गैस्ट्रिक अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) रोग परिचय
अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘घाव या छाला। घाव या छाला हो जाना यानि अल्सरेशन (Ulceration) हो जाना। हमारे शरीर में खासकर पेट में, आँतों में जो घाव हो जाता है, उस घाव को अल्सर कहते हैं। यह आधुनिक सभ्यता की देन है और कष्टकारी व्याधि है।
यह एक ऐसी व्याधि है, जो जीवन भर साथ नहीं छोड़ती है। आजकल अल्सर (आमाशय के घाव, आमाशयिक व्रण) के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे देश के लोगों ने पुराने स्वास्थ्य के नियमों को धीरे-धीरे त्यागना प्रारंभ कर दिया है तथा अनुचित आहार-विहार को अपनाना शुरू कर दिया है।
इस रोग की बढ़ोत्तरी का श्रेय आधुनिक सभ्यता की होड़ को भी दिया जा सकता है। जो लोग अपने जीवन में संतुलित आहार-विहार को अपनाते हैं, वे इस रोग के शिकार नहीं होते। इस रोग को आमाशय (Ulcer meaning in Hindi) अथवा पक्वाशय के घाव (Gastric or Duodenal ulcers) के नाम से भी पुकारा जाता है।
जठर व्रण और ग्रहणी व्रण इसी के पर्याय हैं। आधुनिक विज्ञान में इस रोग को पैप्टिक अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) (Peptic ulcer), गेस्ट्रो ड्युडेनल अल्सर (Gastro duodenal ulcer) अथवा डुडेनल अल्सर के नाम से पुकारा जाता है। यह रोग अधिकतर उन लोगों को होता है, जो पूर्व में लम्बे अर्से तक अजीर्ण के शिकार रहते हैं।

ड्यूडेनल अल्सर (Duodenal ulcer) — जो अल्सर ड्यूडेनल में होता है उसे ड्यूडेनल अल्सर कहते हैं।
अल्सर एक शारीरिक रोग है। अमेरिका जैसे साधन संपन्न देश में लगभग 1 करोड़ लोग पेट के अल्सर से पीड़ित हैं, और उनमें से लगभग 7,000 रोगी प्रतिवर्ष इस बीमारी से मृत्यु का ग्रास हो जाते हैं।
भारत में 15 लाख से अधिक लोग पेट के अल्सर से पीड़ित हैं। केवल वहद् मुंबई में ही इस रोग से पीड़ित लोगों का आँकड़ा 50,000 से ऊपर है। इनमें से अधिकांश रोगी मानसिक तनाव, मानसिक चिंताओं के बोझ से दबे, नौकरी धंधे की चिंताओं से परेशान, प्रेम सम्बन्धों के टूटने से हताश वुद्धिजीवी वर्ग के लोग होते हैं।
इस प्रकार आजकल अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) से ग्रस्त अधिकांश रोगियों में अल्सर का मुख्य कारण मानसिक होता है।
गैस्ट्रिक अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) के कारण(ulcerative colitis causes) —
- गैस्ट्रिक अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) को हिन्दी में आमाशय व्रण कहते हैं। आमाशय के ऊपर बीच में या बिल्कुल निचले भाग में कहीं भी घाव हो जाना ‘गैस्ट्रिक अल्सर’ कहलाता है। गैस्ट्रिक अल्सर को ‘पेप्टिक अल्सर’ के नाम से भी जाना जाता है। गैस्ट्रिक अल्सर-यह आमाशय में मिलने वाला एक प्रकार का व्रण है।
- गैस्ट्रिक अल्सर/आमाशियक व्रण के कारण नवीनतम् जानकारी के अनुसार- यह रोग आजकल मुख्य रूप से मानसिक तनाव के कारण होता है। अमेरिका के डॉ. कोलमेन के अनुसार ‘पेट का अल्सर, आप क्या खा रहें है, इसकी अपेक्षा आपके मस्तिष्क को कौन-सी चिंता खाये जा रही है, इस बात पर अधिक आधारित है।
- संधिवात या आमवात के रोगी यदि लम्बे समय तक गर्म दवाओं का सेवन करते रहें, तो उससे एक लम्बे अरसे के बाद अल्सर का रोग हो जाता है।
- सर्दी-जुकाम और दमे के रोगियों को भी गर्म दवाएँ लेनी पड़ती हैं। इन दवाओं का और विशेषकर एलोपैथिक दवाओं का अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) पैदा करने में बहुत बड़ा हाथ होता है।
- धूम्रपान करने एवं शराब पीने वाले व्यक्तियों में कुछ समय के बाद पेट के अल्सर वाले रोगी हो जाते हैं। कॉफी और कोका-कोला जैसे कॅफिन वाले द्रव्य भी पेट में अल्सर पैदा करते हैं। अतिशय धूम्रपान तथा चाय-कॉफी का अतिरिक्त सेवन भी इस व्याधि को जल्दी आमंत्रित करता है।
- यदि अम्लपित्त (एसीडिटी) का रोगी खट्टी खमीरयुक्त तली, तीखी एवं गर्म मसाले वाला आहार लम्बे समय तक लेता रहे, तो भी उसे अल्सर का रोग हो जाता है।
- कोलतार या उससे बने हुए पदार्थों का सेवन करने से अल्सर का रोग बहुत शीघ्र होता है।
- मांस भी अल्सर पैदा करने में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक है। जो मांस नहीं खाते हैं वे तेज मिर्च मसालेदार व्यंजन खाते हैं और ऐसे व्यंजन तथा खाद्य पदार्थ भी एसिड बनाते हैं।
- लालमिर्च सबसे अधिक खराब सिद्ध होती है।
- कई लोग तमाखू और चूना मिलाकर मसलकर खाते हैं। अब जो लोग इसे चबाते हुए निगलते भी रहते हैं वे भी इस व्याधि के शिकार हो जाते हैं।
- आहार में क्षार वाले और कैल्शियम वाले पदार्थ कम हो जाने से आमाशय में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप गैस्ट्रिक अल्सर हो जाता है। दूध, फल और शॉक-भाजी आदि में ये पदार्थ काफी होते हैं। इसीलिए भोजन में इन्हें पर्याप्त मात्रा में स्थान देना चाहिए।
- अरहर की दाल, खट्टा संतरा, अंगूर या कोई खट्टा फल, अमचूर की खटाई, नींबू, अचार, खट्टी चटनी, खट्टा दही आदि भी एसिड बनाते हैं। ऐसे पदार्थ लम्बे समय तक खाते रहने से एसिड की वृद्धि होकर अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) का निर्माण होने लगता है।
- उड़द की दाल भी कम एसिड पैदा करती है। मूँग की दाल से एसिड कम बनता है। अतः इसे लम्बे समय तक खाया जा सकता है। क्योंकि इसमें अलकली (क्षार) होती है। वह पेट में बढ़ने वाले एसिड को सामान्य करती रहती है।
- एक सर्वेक्षण द्वारा ऐसा मालूम होता है कि एक बार अल्सर मिट जाने के बाद भी यदि पर्याप्त सावधानी न बरती जाए, तो 80% रोगियों को यह अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) फिर अपनी चपेट में ले लेता है।
- यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में कम होता है। क्योंकि पुरुषों में मानसिक समस्याओं और व्यसनों के कारण उनमें अल्सर की बीमारी अधिक पायी जाती है।
- नोट- भारत में उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में अल्सर के रोगी अधिक पाए जाते हैं। आमाशय की पुरानी सूजन, पुराना अजीर्ण इस रोग की उत्पत्ति के मुख्य कारण हैं। जिन स्त्रियों को प्रदर रोग होता है, उनमें यह विशेषकर होता है।
- 5 साल से ऊपर का रोग होने पर शल्यचिकित्सा से भी आराम की कोई गारंटी नहीं होती है।
अल्सर के लक्षण (Ulcer meaning in Hindi)(ulcer symptoms) –
- अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) -के रोगी के पेट में निरन्तर जलन होती रहती है। उसे ऐसा अनुभव होता है जैसे उसके पेट में आग लगा दी गई हो। गैस्ट्रिक अल्सर में भोजन करने के बाद तुरन्त पीड़ा और जलन होने लगती है, चूँकि अल्सर के व्रण आमाशय में होते हैं। वहाँ आहार पहुँचते ही रोग के लक्षण प्रबल हो जाते हैं।
- भोजन के बाद रोगी को पेट में बेचैनी या भारीपन महसूस होता है। यही बेचैनी धीरे-धीरे पीड़ा का रूप धारण कर लेती है। यह पीड़ा उदर के ऊपरी हिस्से में होती है। रोगी यही कहता है, कि कलेजे में दर्द हो रहा है, जलन हो रही है। यह पीड़ा कै (Vomit) होने या क्षारीय औषधि देने से मिट जाती है।
- गैस्ट्रिक अल्सर (ulcerative colitis symptoms) के रोगी को भोजन करने या आहार लेते समय पेट का दर्द बढ़ने का भय निरंतर बना रहता है। इसके अतिरिक्त गैस्ट्रिक अल्सर के रोगी को पेट खाली होने पर भी पीड़ा और जलन होती है। अतः ऐसे रोगी बार-बार एक-एक घूँट दूध पीकर पेट की जलन को शांत करते हैं।
- कई रोगी पेड़े जैसी मावे की बनी हुई चीजें या ठंडा शर्बत पीकर भी पेट के दर्द में राहत पाने का उपाय करते हैं। आहार करने के बाद दर्द उठने के डर से रोगी पूरा खाना भी नहीं खा पाता है। अतः उसकी भूख भी कम हो जाती है। उसका शरीर सूख जाता है।
- उसे कमजोरी होती है और उसके चेहरे का तेज जाता रहता है। यह रोग धनी वर्ग के लोगों में अधिक देखने को मिलता है।
- याद रहे-गैस्ट्रिक अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) का दर्द इतना तेज होता है कि रोगी को पेट पकड़ना पड़ता है। आगे झुकने या पीछे झुकने से आराम मालूम पड़ता है। ऐसी दशा में दूध या कोई सौम्य पदार्थ खा लेने पर बड़ी राहत मिल जाती है। इसलिए रोगी बीच-बीच में कुछ खाता रहता है और उसे आराम मिलता रहता है।
- रोग का सारांश-अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) होने का मुख्य कारण ज्यादा मिर्च मसाले वाला भोजन ज्यादा समय तक लेना, अत्यधिक चाय, कॉफी, शराब व सिगरेट पीना, खाना समय से ना खाना, खूब जल्दबाजी में खाना खाना, भोजन में प्रोटीन की कमी, बिना डॉक्टर की सलाह के दवाएँ खाना या खाली पेट दवाएँ खाना।
- अक्सर लोग सिरदर्द में एस्प्रीन या कोई अन्य दवा खाते रहते हैं, जिससे पेट में एसीडिटी होने लगती है व गैस बनती है, जो बाद में अल्सर बन सकती है या कभी-कभी गठिया, जोड़ों में दर्द, हृदय रोग दवाएँ ज्यादा दिनों तक लेते रहने से भी अल्सर बन जाते हैं।
- कभी-कभी यह वंशानुगत (हेरीडिटरी) भी होता है। कुछ रिसर्च में यह भी साबित हुआ है कि ओ ब्लड ग्रुप वालों को अन्य ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में ज्यादा होता है। अल्सर की शुरूआत अक्सर पेट में जलन (हाइपर एसिडिटी), गैस बनने, डकार आने से होती है। तत्पश्चात् पेट में हलका दर्द होने लगता है।
- ज्यादातर दर्द पेट की बाईं तरफ ऊपरी हिस्से में होता है। दर्द खाना खाने के तुरन्त बाद से आधे घंटे के अन्दर ही होने लगता है। इसके अतिरिक्त उलटी आना, जी मिचलाना, उलटी आने के बाद दर्द में राहत आदि प्रमुख लक्षण होते हैं।
- रोग का स्पष्ट निदान इंडोस्कोपी विधि से किया जाता है। इस पद्धति में आमाशय या छोटी आँत में नली डालकर (एंडोस्कोप यंत्र) प्रकाश प्रसारित कर बाहर से अल्सर का अच्छी तरह निरीक्षण करके पता लगा लिया जाता है। साथ ही इसी यंत्र की सहायता से चिकित्सक अल्सर का उपचार भी करता है। रोग(Ulcer meaning in Hindi) निर्णय प्रायः लक्षणों से ही हो जाता है।

इसकी चिकित्सा ग्रहणी व्रण (ड्यूडेनल अल्सर) (Ulcer meaning in Hindi) की चिकित्सा के समान होने से उसी के साथ आगे वर्णित है।
ड्यूडेनल अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) -इसे ग्रहणीव्रण भी कहते हैं। ग्रहणी (ड्यूडेनल के अंतर्गत) घाव या व्रण होने के कारण शूल उठता है। यह दर्द ज्यादातर भोजन हजम होने के बाद शुरू होता है अर्थात् जब रोगी भूखा होता है आयुर्वेद में इस प्रकार शूल को ‘परिणाम शूल’ कहा गया है।
ड्यूडेनल अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारण-
- यह मुख्य रूप से वायु के प्रकोप के कारण होता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी शारीरिक प्रकृति वातिक प्रकार की होती है तथा जो मानसिक रूप से बहुत संवेदनशील होते हैं, उन पर इस रोग के आक्रमण की संभावना अधिक होती है।
- यह रोग उन युवकों में पाया जाता है जो अधिक कार्यरत रहते हैं, तथा भोजन नियत समय पर नहीं कर पाते है या जल्दी-जल्दी भोजन करते हैं।
- अत्यधिक चिंता और मानसिक तनाव के उपरांत रोग का आक्रमण हो सकता है।
- कुछ व्यवसाय भी रोग उत्पन्न करने वाले कारण हैं, यथा-बस ड्राइवर, वेटर (Waiter), चिकित्सक, बड़े-बड़े व्यापारी आदि ।
- वंशपरंपरा भी कारण है।
- उचित खान-पान न करने वालों में अधिक होता है। मांसाहारी और तेज मिर्च-मसालों वाले व्यंजनों का सेवन करते हैं। शराब पीने के आदी होते हैं अथवा फिर गरीब वर्ग के उन लोगों को होता है, जिनका खानपान अच्छा नहीं होता, निम्न स्तर का होता है।
- नोट-• यह अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) भी उन्हीं कारणों से होता है जिनसे आमाशय में अल्सर होता है। ड्यूडेनल अल्सर के सामान्य लक्षण – रोग के आक्रमण प्रायः 20-25 वर्ष की आयु में ही आरंभ हो जाते हैं। आरंभ में यह कुष्ट कुछ सप्ताह तक ही रहता है, परन्तु बाद में समय बढ़ता चला जाता है।
इसके लक्षण निम्न प्रकार हैं।
- रोगी के अधिजठर प्रदेश में वेदना होती है और भोजन के 3-4 घंटे बाद आमाशय के खाली हो जाने पर होती है। यह दर्द ज्यादातर भोजन हजम होने के बाद शुरू होता है। इस दर्द की सबसे मुख्य विशेषता यह है कि यह दर्द तभी होता है, जब रोगी भूखा होता है और कुछ खाने के बाद यह दर्द अपने आप शांत भी हो जाता है।
- वैसे कभी-कभी इस नियम के विपरीत भी देखने को मिलता है। प्रायः रोगी रात को 2 बजे के लगभग वेदना के मारे जाग जाता है। यह वेदना भोजन करते ही शांत भी हो जाती है। वेदना दिन या रात में ठीक समय पर होती है। कभी-कभी वमन भी होता है। वमन के बाद वेदना शांत हो जाती है। वेदना ग्रीवा की ओर को प्रसृत (Radiate) होती है ।
- ग्रहणी व्रण (Ulcer meaning in Hindi) के कारण होने वाले दर्द में रोगी का वजन धीरे-धीरे कम होता जाता है। तेज दर्द से होने वाली दुर्बलता के कारण रोगी चिड़चिड़ा और संवेदनशील/नाजुक प्रकृतिवाला भी हो जाता है। कभी-कभी ग्रहणी (ड्यूडेनम) में हुए घाव से रक्तस्राव भी होने लगता है, जिससे मल का रंग काला हो जाता है।
- कई बार यह रक्त रोगी के मुख से भी बाहर आ सकता है। परन्तु ऐसा बहुत कम देखने में आता है। व्रण (अल्सर) का विदीर्ण (Perforated) होना भी संभव है।
- उदर के ऊर्ध्वदक्षिण चुतर्थांश पर स्पर्शासहिष्णुता होती है। उदर पर पेशीरोध और कठोरता पाई जा सकती है ।
- दर्द से होने वाली दुर्बलता के कारण रागा चिड़चिड़ा हो जाता है
- कभी-कभी ग्रहणी (ड्यूडेनम) में हुए घाव से रक्तस्राव भी होने लगता है, जिससे मल का रंग काला हो जाता है। कई बार यह रक्त रोगी के मुख से भी बाहर आ सकता है। परन्तु ऐसा बहुत कम देखने में आता है। व्रण (अल्सर) का विदीर्ण (Perforated) होना भी संभव है।
- उदर के ऊर्ध्वदक्षिण चुतर्थांश पर स्पर्शासहिष्णुता होती है। उदर पर पेशीरोध और कठोरता पाई जा सकती है।
- कई बार ऐसा भी होता है कि ड्योडोनम अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) का रोगी आधी रात को अचानक पेट में पीड़ा होने से जाग उठता है। यह पीड़ा कुछ ऐसी होती है जैसे कि जोर की भूख लगी हो (Hunger pain)। इसका कारण यह है कि आधी रात को पेट खाली हो जाता है। ऐसे समय दूध पी लेने से राहत का अनुभव होता है।
- इस रोग में रोगी रक्तहीनता का भी शिकार हो जाता है, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने पर रोगी अन्य अनेक प्राणघातक रोगों का भी शिकार हो जाता है, जिसमें इनफ्लुएंजा, न्यूमोनिया, खसरा, रोहिणी आदि रोग हो सकते हैं।
- अथवा निश्चित रूप से अल्सर के बाद ये रोग होते ही हैं। रोगी के मूत्र में शर्करा भी आ सकती है। रोगी को अंत में टी.बी. तथा कैंसर तक हो सकता है। ऐसे रोगी को आमाशयशोथ (गैस्ट्राइटिस) भी हो सकता है। यह शोथ यदि तीव्र (Acute gastritis) है, तो उदर को छूते ही पीड़ा की अनुभूति होने लगती है।
अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) चिकित्सा (ulcerative colitis treatment)-
अल्सर-ग्रहणी व्रण (Ulcer meaning in Hindi) चिकित्सा-इस रोग की पूर्ण चिकित्सा दो प्रकार से की जाती है।
1. औषधि द्वारा,
2. शल्य चिकित्सा द्वारा।

- आमाशय व्रण (गैस्ट्रिक अल्सर) (Ulcer meaning in Hindi) तथा ग्रहणी व्रण (ड्यूओडिनल अल्सर) की चिकित्सा एक समान हैं।
- अल्सर अति भयंकर खतरनाक रोगों में से एक है। अतएवं रोगी का निर्णय होते ही चिकित्सा प्रारंभ कर देनी चाहिए, रोगी के आमाशय से उलटी के रूप में जो कुछ भी निकले, उसकी ‘पैथोलोजिकल परीक्षा’ अवश्य करवाएँ, ताकि पता चल सके कि उसमें रक्त तथा मवाद आदि तो नहीं है।
- पाचक रस की परीक्षा में-गंध, मात्रा, अम्ल की मात्रा, जीवाणु आदि की पूर्ण परीक्षा की जानी चाहिए ।
- अल्सर चाहे कैसा भी क्यों न हो आजकल उसकी चिकित्सा संभव है, पर समय रहने तक । रोग काबू से बाहर हो जाने पर चिकित्सा आसान नहीं है।
- अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) के रोगी को पूर्ण आराम और पूर्ण एहतियात से रखना चाहिए। अल्सर के रोगी को अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहने का निर्देश दें। यहाँ तक कि मलमूत्र त्यागने की व्यवस्था भी बिस्तर पर ही कराएँ यदि इस प्रकार की व्यवस्था संभव न हो तो रोगी को किसी साधन संपन्न अस्पताल या नर्सिंग होम में रोग नियंत्रण होने तक रखना चाहिए।
- अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) की औषधि चिकित्सा 3 प्रकार से की जाती है-
- 1. एक तो ऐसी दवाएँ दी जाती हैं, जो एसिड का बनना रोकती है।
- 2 .कुछ दवाएँ ऐसी दी जाती हैं, जो एसिड को सामान्य करती हैं (Neutralized)। ये दवाएँ अलकली युक्त होती हैं।
- 3. दिमांग शांत करने वाली औषधियाँ – इन्हें अल्प मात्रा में दिया जाता है।
- आजकल अम्लता कम करने वाली अनेक औषधियाँ (आयुर्वेदिक पेटेंट मेडिसिंस) बाजारों में उपलब्ध हैं, उनको नियमित रूप से उपयोगिता के आधार पर प्रयोग करना चाहिए। अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) की चिकित्सा में प्रमुख तथ्य यह है कि अम्लता उत्पन्न ही न हो।
- उक्त दवा की अपेक्षाकृत आयुर्वेद की निम्निलिखित औषधियाँ और प्रयोग हानिरहित और अधिक हितकारी हैं-
- शतावरी क्षीरपाक-अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) के रोगी के लिए ‘शतावरी क्षीरपाक’ का प्रयोग रामबाण है। इसे निम्न प्रकार से बनाया जा सकता है-
- शतावरी चूर्ण 15 ग्राम, पानी 200 मि.ली., दूध 200 मि.ली., आवश्यकतानुसार चीनी और कुछ इलायची के दाने लें। इन सारे द्रव्यों को मिलाकर धीमी आँच पर उबालें, जिससे धीरे-धीरे पानी जल जायेगा और दूध गाढ़ा हो जावेगा। तत्पश्चात् क्षीरपाक को आँच से उतार लें और उसे ठंडा होने दें। इस क्षीरपाक को ‘दुग्धपाक’ भी कहते हैं।
- इस क्षीरपाक को दिन में 2-3 बार 10-20 ग्राम की मात्रा में धीरे-धीरे सेवन करना चाहिए । कुछ माह तक इस औषधि के नियमित सेवन करते रहने से अल्सर का रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
- औषधि युक्त घी (शतावरी घृत या पटोलादि घृत, इंदुकांत घृत ) अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) के रोग में विशेष लाभकारी सिद्ध होता है। यह घी पित्ताशामक औषधियों से सिद्ध किया हुआ होता है। घी अल्सर के ऊपर परत बना देता है, जिससे अल्सर पर खाने का सीधा संपर्क नहीं होता है। इससे अल्सर का विकास रुक जाता है। साथ ही अल्सर के भरने की गति और अधिक बढ़ जाती है।
- इस रोग (Ulcer meaning in Hindi) की चिकित्सा के लिए ‘सुकुमार घृत’ नामक औषधि उत्तम मानी गई है। इस रोग से पूर्ण छुटकारा पाने के लिए सुकुमार घृत का सेवन सबसे श्रेष्ठ है। दर्द ठीक होने के बाद भी लम्बे समय तक इसका प्रयोग करते रहना चाहिए।
- सुकुमार घृत में घी और एंरड तेल सबसे महत्त्वपूर्ण द्रव्य हैं। इस घृत को रोगी को खाली पेट 2 चम्मच (10 मि.ली.) की मात्रा में एक प्याला गर्म दूध में मिलाकर देना चाहिए। यदि रोगी दूध न ले सकता हो, तो एक कप गर्म पानी में मिलाकर भी दिया जा सकता है।
- इस घी की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए, कई बार इस औषधीय घृत के सेवन से रोगी की पाचनशक्ति कमजोर होने लगती है। ऐसी स्थिति में इस घी की मात्रा कम कर देनी चाहिए। इस घी का सेवन करने के दो या तीन दिन बाद रोगी की पाचनशक्ति में अपने आप सुधार होने लगता है।
- तब वह इसकी अधिक मात्रा भी आसानी से ले सकता है। इस अवस्था में प्रतिदिन 1/2 चम्मच की मात्रा बढ़ाकर इसमें वृद्धि करनी चाहिए। यह मात्रा बढ़ाते-बढ़ाते 6 चम्मच तक की जा सकती है इस औषधीय घृत के सेवन से रोगी में कोई भी परेशानी या असुविधा नहीं होती हैं। हाँ सिरदर्द और तंद्रा के कारण कुछ सुस्ती अवश्य आ सकती है।
- सुकुमार घृत के अभाव में आमलकी घृत का उपयोग भी रोगनाशक साबित हुआ है।
- कामदुधा रस, शूतशेखर रस, प्रवाल पंचामृत, शंख भस्म, और वराटिका भस्म 2-2 ग्राम दूध या पानी के साथ लें। इस सभी भस्मों को मिलाकर अथवा प्रत्येक को अलग-अलग भी लिया जा सकता है।
- यदि रोग(Ulcer meaning in Hindi) अधिक गंभीर नहीं है तो ‘अविपत्तिकर चूर्ण’ 3-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बारं दूध या पानी के साथ लिया जा सकता है।
- किसी भी प्रकार के तीव्र शूल के लिए आयुर्वेद चिकित्सक सामान्य तौर पर शंख भस्म का प्रयोग करते हैं। इस भस्म का 1/2 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार गर्म जल के साथ सेवन कराना चाहिए।
- जब रोगी को बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो तब महाशंखवटी नामक औषधि देनी चाहिए।
- इसकी मात्रा प्राय: 2-2 गोलियाँ दिन में 2 से 4 बार, रोग की अवस्था को देखते हुए सेवन करानी चाहिए। इसके साथ एक प्याला गरम जल भी पिलाना चाहिए।
- इससे दर्द कम होता है और पाचनशक्ति में वृद्धि होती है। महाशंखवटी को दर्द निवारक औषधि शंख भस्म से ही तैयार किया गया है।
- रोगी को कब्ज से बचाना चाहिए क्योंकि कब्ज से पेट में वायु का निर्माण होगा और उससे दर्द का आक्रमण और अधिक होगा। यदि रोगी में कब्ज की प्रवृत्ति है, तो रेचक औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इस दृष्टि से एरंड का तेल (Castor oil) का प्रयोग उत्तम रहता है।
- इसे प्रतिदिन रात को सोते समय दो चम्मच की मात्रा में गर्म दूध या गर्म पानी के साथ लेना चाहिए।
- . द्राक्षा, हरीतकी फलत्वक, मिश्री और मधु को मिलाकर बारीक पीसकर गोली बनाकर चूसते रहने से भोजन के बाद होने वाली जलन, दाह ठीक हो जाती हैं।
- यह एक उत्तम अम्लनाशक योग (एंटासिड) है।
- रोगी को चिंता, भय, शोक आदि से छुटकारा दिलाने के लिए सर्पगंधा के योग या ल्यूमीनाल 30-60 मि.ग्रा. दिये जा सकते हैं।
- तमाखू (Tobaco) मद्य, चाय, कॉफी, एस्प्रिन जैसी औषधियाँ का सेवन न करें। संक्रमण उपस्थित हो तो उसका भी उपचार करना चाहिए ।
- इसमें शूल स्थल पर सेंक करना अति हितकर होता है। इसके अतिरिक्त शूल स्थल पर मैनसिल को मट्ठे में पीसकर गरम करके नाभि पर लेप करने से पक्वाशय की वायु शांत होती है, फलस्वरूप शूल में आराम होता है। हींग का लेप करना भी हितकर होता है।
- दशांगलेप गर्म करके बाँधने से भी लाभ मिलता है ।
- वायु का अधिक निर्माण न हो, इसके लिए हिंगुवटी, हिंगुकर्पूबटी, महांशखवटी, शिवाक्षार पाचन चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, आदि दिए जा सकते हैं।
- साथ में शूलशमक औषधियाँ (Ulcer meaning in Hindi)-; यथा-शूल बज्रिणीवटी, वेदांतक वटी, शूल गजकेशरी तथा शूल हरबटी आदि लाक्षणिक उपचार हेतु देने चाहिए ।
- आहार एवं अन्य आचार व्यवहार(Ulcer meaning in Hindi) –
- औषधि द्वारा चिकित्सा करने पर पथ्य अपथ्य का पूर्ण ध्यान देना अनिवार्य होता है।
- चिंता, काम उत्तेजक भोजन, तेल मिर्च मसाले से तली बनी चीजें, खट्टे पदार्थ, अति जागरण, क्रोध एवं स्त्री प्रसंग का त्याग करवा देना उचित है।
- भोजन अधिक न करें,
- शराब, तमाकू आदि छुड़वा दें।
- इस रोग में दुग्ध पान सर्वोत्तम है। भोजन थोड़ा-थोड़ा बार-बार किया जाना चाहिए।
- स्वच्छ वायु हितकर है।
- इस रोग में सभी तरह की दालें व दालों से बने पदार्थों का सेवन बिलकुल मना है।
- इसमें रोगी को दूध, पनीर, घी, चावल, गेहूँ, ऑवला तथा अनार जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन कराया जाता है। परन्तु ऐसे खाद्य पदार्थ जो शरीर में शुष्कता और खुरदरापन उत्पन्न करें, इस रोग के लिए हानिकर माने गए हैं। अतः इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
- रोगी को भी सभी प्रकार के मानसिक तनावों एवं परेशानियों से दूर रहना चाहिए। यह सावधानी बरतनी आवश्यक है, कि रोगी चिंता और व्याकुलता से बचा रहे। उसे पर्याप्त आराम देना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए घंटे कि वह लम्बे समय तक अच्छी नींद में सो सके।
- दिन के समय भोजन के बाद रोगी को सोना लाभदायक रहेगा। ड्यूडेनल अल्सर के रोगी को उपवास नहीं रखना चाहिए और न ही उसे अधिक देर तक खाली पेट रहना चाहिए। विशिष्ट भोजन व्यवस्था आवश्यक है-
- रोगी को सेब का मुरब्बा प्रयोग कराना श्रेष्ठ है।
- अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) के रोगी को एकदम सादा भोजन करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो सके आहार तरल या अर्द्धतरल होना चाहिए। रोगी को बिल्कुल पतला और ऐसा आहार लेना चाहिए, जो खट्टा और तीखा न हो।
- मीठे फलों का रस, ठंडा दूध, पतली खिचड़ी, मूँग का पानी लिया जा सकता है। खीर उत्तम आहार है। अल्सर के रोगी को दूध (बकरी, गाय या डेरी का) बहुत अनुकूल रहता है।
- अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) के रोगी को पेट में जलन होती है अतः उसे मिर्च का सेवन बिलकुल बंद कर देना चाहिए। लहसन, प्याज, रायता, अचार, तले हुए नमकीन, गरिष्ट व स्निग्ध पदार्थ, बैंगन, टमाटर, सहजन की फलियाँ, गन्ने का रस से उसे बिलकुल मनाही है।
- अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) रोगी के लिए कुछ अन्य लाभकारी व्यवस्था भी-‘एमीनो एसिड’ अल्सर के रोगी के लिए लाभकर है। रात को फीनोबार्बीटोन देना उपयुक्त रहता है। विटामिन ‘सी’ (एस्कोर्बिक एसिड) दिन में 2 बार अवश्य दें। इसे दूध के साथ नियमित रूप से दें।
- वेदना के लिए ‘एस्प्रिन’ भूलकर भी प्रयोग न करें।
- रोगी को निर्देश दें कि वह हर 2-3 मास के बाद अपने दाँतों की किसी दंत विशेषज्ञ से जाँच कराते हैं।
- रोगी को ठंड से बचना चाहिए, अनायास ठंड लग जाना रोगी के लिए घातक होता है। बरसात एवं ठंड में रोगी को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
- आंतों की सफाई के लिए लिक्विड पैराफीन उचित हैं।

अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) नाशक कुछ साधारण अनुभूत योग-
1. सूतशेखर रस (ग्रंथयोग रत्नाकर) 1-2 गोलियाँ (120-240 मि.ग्रा.) + अपामार्ग क्षार 60 मि. ग्रां.। ऐसी एक मात्रा दूध और मिश्री के साथ दिन में 3 बार दें ।
2. सफेद जीरा, मुल्तानी हींग, कटकरंज की भुनी मिंगी, तथा त्रिफला चूर्ण, 50-50 ग्राम (हींग को छोड़कर) को कूट-पीसकर छानकर बाद में हींग 5 ग्राम मिला लें। 1⁄2-2 ग्राम की मात्रा में भोजन के साथ दें।
3. बेलपत्र और नीम के पत्र समान मात्रा में मिलाकर रस निकाल लें। 15 से 30 मि. ली. की मात्रा में रस प्रातः-सायं खाली पेट पिलाएँ। यह योग अल्सर नाशक है।
4. कामदुधा रस 120 से 360 मि.ग्रा. तक जीरा मिश्री के साथ दिन में 2 बार प्रतिदिन सेवन कराएँ यह योग आमाशय आंत्रव्रण में परम उपयोगी पाया गया है। यह योग ‘रस योग सागर’ का है।
अल्सर (Ulcer meaning in Hindi) की शल्यचिकित्सा-
शल्यचिकित्सा में आमाशय व्रण (गैस्ट्रिक अल्सर) के ऊपर एक छिद्र बनाकर उसका संबंध ग्रहणी के साथ जोड़ दिया जाता है। इससे व्रण को त्रास नहीं पहुँचता अर्थात् व्रण (Ulcer) पर अन्न का बोझ नहीं पड़ता है और आमाशय मिश्रित भोजन व्रण स्थान की ओर नहीं बढ़ता अपितु सीधा ग्रहणी में चला जाता है। इस प्रकार व्रण को शांति मिलने पर वह शीघ्र भर जाता है।
स्टैंडफोर्ड विश्वविद्यालय, चिकित्सा विद्यालय, कैलिफोर्निया के डॉ. गार्नेथ चेनेन एम. डी. के अनुसार पत्ता गोभी में एक ऐसा नया विटामिन पाया गया है, जो पेट और छोटी आँत के अल्सरों(Ulcer meaning in Hindi)- को ठीक करता है। भोजन में इस पदार्थ को ‘विटामिन यू’ कहा जाता है। यहाँ तक भी ध्यान देने की बात है कि पत्ता गोभी को उबालने से यह बहुमूल्य अवयव नष्ट हो जाता है।
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अल्सर(Ulcer meaning in Hindi) चिकित्सा- मे कुछ आयुर्वेदिक औषधीया
- Ganga Asuka Tablet – 2 गोलीया दिन मे से दो बार
- Kerala Ayurveda Alsactil Tablet- 2 गोलीया दिन मे से दो बार
- Baidyanath Ayucid Tablets– 2 गोलीया दिन मे से दो बार
- Shankar Pharmacy Ulset Syrup– 10 ml दिन मे से दो बार
- Shatavari Root Powder1 चमच दिन मे से दो बार
- Satavaryadi Ghritam– 1 चमच दिन मे से दो बार
- Gufic Zulcer cap– 2 गोलीया दिन मे से दो बार
- Amlapitta Ghan Vati – 2 गोलीया दिन मे से दो बार
- Shree Dhootapapeswar Ltd Amlapitta Mishran Suspension10 ml दिन मे से दो बार
- Amlapittayog Mishran– 10 ml दिन मे से दो बार