ। जीभ, होंठ और मुँह के छालों और घावों के लिए, जिसे मुँह का आ जाना (मुँहा) (Stomatitis meaning in Hindi)कहते हैं, एक उत्तम औषधि है।
और अन्य बीमारियों के बारे मे जानने के लिए यंहा क्लिक कीजिए- enlightayurved.com
मुख के छाले और मुखपाक( Stomatitis meaning in Hindi) की कुछ आयुर्वेदिक दवाईया ( stomatitis ayurvedic treatment) –